ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 15
अ॒स्मे आ व॑हतं र॒यिं श॒तव॑न्तं सह॒स्रिण॑म् । पु॒रु॒क्षुं वि॒श्वधा॑यसम् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्मे इति॑ । आ । व॒ह॒त॒म् । र॒यिम् । श॒तऽव॑न्तम् । स॒ह॒स्रिण॑म् । पु॒रु॒ऽक्षुम् । वि॒श्वऽधा॑यसम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मे आ वहतं रयिं शतवन्तं सहस्रिणम् । पुरुक्षुं विश्वधायसम् ॥
स्वर रहित पद पाठअस्मे इति । आ । वहतम् । रयिम् । शतऽवन्तम् । सहस्रिणम् । पुरुऽक्षुम् । विश्वऽधायसम् ॥ ८.५.१५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 15
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
विषयः
अथ सत्कारानन्तरं तयोरैश्वर्यविषयकप्रार्थना कथ्यते।
पदार्थः
हे ज्ञानयोगिकर्मयोगिणौ ! (अस्मे) अस्मभ्यं (शतवन्तं) शतैः पदार्थैः सहितं (सहस्रिणं) सहस्रैः पदार्थैः सहितं (पुरुक्षुं) बहुनिवासं (विश्वधायसं) सर्वेषां धारकं (रयिं) ऐश्वर्य्यं (आवहतं) प्रापयतम् ॥१५॥
विषयः
प्रजासु विविधानि धनानि निधातव्यानीत्युपदिशति ।
पदार्थः
हे राजसभाध्यक्षौ । युवाम् । शतवन्तम्=शतवस्तुसंयुक्तम् । सहस्रिणम्=सहस्रसामर्थ्ययुक्तम् । पुरुक्षुम्= बहुनिवासप्रदम् । पुरवो बहवः क्षयन्ति निवसन्त्यत्र । क्षयतिर्निवासकर्मा वेदे । पुनः । विश्वधायसम्=विश्वेषां सर्वेषां वस्तूनां धारकम् । ईदृशम् । रयिम्=धनम् । अस्मे=अस्मदर्थम् । आवहतम्=प्रापयतम् ॥१५ ॥
हिन्दी (4)
विषय
अब सत्कारानन्तर यजमान को ऐश्वर्य्यविषयक प्रार्थना करना कथन करते हैं।
पदार्थ
हे ज्ञानयोगिन् तथा कर्मयोगिन् ! आप (अस्मे) हमारे लिये (शतवन्तं) सैकड़ों तथा (सहस्रिणं) सहस्रों पदार्थों सहित (पुरुक्षं) अनेक प्राणियों के आश्रयभूत (विश्वधायसं) सबकी रक्षा करनेवाले (रयिं) ऐश्वर्य्य को (आवहतं) प्राप्त कराएँ ॥१५॥
भावार्थ
अब सोमरस द्वारा सत्कार करने के अनन्तर यजमान प्रार्थना करता है कि हे सब प्राणियों के आश्रयभूत तथा सबकी रक्षा करनेवाले ज्ञानयोगिन् तथा कर्मयोगिन् ! आप कृपा करके मुझको ऐश्वर्य्यप्राप्ति का मार्ग बतलाएँ जिससे मैं ऐश्वर्य्ययुक्त होकर यज्ञादि कर्मों को विधिवत् कर सकूँ और यज्ञ के निधि परमात्मा की आज्ञापालन में सदा तत्पर रहूँ ॥१५॥
विषय
प्रजाओं में राजा विविध धन स्थापित करे, यह उपदेश देते हैं ।
पदार्थ
हे राजन् तथा हे सभाध्यक्ष ! आप दोनों सभा की आज्ञा के अनुसार (शतवन्तम्) शतवस्तुसम्पन्न तथा (सहस्रिणम्) सहस्रों सामर्थ्य से युक्त अर्थात् बहुत (पुरुक्षुम्) बहुत आदमियों को निवास देनेवाले अतिविस्तीर्ण (विश्वधायसम्) सर्व उपयोगी वस्तुओं को अपने में धारण करनेवाले (रयिम्) विमान आदि धन (अस्मे) हम लोगों के लिये (आवहतम्) प्रस्तुत कीजिये ॥१५ ॥
भावार्थ
वाणिज्य के साधन, समुद्रमार्ग प्रसार, नौकासंचय और अन्यान्य वस्तुओं की वृद्धिकरण, विज्ञान की उन्नति, इस प्रकार के विविध वस्तुओं से देश को सदा सुसज्जित रखना राजधर्म है ॥१५ ॥
विषय
उषा और अश्वियुगल। गृहलक्ष्मी उषा देवी। जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को गृहस्थोचित उपदेश। वीर विद्वान् एवं राजा और अमात्य-राजावत् युगल जनों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषो ! वा रथी सारथिवत् राजा और सचिव जनो ! आप दोनों ( अस्मे ) हमारे लिये ( शतवन्तं ) सौ और ( सहस्रिणं ) हजार संख्यायुक्त ( रयिं ) ऐश्वर्य ( आवहतम् ) प्राप्त कराओ। वह ऐश्वर्य ( पुरु-क्षुं ) बहुतों को अन्न देने और बसाने में समर्थ और ( विश्व-वायसम् ) सबका पालक पोषक हो । इति तृतीयो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मातिथिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—३७ अश्विनौ। ३७—३९ चैद्यस्य कर्शोदानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ५, ११, १२, १४, १८, २१, २२, २९, ३२, ३३, निचृद्गायत्री। २—४, ६—१०, १५—१७, १९, २०, २४, २५, २७, २८, ३०, ३४, ३६ गायत्री। १३, २३, ३१, ३५ विराड् गायत्री। १३, २६ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३७, ३८ निचृद् बृहती। ३९ आर्षी निचृनुष्टुप्॥ एकोनचत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
विश्वधायसम्
पदार्थ
हे जितेन्द्रिय जनो! आप दोनों (अस्मे) = हमारे लिए (शतवन्तम्) = सौ (सहस्त्रिणम्) = और सहस्रों (रयिम्) = ऐश्वर्यों को (आ वहतम्) = प्राप्त कराओ। वह (पुरुक्षुम्) = बहुतों को बसाने और विश्व-धारयसम्-सबका पालक हो ।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु कृपा से बहुतों के पालक होवें।
इंग्लिश (1)
Meaning
Bring us a hundredfold and a thousandfold wealth of universal value in abundance for all humanity which would sustain the world in a stable state of peace and progress.
मराठी (1)
भावार्थ
सोमरसाद्वारे सत्कार केल्यानंतर यजमान प्रार्थना करतो, की हे सर्व प्राण्यांचे आश्रयभूत व सर्वांचे रक्षण करणारे ज्ञानयोगी व कर्मयोगी! तुम्ही कृपा करून मला ऐश्वर्यप्राप्तीचा मार्ग दाखवा. ज्यामुळे मी ऐश्वर्ययुक्त बनून यज्ञ इत्यादी कर्मांना विधिवत् करू शकेन व यज्ञाचा निधी असलेल्या परमेश्वराच्या आज्ञापालनात सदैव तत्पर राहीन. ॥१५॥
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