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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 9
    ऋषिः - ब्रह्मातिथिः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    उ॒त नो॒ गोम॑ती॒रिष॑ उ॒त सा॒तीर॑हर्विदा । वि प॒थः सा॒तये॑ सितम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । नः॒ । गोऽम॑तीः । इषः॑ । उ॒त । सा॒तीः । अ॒हः॒ऽवि॒दा॒ । वि । प॒थः । सा॒तये॑ । सि॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत नो गोमतीरिष उत सातीरहर्विदा । वि पथः सातये सितम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत । नः । गोऽमतीः । इषः । उत । सातीः । अहःऽविदा । वि । पथः । सातये । सितम् ॥ ८.५.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 9
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    अथ प्रार्थनान्तरं वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (अहर्विदा) हे प्रातःस्मरणीयौ (उत) अथ (नः) अस्मान् (गोमतीः) गोयुक्तानि (उत) अथ (सातीः) दातव्यानि (इषः) ऐश्वर्याणि प्रापयतम् (सातये) भोगाय (पथः) मार्गान् (विसितम्) विमुञ्चयतम् ॥९॥

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    विषयः

    विविधकर्माण्युपदिशति ।

    पदार्थः

    उत=अपि च । हे अहर्विदा=अहर्विदौ= अहान्याह्निककृत्यानि यौ वित्तो जानीतस्तौ । अद्य कानि कानि कृत्यानि लौकिकानि वैदिकानि चानुष्ठेयानि सन्तीति कर्मचारिभिर्वेदितव्यम् । हे राजानौ ! यैरुपायैः । गोमतीः=गवादिपशुभिर्युक्ताः । इषोऽन्नानि । नोऽस्माकं भवेयुः । उतापि च । सातीः=सातयो लाभा भवन्तु । चोपायाः कर्तव्या युवाभ्याम् । सनतेः सन्यतेर्वा क्तिन् । पुनः । हे राजानौ ! युवाम् । सातये=तेषां गवादीनां लाभाय । पथः=मार्गान् । वि सितम्=विशेषेण बध्नीतम्=प्रदर्शयतमित्यर्थः । षिञ् बन्धने ॥९ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब अन्य प्रार्थना करना कथन करते हैं।

    पदार्थ

    (अहर्विदा) हे प्रातःस्मरणीय (उत) अनन्तर (नः) हमको (गोमतीः) गोयुक्त (उत) और (सातीः) देने योग्य (इषः) ऐश्वर्यों को प्राप्त कराएँ और (सातये) भोग के लिये (पथः) मार्गों को (विसितम्) बाधारहित करें ॥९॥

    भावार्थ

    हे प्रातःस्मरणीय कर्मयोगिन् तथा ज्ञानयोगिन् ! आप कृपा करके हमको गवादि धन से युक्त करें। हमको भोगयोग्य पदार्थ प्राप्त कराएँ और हमारे मार्गों को बाधारहित करें अर्थात् दुष्ट जन, जो हमारे यज्ञादि कर्मों में बाधक हैं, उनको क्षात्रबल से वशीभूत करके हमको अभयदान दें, जिससे हम निर्भय होकर वैदिक कर्मानुष्ठान में प्रवृत्त रहें ॥९॥

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    विषय

    विविध कर्मों का उपदेश देते हैं ।

    पदार्थ

    (उत) और (अहर्विदा१) हे दैनिक कर्मों के ज्ञाता राजा तथा अमात्य ! आपकी रक्षा के कारण जिनसे (नः) हम लोगों को (गोमतीः) गवादि पशुयुक्त (इषः) विविध अन्न हों (उत) और (सातीः) व्यापार में विविध लाभ हों, ऐसे उत्तमोत्तम उपाय आप करें । पुनः हे राजन् और अमात्य ! आप दोनों (सातये) विविध धनों के लाभार्थ (पथः) विविध मार्गों को (वि+सितम्) विशेषरूप से बाँधें ॥९ ॥

    भावार्थ

    जिन वाणिज्यादि उपायों से देश समृद्ध हो, राजा उन्हें विचार प्रजाओं की सम्मति से प्रसारित करे ॥९ ॥

    टिप्पणी

    १−अहर्विद्=दिन के जाननेवाले अर्थात् आज कौन-२ लौकिक या वैदिक कृत्य कर्तव्य हैं, यह प्रथम ही राजा और कर्मचारी वर्गों को जानना उचित है । अथवा समय-२ की बातें जाननेवाले हों ॥९ ॥

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    विषय

    उषा और अश्वियुगल। गृहलक्ष्मी उषा देवी। जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को गृहस्थोचित उपदेश। वीर विद्वान् एवं राजा और अमात्य-राजावत् युगल जनों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( अहर्विदा ) दिन को प्राप्त कराने या ज्ञान करा देने वाले उषा सूर्यवत् वा सूर्य चन्द्रवत् ( अहर्विदा ) अविनाशी आत्मा को जानने वाले वा दिन कृत्य के ज्ञाता जनो ! आप दोनों ( उत ) भी ( नः ) हमारी ( गोमतीः इषः ) उत्तम वाणियों से युक्त इच्छाओं और ( गोमतीः इषः ) भूमियों से युक्त वा गोरस—दुग्ध, दही घृतादि से युक्त अन्नों को ( उत साती: ) सेवन योग्य सम्पदाओं को प्राप्त करो और ( पथः सातये ) सन्मार्गों के प्राप्त करने और सेवन के लिये ( वि सितम् ) विविध प्रकार से नियम बन्धन करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मातिथिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—३७ अश्विनौ। ३७—३९ चैद्यस्य कर्शोदानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ५, ११, १२, १४, १८, २१, २२, २९, ३२, ३३, निचृद्गायत्री। २—४, ६—१०, १५—१७, १९, २०, २४, २५, २७, २८, ३०, ३४, ३६ गायत्री। १३, २३, ३१, ३५ विराड् गायत्री। १३, २६ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३७, ३८ निचृद् बृहती। ३९ आर्षी निचृनुष्टुप्॥ एकोनचत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    गोमतीः इषः

    पदार्थ

    [१] (उत) = और हे (अहर्विदा) = रात्रि के अन्धकार को दूर करके दिन के प्रकाश को प्राप्त करानेवाले प्राणापानो! [प्राणसाधना से अन्धकार दूर होता है और प्रकाश प्राप्त होता है ] आप (नः) = हमारे लिये (गोमती:) = प्रशस्त ज्ञान की वाणियोंवाली (इषः) = प्रेरणाओं को (विसितम्) = विशेष रूप से बाँधो। हमें आपके द्वारा बुद्धि की तीव्रता से ज्ञान प्राप्त हो तथा मन की पवित्रता से प्रभु-प्रेरणा सुनायी पड़े। [२] (उत) = और हे प्राणापानो! आप (साती:) = सब लाभों को हमारे साथ जोड़ो, सब प्राप्त करने योग्य वसुओं को हम प्राप्त करें। तथा (सातये) = इन प्राप्तियों के लिये (पथः) = मार्गों को [विसितम्] विशेषरूप से हमारे साथ नियमित करिये। इन मार्गों पर चलते हुए हम सब प्राप्तियों को सिद्ध करनेवाले हों।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना से [क] बुद्धि की तीव्रता के द्वारा ज्ञान प्राप्त होता है, [ख] मानस पवित्रता से प्रभु-प्रेरणा सुनायी पड़ती है, [ग] मार्ग पर चलते हुए हम सब आवश्यक सम्पदाओं को प्राप्त करते हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And bring us food and energy and inspiration with lands and cows and the light of knowledge, and bring us possibilities of victory, and clear our paths of progress free from difficulties.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे प्रात:स्मरणीय कर्मयोगी व ज्ञानयोगी! तुम्ही कृपा करून आम्हाला गाई इत्यादी धनाने युक्त करा. आम्हाला भोगपदार्थ प्राप्त करून द्या व आमचे मार्ग बाधारहित करा. अर्थात दृष्ट लोक जे आमच्या यज्ञ इत्यादी कर्मात बाधक आहेत. त्यांना क्षात्रबलाने नियंत्रित करून आम्हाला अभयदान द्या. ज्यामुळे आम्ही निर्भय बनून वैदिक कर्मानुष्ठानात प्रवृत्त राहावे. ॥९॥

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