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यजुर्वेद अध्याय - 11

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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 68
    ऋषिः - आत्रेय ऋषिः देवता - अम्बा देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    48

    मा सु भि॑त्था॒ मा सु रि॒षोऽम्ब॑ धृ॒ष्णु वी॒रय॑स्व॒ सु। अ॒ग्निश्चे॒दं क॑रिष्यथः॥६८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा। सु। भि॒त्थाः॒। मा। सु। रि॒षः॒। अम्ब॑। धृ॒ष्णु। वी॒रय॑स्व। सु। अ॒ग्निः। च॒। इ॒दम्। क॒रि॒ष्य॒थः॒ ॥६८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा सु भित्था मा सु रिषो म्ब धृष्णु वीरयस्व सु । अग्निश्चेदङ्करिष्यथः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मा। सु। भित्थाः। मा। सु। रिषः। अम्ब। धृष्णु। वीरयस्व। सु। अग्निः। च। इदम्। करिष्यथः॥६८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 68
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मातापितरौ प्रति पुत्रादयः किं किं ब्रूयुरित्याह॥

    अन्वयः

    हे अम्ब! त्वमस्मान् विद्यातो मा सु भित्था मा सुरिषो धृष्णु सुवीरयस्व चैवं कुर्वन्तौ युवां मातापुत्रावग्निरिवेदं करिष्यथः॥६८॥

    पदार्थः

    (मा) (सु) (भित्था) भेदं कुर्य्याः (मा) (सु) (रिषः) हिंस्याः (अम्ब) मातः (धृष्णु) दार्ढ्यम् (वीरयस्व) आरब्धस्य कर्म्मणः समाप्तिमाचर (सु) (अग्निः) पावक इव (च) (इदम्) (करिष्यथः) करिष्यमाणं साधयिष्यथः। [अयं मन्त्रः शत॰६.६.२.५ व्याख्यातः]॥६८॥

    भावार्थः

    माता सुसन्तानान् सुशिक्षेत यत इमे परस्परं प्रीता भवेयुर्वीराश्च यत्कर्त्तव्यं तत्कुर्युरकर्त्तव्यं च नाचरेयुः॥६८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर माता-पिता के प्रति पुत्रादि क्या-क्या कहें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अम्ब) माता! तू हम को विद्या से (मा) मत (सुभित्थाः) छुड़ावे और (मा) मत (सुरिषः) दुःख दे (धृष्णु) दृढ़ता से (सुवीरयस्व) सुन्दर आरम्भ किये कर्म्म की समाप्ति कर। ऐसे करते हुए तुम माता और पुत्र दोनों (अग्निः) अग्नि के समान (च) (इदम्) करने योग्य इस सब कर्म्म को (करिष्यथः) आचरण करो॥६८॥

    भावार्थ

    माता को चाहिये कि अपने सन्तानों को अच्छी शिक्षा देवे, जिससे ये परस्पर प्रीतियुक्त और वीर होवें और जो करने योग्य है वही करें, न करने योग्य कभी न करें॥६८॥

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    विषय

    अ-भेद्य

    पदार्थ

    पति पत्नी से कहता है कि १. ( सु ) = [ सु अति = स्वति पूजायाम् ] हे प्रशंसनीय पत्नि! मा ( भित्थाः ) = तू मेरी मित्रता से पृथक् मत होना, तेरा और मेरा मनभेद न हो। २. ( सु ) = हे उत्तम जीवनवाली! ( मा रिषः ) = तूने हिंसित नहीं होना। वस्तुतः पति-पत्नी की मित्रता ठीक बनी रहे तो घर फूलता-फलता है, हिंसित नहीं होता। ३. ( अम्ब ) = हे मेरी सन्तानों की माता! तू ( धृष्णु ) = प्रगल्भता से ( वीरयस्व ) = वीर कर्म करनेवाली बन। माता को चाहिए कि उसका कोई भी कर्म निर्बल न हो, वह विघ्नों से घबरानेवाली न हो। ४. हे मातः! तू ( अग्निः च ) = और यह अग्नि ( इदम् ) = इस पाचन-कर्म को ( सुकरिष्यथः ) = उत्तमता से करोगे।

    भावार्थ

    भावार्थ — १. पत्नी को पति के साथ अभिन्न मैत्रीपूर्वक रहना चाहिए। २. उसके प्रत्येक कर्म में शक्ति का प्रकाश हो। ३. वह पाचन-कर्म को उत्तमता से करनेवाली हो।

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    विषय

    पति पत्नी और राजा प्रजा का परस्पर कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे राजा के अधीन प्रजे ! एवं पुरुष के अधीन स्त्रि ! तू ( मा सु भित्थाः ) राजा से एवं अपने पालक पति से भेद या द्रोह मत कर । ( मा सु रिषः ) अपने हित के लिये ही कभी विनष्ट मत हो, अपना नाश मत कर या अपने पालक पति या राजा का घात मत कर। हे ( अम्ब ) हे स्त्रि ! पुत्रों की माता के समान तू ( धृष्णु ) दृढ़त्ता से ( सु वीरयस्व ) अपने ही हितार्थ पराक्रम बल के कार्य कर । तू ( अग्निः च ) अग्नि के समान तेजस्वी राजा या अग्नितत्व प्रधान पति, वीर्यवान् पुरुष दोनों मिलकर राज्य के समस्त कार्य को और स्त्री पुरुष दोनों मिलकर गृहस्थ कार्य को ( करिष्यथः ) करें ॥ शत० ६ । ६ । २ । ५ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उखा अम्बा वा देवता । गायत्री । षड्जः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    मातेने आपल्या मुलांना चांगले शिक्षण द्यावे. ज्यामुळे ते परस्पर प्रेमळ बनतील व वीर होतील. जे करण्यायोग्य आहे तेच करावे. जे करण्यायोग्य नाही ते कधीही करू नये.

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    विषय

    आता माता-पित्यांना पुत्रादींनी काय म्हणावे, पुढच्या मंत्रात याविषयी कथन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (पुत्र-पुत्री आपल्या मातेला उद्देशून) हे (अम्ब) माते, तू आम्हाला विद्येपासून (मा) (सुभित्या:) दूर करू नकोस (आम्हास भरपूर शिक्षण दे) आम्हास (मा) (सुरिष:) कधीही दु:खी करू नकोस. (धृष्णु) आम्ही दृढतेने वा दृढ निश्चयाने (सुधीरयस्व) आरंभ केलेल्या सत्कर्माला पूर्ण करण्याची प्रेरणा दे. (गृहस्थपिता म्हणतो) हे माता व पुत्र तुम्ही दोघे (अग्नि:) अग्नीप्रमाणे (च) (इदम्) करणीय अशी कर्मोच (करिष्यय) करा ॥68॥

    भावार्थ

    भावार्थ - आई-वडीलांनी आपल्या मुलामुलींना चांगले शिक्षण द्यावे की ज्यामुळे ते एकमेकाचे मित्रवत राहतील आणि वीर होतील. तसेच पुत्रादींनी करण्यास योग्य अशीच कर्मे करावीत, कुकृत्य करू नये ॥68॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O mother, wean us not from education, harm us not. Accomplish with determination the task undertaken. May thou and thy son thus, resolute like fire, finish this task worth doing.

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    Meaning

    Mother, alienate us not from learning. Hurt us not to ruin. Proud and bold, be valiant and take us to the end of the job with success. Mother and father/ Mother and child, doing thus bold and fine together like Agni, fire and the sun, you will accomplish the task on hand.

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    Translation

    O mother clay, do not get cracked, do not get injured. Carry on this work patiently to its end. You and the fire will accomplish it. (1)

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনর্মাতাপিতরৌ প্রতি পুত্রাদয়ঃ কিং কিং ব্রূয়ুরিত্যাহ ॥
    পুনঃ মাতা-পিতার প্রতি পুত্রাদি কী কী বলিবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (অম্ব) মাতা ! তুমি আমাদেরকে বিদ্যা হইতে (মা) না (সুভিত্থা) পরিত্যাগ করিবে এবং (মা) না (সুরিষঃ) দুঃখ দিবে । (ধৃষ্ণু) দৃঢ়তাপূর্বক (সুরীরয়স্ব) সুন্দর আরম্ভ কৃত কর্ম্মের সমাপ্তি কর । এমন করিতে থাকিয়া তুমি মাতাও পুত্র উভয়ে (অগ্নিঃ) অগ্নির ন্যায় (চ) (ইদম্) করণীয় এই সব কর্ম্মের (করিষ্যথঃ) আচরণ কর ॥ ৬৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- মাতার উচিত যে স্বীয় সন্তানদিগকে সুশিক্ষা প্রদান করিবে যাহাতে ইহারা পরস্পর প্রীতিযুক্ত ও বীর হয় এবং যাহা করণীয় তাহাই যেন করে, অকরণীয় কখনও না করে ॥ ৬৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    মা সু ভি॑ত্থা॒ মা সু রি॒ষোऽম্ব॑ ধৃ॒ষ্ণু বী॒রয়॑স্ব॒ সু ।
    অ॒গ্নিশ্চে॒দং ক॑রিষ্যথঃ ॥ ৬৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    মা স্বিত্যস্য আত্রেয় ঋষিঃ । অম্বা দেবতা । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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