ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 23
ऋषिः - ब्रह्मातिथिः काण्वः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
यु॒वं कण्वा॑य नासत्या॒ ऋपि॑रिप्ताय ह॒र्म्ये । शश्व॑दू॒तीर्द॑शस्यथः ॥
स्वर सहित पद पाठयु॒वम् । कण्वा॑य । ना॒स॒त्या॒ । अपि॑ऽरिप्ताय । ह॒र्म्ये । शश्व॑त् । ऊ॒तीः । द॒श॒स्य॒थः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
युवं कण्वाय नासत्या ऋपिरिप्ताय हर्म्ये । शश्वदूतीर्दशस्यथः ॥
स्वर रहित पद पाठयुवम् । कण्वाय । नासत्या । अपिऽरिप्ताय । हर्म्ये । शश्वत् । ऊतीः । दशस्यथः ॥ ८.५.२३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 23
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(नासत्या) हे नासत्यौ ! (युवं) युवां (हर्म्ये) गृहे (अपिरिप्ताय) शत्रुभिर्बाधिताय (कण्वाय) विदुषे (शश्वत्) सदैव (ऊतीः) रक्षाः (दशस्यथः) कुरुथः ॥२३॥
विषयः
गृहरक्षादिराजकर्त्तव्यतामुपदिशति ।
पदार्थः
हे नासत्या=नासत्यावसत्यरहितौ राजानौ ! हर्म्ये=स्वभवने । अपिरिप्ताय=चौरादिभिः पीडिताय । कण्वाय=विदुषे पुरुषाय । युवम्=युवाम् । स्वयं गत्वा । शश्वत्=शाश्वतीः । ऊतीः=रक्षाः । दशस्यथः=दत्थः कुरुथः ॥२३ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(नासत्या) हे नासत्य ! (युवं) आप (हर्म्ये) गृह में स्थित (अपिरिक्ताय) शत्रुओं से सताये हुए (कण्वाय) विचारशील विद्वान् की (शश्वत्) सदैव (ऊतीः) रक्षा (दशस्यथः) करते हैं ॥२३॥
भावार्थ
“न सत्यौ असत्यौ न असत्यौ नासत्यौ”=जो कभी भी असत्य न बोलें, उनका नाम “नासत्य” है। हे सत्यवादी ज्ञानयोगिन् तथा कर्मयोगिन् ! गृह में स्थित अर्थात् कोई अपराध न करते हुए शत्रुओं से सताये जाने पर आप विद्वानों की सदैव रक्षा करने के कारण पूज्य=सत्कारयोग्य हैं, कृपा करके हमारी भी दुष्ट पुरुषों से सदैव रक्षा करें ॥२३॥
विषय
राजा गृहादिकों की रक्षा करे, यह उपदेश देते हैं ।
पदार्थ
(नासत्या) हे असत्यरहित राजन् तथा मन्त्रिमण्डल ! (हर्म्ये) स्वभवन में (अपिरिप्ताय) चौरादिकों से पीड़ित (कण्वाय) विद्वान् पुरुष को (युवम्) आप दोनों स्वयं जाकर (शश्वत्) सर्वदा (ऊतीः) रक्षाएँ (दशस्यथः) करें ॥२३ ॥
भावार्थ
राजा को प्रत्येक गृह की वार्ता जाननी चाहिये और तदनुसार उसका यथोचित प्रबन्ध करे ॥२३ ॥
विषय
उषा और अश्वियुगल। गृहलक्ष्मी उषा देवी। जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को गृहस्थोचित उपदेश। वीर विद्वान् एवं राजा और अमात्य-राजावत् युगल जनों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे ( नासत्यौ ) सत्य का उपदेश देने और सत्य का विधान करने और कभी असत्य व्यवहार न करने वाले जनो ! ( युवं ) आप दोनों ( हर्म्ये ) उत्तम गृह में रहते हुए ( अपि-रिप्ताय कण्वाय ) पीड़ित विद्वान् जन को बचाने के लिये ( शश्वत् ) सदा ( ऊती: दशस्यथः ) नाना रक्षाएं अन्नादि तृप्तिकारक पदार्थ भी प्रदान किया करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मातिथिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—३७ अश्विनौ। ३७—३९ चैद्यस्य कर्शोदानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ५, ११, १२, १४, १८, २१, २२, २९, ३२, ३३, निचृद्गायत्री। २—४, ६—१०, १५—१७, १९, २०, २४, २५, २७, २८, ३०, ३४, ३६ गायत्री। १३, २३, ३१, ३५ विराड् गायत्री। १३, २६ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३७, ३८ निचृद् बृहती। ३९ आर्षी निचृनुष्टुप्॥ एकोनचत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
सब दोषों से बचाव
पदार्थ
[१] हे (नासत्या) = असत्यों को दूर करनेवाले प्राणापानो! (युवम्) = आप (हर्म्ये) = इस शरीर गृह में (अपिरिप्ताय) = शतशः वासनाओं व रोगों से पीड़ित (कण्वाय) = मेधावी पुरुष के लिये (शश्वत्) = सदा (ऊती:) = रक्षणों को (दशस्यथः) = देते हो। [२] प्राणसाधना ही मेधावी पुरुष को रोगों व वासनाओं से बचाती है। प्राणसाधना के अभाव में एक पुरुष रोगों व वासनाओं से आक्रान्त होता ही रहता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणापान 'नासत्या' हैं। वे इस शरीर में हमें वासनाओं व रोगों से आक्रान्त नहीं होने देते।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, observers and protectors of truth without fail, you always provide protection for the oppressed man of knowledge and wisdom in his home.
मराठी (1)
भावार्थ
‘न सत्यौ असत्यौ न असत्यौ नासत्यौ’ = जो कधीही असत्य बोलत नाही. त्याचे नाव नासत्य आहे. हे सत्यवादी ज्ञानयोगी व कर्मयोगी! गृहात राहणाऱ्या अर्थात कोणताही अपराध न करता शत्रूकडून सतावल्या जाणाऱ्या विद्वानाचे रक्षण करण्यामुळे तुम्ही पूज्य = सत्कार करण्यायोग्य आहात. कृपा करून आमचे दुष्ट पुरुषांकडून रक्षण करा. ॥२३॥
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