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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 30
    ऋषिः - ब्रह्मातिथिः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तेन॑ नो वाजिनीवसू परा॒वत॑श्चि॒दा ग॑तम् । उपे॒मां सु॑ष्टु॒तिं मम॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तेन॑ । नः॒ । वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू । प॒रा॒ऽवतः॑ । चि॒त् । आ । ग॒त॒म् । उप॑ । इ॒माम् । सु॒ऽस्तु॒तिम् । मम॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तेन नो वाजिनीवसू परावतश्चिदा गतम् । उपेमां सुष्टुतिं मम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तेन । नः । वाजिनीवसू इति वाजिनीऽवसू । पराऽवतः । चित् । आ । गतम् । उप । इमाम् । सुऽस्तुतिम् । मम ॥ ८.५.३०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 30
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (वाजिनीवसू) हे बलयुक्तधनवन्तौ ! (तेन) तेन रथेन (नः) अस्मान् (परावतश्चित्) दूरदेशात् (आगतम्) आगच्छतम् (इमाम्, मम, सुष्टुतिम्) इमां मदीयां स्तुतिम् (उप) उपशृणुतम् ॥३०॥

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    विषयः

    राजकर्त्तव्यतामाह ।

    पदार्थः

    हे वाजिनीवसू=बुद्धिधनौ राजानौ ! युवाम् । तेन=हिरण्यनिर्मितेन रथेन । परावतश्चित्= अतिदूरदेशादपि । नोऽस्मान् प्रजाः । आगतमागच्छतम् । तथा मम । इमाम् । सुष्टुतिम्=शोभनां प्रार्थनाञ्च । उपसमीपमागत्य शृणुतम् ॥३० ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (वाजिनीवसू) हे बलयुक्त धनवाले ! (तेन) तिस रथ द्वारा (नः) हमारे समीप (परावतश्चित्) दूरदेश से (आगतम्) आइये (इमाम्, मम, सुष्टुतिम्) इस मेरी सुस्तुति का (उप) उपश्रवण करें ॥३०॥

    भावार्थ

    हे बलसम्पन्न ऐश्वर्य्यशालिन् ! आप कृपा करके उक्त सुवर्णमय रथ द्वारा देशान्तर से हमारे यज्ञ में सम्मिलित हों, हमारी इस प्रार्थना को अवश्य श्रवण करें ॥३०॥

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    विषय

    राजकर्त्तव्य कहते हैं ।

    पदार्थ

    (वाजिनीवसू) बुद्धि, विद्या, यागक्रिया, वाणिज्या और अन्नादिकों का नाम वाजिनी है । वसु=धन । हे विद्यादिधन राजन् तथा मन्त्रिमण्डल ! (तेन) उस सुवर्णनिर्मित रथ से (नः) हम प्रजाओं के निकट (परावतः+चित्) अति दूरदेश से भी (आगतम्) आवें और (मम) मेरी (इमाम्) इस (सुष्टुतिम्) शोभन स्तुति को (उप) समीप में आकर सुनें ॥३० ॥

    भावार्थ

    सदा प्रजाओं की प्रार्थनाओं को राजा सुने ॥३० ॥

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    विषय

    उषा और अश्वियुगल। गृहलक्ष्मी उषा देवी। जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को गृहस्थोचित उपदेश। वीर विद्वान् एवं राजा और अमात्य-राजावत् युगल जनों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( वाजनीवसू ) बलवती सेना और अन्नसम्पदा वाली भूमि के स्वामी जनो ! ( तेन ) इस प्रकार के पूर्वोक्त रथ से ( परावतः चित् ) दूर देश से भी (नः आगतम् ) आप लोग हमारे पास आया करो, ( इमाम् ) इस ( मम सु-स्तुतिम् ) मेरी उत्तम स्तुति, वचन, उपदेशादि श्रवण किया करो । इति षष्ठो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मातिथिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—३७ अश्विनौ। ३७—३९ चैद्यस्य कर्शोदानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ५, ११, १२, १४, १८, २१, २२, २९, ३२, ३३, निचृद्गायत्री। २—४, ६—१०, १५—१७, १९, २०, २४, २५, २७, २८, ३०, ३४, ३६ गायत्री। १३, २३, ३१, ३५ विराड् गायत्री। १३, २६ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३७, ३८ निचृद् बृहती। ३९ आर्षी निचृनुष्टुप्॥ एकोनचत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    प्रभु स्मरण के साथ प्राणायाम

    पदार्थ

    [१] हे (वाजिनीवसू) = शक्तिरूप धनोंवाले प्राणापानो! (तेन) = गत मन्त्र में वर्णित उस (हिरण्यय) = रथ के हेतु से (परावतः चित्) = सुदूर देश से भी (नः आगतम्) = हमें प्राप्त होवो । अर्थात् हम किन्हीं भी सांसारिक कार्यों में कितने भी उलझे हों, प्राणायाम [प्राणसाधना] को कभी उपेक्षित न करें। सब कार्यों को छोड़कर भी समय पर प्राणसाधना अवश्य करें। [२] हे प्राणापानो! आप (मम) = मेरी (इमाम्) = इस (सुष्टुतिम्) = उत्तम स्तुति को (उप) = समीपता से प्राप्त होवो। मैं प्राणसाधना करता हुआ प्रभु का स्तवन करूँ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रतिदिन अन्य कार्यों में उलझे हुए होने पर भी प्राणसाधना अवश्य करें। प्राणायाम करते हुए प्रभु का स्मरण भी करें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O winners of wealth and victory, by that golden chariot come from far, from the farthest wherever you be, and accept this holy song of mine in praise of you.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे बलसंपन्न ऐश्वर्यवान! तुम्ही कृपा करून वरील सुवर्णमय रथाद्वारे देशान्तर करून आमच्या यज्ञात सामिल व्हा व आमची ही प्रार्थना अवश्य ऐका ॥३०॥

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