यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 19
ऋषिः - मयोभूर्ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
66
आ॒क्रम्य॑ वाजिन् पृथि॒वीम॒ग्निमि॑च्छ रु॒चा त्वम्। भूम्या॑ वृ॒त्वाय॑ नो ब्रूहि॒ यतः॒ खने॑म॒ तं व॒यम्॥१९॥
स्वर सहित पद पाठआ॒क्रम्येत्या॒ऽक्रम्य॑। वा॒जि॒न्। पृ॒थि॒वीम्। अ॒ग्निम्। इ॒च्छ॒। रु॒चा। त्वम्। भूम्याः॑। वृ॒त्वाय॑। नः॒। ब्रूहि॑। यतः॑। खने॑म। तम्। व॒यम् ॥१९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आक्रम्य वाजिन्पृथिवीमग्निमिच्छ रुचा त्वम् । भूम्या वृक्त्वाय नो ब्रूहि यतः खनेम तँवयम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
आक्रम्येत्याऽक्रम्य। वाजिन्। पृथिवीम्। अग्निम्। इच्छ। रुचा। त्वम्। भूम्याः। वृत्वाय। नः। ब्रूहि। यतः। खनेम। तम्। वयम्॥१९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
मनुष्यजन्म प्राप्य विद्या अधीत्यातः किं कर्त्तव्यमित्याह॥
अन्वयः
हे वाजिन् विद्वन् सभेश राजस्त्वं रुचा शत्रूनाक्रम्य पृथिवीमग्निं चेच्छ, भूम्या नो वृत्वाय ब्रूहि, यतो वयं तं खनेम॥१९॥
पदार्थः
(आक्रम्य) (वाजिन्) प्रशस्तविज्ञानवन् (पृथिवीम्) भूमिराज्यम् (अग्निम्) अग्निविद्याम् (इच्छ) (रुचा) प्रीत्या (त्वम्) (भूम्याः) क्षितेर्मध्ये (वृत्वाय) स्वीकृत्य। अत्र क्त्वो यक् [अष्टा॰७.१.४७] इति यगागमः। (नः) अस्मान् (ब्रूहि) भूगर्भाग्निविद्यामुपदिश (यतः) (खनेम) (तम्) भूगोलम् (वयम्)॥१९॥
भावार्थः
मनुष्यैर्भूगर्भाग्निविद्यया पार्थिवान् पदार्थान् सुपरीक्ष्य सुवर्णादीनि रत्नान्युत्साहेन प्राप्तव्यानि। ये खनितारो भृत्याः सन्ति तान् प्रति तद्विद्योपदेष्टव्या॥१९॥
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य जन्म पा और विद्या पढ़ के पश्चात् क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (वाजिन्) प्रशंसित ज्ञान वाले सभापति विद्वान् राजा! (त्वम्) आप (रुचा) प्रीति से शत्रुओं को (आक्रम्य) पादाक्रान्त कर (पृथिवीम्) भूमि के राज्य और (अग्निम्) [अग्नि] विद्या की (इच्छ) इच्छा कीजिये और (भूम्याः) पृथिवी के बीच (नः) हम लोगों को (वृत्वाय) स्वीकार करके हमारे लिये (ब्रूहि) भूगर्भ और अग्निविद्या का उपदेश कीजिये (यतः) जिस से (वयम्) हम लोग (तम्) उस विद्या में (खनेम) प्रविष्ट होवें॥१९॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये की भूगर्भ और अग्नि विद्या से पृथिवी के पदार्थों को अच्छे प्रकार परीक्षा करके सुवर्ण आदि रत्नों को उत्साह के साथ प्राप्त होवें और जो पृथिवी को खोदने वाले नौकर-चाकर हैं, उन को इस विद्या का उपदेश करें॥१९॥
विषय
प्रभु-अन्वेषण [ Seeking after God ]
पदार्थ
१. हे ( वाजिन् ) = शक्तिशालिन्! ( पृथिवीम् आक्रम्य ) = इस पृथिवी पर आक्रमण करते हुए, अर्थात् सफलतापूर्वक संसार-यात्रा को चलाते हुए ( त्वम् ) = तू ( रुचा ) = दीप्ति के हेतु से ( अग्निम् ) = उस अग्रेणी परमात्मा को ( इच्छ ) = चाह, उसका अन्वेषण कर। जीव शक्तिशाली बने। शक्तिशाली बनकर गत मन्त्र के अनुसार सन्मार्ग पर चले, विघ्नों को दूर करे और इस प्रकार सफलता से इस पार्थिव संसार में जीवन-यात्रा को चलाते हुए प्रभु की खोज की वृत्तिवाला बने [ seeker after God ]। ऐसा बनने से जीवन दीप्त हो उठता है। पृथिवी पर सफलता से आक्रमण का अभिप्राय स्वर्ग की प्राप्ति है तो ‘प्रभु के अन्वेषण की इच्छा’ उस सोने पर सुहागे का काम करती है। यह स्वर्ण चमक उठता है।
२. ( भूम्याः ) = भूमि से अर्थात् इन पार्थिव भोगों में फँस जाने की अपेक्षा ( वृत्वाय ) = प्रभु का वरण करके ( नः ब्रूहि ) = तू हमारे प्रति भी उस प्रभु का प्रवचन कर ( यतः ) = जिससे ( वयम् ) = हम भी ( तम् ) = उस प्रभु को ( खनेम ) = खोजनेवाले बनें। ‘खनेम’ शब्द का अर्थ खोदकर निकालना है। पर्वतों में छिपाकर रखे सोने को हम खोदकर निकालते हैं। वहाँ उपरले आवरणों को हटाना होता है, ठीक इसी प्रकार यहाँ अन्नमयादि पाँच कोशों के आवरण को हटाकर आत्मा तक पहुँचते हैं। इस आवरण के हटाने के लिए हम पार्थिव भोगों से ऊपर उठें। ‘आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्’ का ठीक-ठीक अर्थ यही है कि आत्म-प्राप्ति के लिए पार्थिव भोगों को छोड़ना ही होता है। जीवन तभी चमकता है। ऐहिक कल्याण सफलतापूर्वक जीवन-यात्रा को चलाने में है तो आमुष्यिक कल्याण उस प्रभु को खोजने में है। इन दोनों अभ्युदय व निःश्रेयस को मिला देना ही सच्चा धर्म है।
भावार्थ
भावार्थ — १. हम शक्तिशाली बनकर जीवन-यात्रा को सफलता से चलाएँ २. पार्थिव भोगों में न फँसकर आत्मा का अन्वेषण करें, तभी जीवन दीप्त होगा।
विषय
वीर नेता का कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( वाजिन्) वेगवान अश्व के समान बलवान् एवं संग्राम में शूर पुरुष ! (स्वम् ) तू ( पृथिवीम् आक्रम्य ) पृथिवी पर आक्रमण करके (रुचा) दीप्ति या कान्ति या अपनी रुचि प्रीति के अनुसार (अग्निम् ) अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष या उस पद को ( इच्छ ) चाह । ( भूम्या ) भूमि पर ( वृत्त्वाय) पूर्ण अधिकार करके तू ( नः ) हमें ( ब्रूहि ) स्वयं बतला ( यतः ) जहां से हम ( तं ) उस ज्ञानवान् तेजस्वी पुरुष को ( खनेम ). प्राप्त करें या जहां उसको स्थापित करें | शत० ६ । ३ । ३। ११ ॥ भूगर्भ विद्या पक्ष में- इसी प्रकार विद्वान् पुरुष ही बतलावे कि भूमि सुवर्ण रूप तेजोमय पदार्थ कहां से प्राप्त करें ।
टिप्पणी
० भूमे' 'वृत्वाय०' इति काण्व० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिः साध्वा वा ऋषयः । अग्निरथो वा देवता । निचृदनुष्टुप् । गांधारः॥
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी भूगर्भ व अग्निविद्या याद्वारे पृथ्वीवरील पदार्थांची सूक्ष्म रीतीने परीक्षा करून उत्साहाने सुवर्ण व रत्ने प्राप्त करावीत व उत्खनन करणाऱ्या कामगारांना या विद्या शिकवाव्यात.
विषय
माणसाने मनुष्य-जन्म मिळाल्यानंतर आणि विद्या प्राप्त केल्यानंतर काय करावे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (राज्यातील प्रजाजन वा राष्ट्रातील नागरिक राजा/राष्ट्राध्यक्षाला म्हणत आहेत) हे (वाजिन्) प्रशंसनीय ज्ञानसंपन्न सभापती विद्वान राजा, (त्वम्) आपण (रुचा) आपल्या इच्छेप्रमाणे (नियोजन व नीतीप्रमाणे) शत्रूंना (आक्रम्य) पादाक्रान्त करून (पृथिवीम्) पृथ्वीचे राज्य आणि (अग्निम्) विद्या यांची (इचल) इच्छा वा कामना करा (समस्त भूमीवर तुमचे राज्य होण्याच्या योजना करा) आणि त्या (भूम्या:) पृथ्वीवरील विशाल राज्यात (न:) आम्हाला (प्रजाजनांला) (वृत्वाय) स्वीकार करा (आम्हाला नागरिक होऊ द्या) तसेच आपण आमच्याकरिता (बृहि) भुगर्भ विद्या आणि अग्निविद्येचा उपदेश करा की (यत:) ज्यामुळे (वयम्) आम्ही (तम्) त्या विद्येत (रवनेम) प्रविष्ट होऊ (त्या विद्येत प्रवीण होऊ शकू) ॥19॥
भावार्थ
भावार्थ - मनुष्यांना (राष्ट्रातील नागरिकांना) पाहिजे की त्यांनी भूगर्भविद्या आणि अग्निविद्येचे ज्ञान प्राप्त करून पृथ्वीवरील पदार्थांचे चांगल्याप्रकारे परीक्षण, करावे त्यांच्या गुणांचे ज्ञान संपादित करावे) आणि मोठ्या उत्साहाने सुवर्ण आदी धातू व रत्न प्राप्त करावेत. तसेच भूमी खणण्याच्या कामी निष्णात असा सेवक, कर्मचारी, श्रमिक आदीना या विद्येचा उपदेश द्यावा (त्यांना या कार्यात प्रशिक्षण द्यावे) ॥19॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned King, according to thy desire, trample upon the foes, hanker after sovereignty and knowledge, and having accepted us as thy subjects on the earth, instruct us in geology and electricity ; so that we may use that knowledge.
Meaning
Hero of light, speed and power, having shaken the enemies and having settled the earth in peace, you take up agni (power and gold) with interest and excitement, and ask us to go over the land so that we may dig out and develop the same.
Translation
О courser (the sun), moving all over the earth, search for the fire blazing with lustre. Touching a particular spot of the earth, point out to us, whence we may dig it up. (1)
Notes
According to Dayananda, there is an exhortation for research in the science of fire (energy) here. Vrtvaya, from वृ वर्तने, to exist, to be present. But क्त्वो यक् (Astádhyayr ; VII. 1. 47), suffix yak is added to туй, making it mean to touch.
बंगाली (1)
विषय
মনুষ্যজন্ম প্রাপ্য বিদ্যা অধীত্যাতঃ কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
মনুষ্যজন্ম পাইয়া এবং বিদ্যা পড়িয়া পশ্চাৎ কী করিবে এই বিষয়ে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (বাজিন্) প্রশংসিত জ্ঞানযুক্ত সভাপতি বিদ্বান্ রাজা ! (ত্বম্) আপনি (রূচা) প্রীতিপূর্বক শত্রুদিগকে (আক্রম্য) পদাক্রান্ত করুন (পৃথিবীম্) ভূমির রাজ্য এবং (অগ্নিম্) বিদ্যার (ইচ্ছ) ইচ্ছা করুন এবং (ভূম্যাঃ) পৃথিবীর মধ্যে (নঃ) আমাদিগকে (বৃত্বায়) স্বীকার করিয়া আমাদের জন্য (ব্রূহি) ভূগর্ভ ও অগ্নিবিদ্যার উপদেশ করুন (য়তঃ) যদ্দ্বারা (বয়ম্) আমরা (তম্) সেই বিদ্যা মধ্যে (খনেম) প্রবিষ্ট হই ॥ ১ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- মনুষ্যদিগের উচিত যে, ভূগর্ভ ও অগ্নিবিদ্যা দ্বারা পৃথিবীর পদার্থগুলিকে সম্যক্ প্রকার পরীক্ষা করিয়া সুবর্ণাদি রত্ন উৎসাহ সহ প্রাপ্ত হইবে এবং যে পৃথিবী খননকারী ভৃত্য তাহাদিগকে সেই বিদ্যার উপদেশ করিবে ॥ ১ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
আ॒ক্রম্য॑ বাজিন্ পৃথি॒বীম॒গ্নিমি॑চ্ছ রু॒চা ত্বম্ ।
ভূম্যা॑ বৃ॒ত্বায়॑ নো ব্রূহি॒ য়তঃ॒ খনে॑ম॒ তং ব॒য়ম্ ॥ ১ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
আক্রম্যেত্যস্য ময়োভূর্ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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