यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 44
ऋषिः - त्रित ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
136
स्थि॒रो भ॑व वी॒ड्वङ्गऽआ॒शुर्भ॑व वा॒ज्यर्वन्। पृ॒थुर्भ॑व सु॒षद॒स्त्वम॒ग्नेः पु॑रीष॒वाह॑णः॥४४॥
स्वर सहित पद पाठस्थि॒रः। भ॒व॒। वी॒ड्व᳖ङ्ग॒ इति॑ वी॒डुऽअ॑ङ्गः। आ॒शुः। भ॒व॒। वा॒जी। अ॒र्व॒न्। पृ॒थुः। भ॒व॒। सु॒षदः॑। सु॒सद॒ इति॑ सु॒ऽसदः॑। त्वम्। अ॒ग्नेः। पु॒री॒ष॒वाह॑णः। पु॒री॒ष॒वाह॑न॒ इति॑ पुरीष॒ऽवाह॑नः ॥४४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्थिरो भव वीड्वङ्गऽआशुर्भव वाज्यर्वन् । पृथुर्भव सुषदस्त्वमग्नेः पुरीषवाहणः ॥
स्वर रहित पद पाठ
स्थिरः। भव। वीड्वङ्ग इति वीडुऽअङ्गः। आशुः। भव। वाजी। अर्वन्। पृथुः। भव। सुषदः। सुसद इति सुऽसदः। त्वम्। अग्नेः। पुरीषवाहणः। पुरीषवाहन इति पुरीषऽवाहनः॥४४॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पितरौ स्वापत्यानि कथं शिक्षेयातामित्युपदिश्यते॥
अन्वयः
हे अर्वन् पुत्र! त्वं विद्याग्रहणाय स्थिरो भव, वाजी वीड्वङ्ग आशुर्भव। त्वमग्नेः सुषदः पुरीषवाहणः पृथुर्भव॥४४॥
पदार्थः
(स्थिरः) निश्चलः (भव) (वीड्वङ्गः) वीडूनि दृढानि बलिष्ठान्यङ्गानि यस्य सः (आशुः) शीघ्रकारी (भव) (वाजी) प्राप्तनीतिः (अर्वन्) विज्ञानयुक्त (पृथुः) विस्तृतसुखः (भव) (सुषदः) यः शोभनेषु व्यवहारेषु सीदति सः (त्वम्) (अग्नेः) पावकस्य (पुरीषवाहणः) यः पुरीषाणि पालनादीनि कर्माणि वाहयति प्रापयति सः। [अयं मन्त्रः शत॰६.४.४.३ व्याख्यातः]॥४४॥
भावार्थः
हे सुसन्तानाः! युष्माभिर्ब्रह्मचर्येण शरीरबलं विद्यासुशिक्षाभ्यामात्मबलं पूर्णं दृढं कृत्वा स्थिरतया रक्षा विधेया। आग्नेयाऽस्त्रादिना शत्रुविनाशश्चेति मातापितरः स्वसन्तानान् सुशिक्षेयुः॥४४॥
हिन्दी (3)
विषय
अब माता-पिता अपने सन्तानों को किस प्रकार शिक्षा करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (अर्वन्) विज्ञानयुक्त पुत्र! तू विद्याग्रहण के लिये (स्थिरः) दृढ़ (भव) हो (वाजी) नीति को प्राप्त होके (वीड्वङ्गः) दृढ़ अति बलवान् अवयवों से युक्त (आशुः) शीघ्र कर्म करने वाला (भव) हो (त्वम्) तू (अग्नेः) अग्निसंबन्धी (सुषदः) सुन्दर व्यवहारों में स्थित और (पुरीषवाहणः) पालन आदि शुभ कर्मों को प्राप्त कराने वाला (पृथुः) सुख का विस्तार करने हारा (भव) हो॥४४॥
भावार्थ
हे अच्छे सन्तानो! तुम को चाहिये कि ब्रह्मचर्य्य सेवन से शरीर का बल और विद्या तथा अच्छी शिक्षा से आत्मा का बल पूर्ण दृढ़ कर स्थिरता से रक्षा करो और आग्नेय आदि अस्त्रविद्या से शत्रुओं का विनाश करो। इस प्रकार माता-पिता अपने सन्तानों को शिक्षा करें॥४४॥
विषय
प्रभु का त्रित को उपदेश
पदार्थ
गत मन्त्र का अन्तिम वाक्य था ‘मपी-तुली क्रियावाले को प्रभु ज्ञानोपदेश देते हैं’। प्रस्तुत मन्त्र में वही उपदेश निर्दिष्ट हुआ है। उपदेश यह है— १. ( स्थिरो भव ) = तू स्थिर हो— चञ्चलता को छोड़ दे, प्रतिक्षण इधर-उधर भागा न फिर।
२. ( वीड्वङ्गः ) = दृढ़ अङ्गोंवाला हो। व्यर्थ की चञ्चलताओं को छोड़कर तू शान्त-वृत्तिवाला बन और अपनी शक्ति को नष्ट न होने देते हुए दृढ़ व पुष्ट अङ्गोंवाला हो।
३. ( आशुःभव ) = कर्मों में सदा व्याप्तिवाला हो अथवा आलस्य को छोड़कर शीघ्रता से कार्यों को करनेवाला बन। ( वाजी ) = शक्तिशाली हो। ( अर्वन् ) = [ अर्व हिंसायाम् ] मार्ग में आनेवाले विघ्नों को तू नष्ट करनेवाला हो। विघ्नों से न घबराता हुआ तू शक्ति-सम्पन्नता से कार्यों को शीघ्रता से पूर्ण करनेवाला हो।
४. ( पृथुर्भव ) = तू विशाल हृदयवाला हो। ( सुषदः ) = उत्तमता से इस घर में बैठनेवाला हो अथवा सदा उत्तम कार्यों में स्थित हो।
५. इस प्रकार ( त्वम् ) = तू ( अग्नेः ) = एक अग्रणी नेता के ( पुरीषवाहणः ) = पालन-पूरणादि उत्तम कर्मों को वहन करनेवाला होता है, अर्थात् अग्रणी बनकर तू इस प्रकार कार्य करता है कि सभी का पालन हो और उनकी कमियाँ दूर होकर वे पूरण हो पाएँ।
भावार्थ
भावार्थ — हम अचञ्चलता, दृढ़ाङ्गता, कार्यव्याप्तता, शक्तिमत्ता = विघ्नों का दूरीकरण— हृदय की विशालता, उत्तम कार्यों में स्थिति तथा नेता के पालनात्मक गुणों को धारण करनेवाले बनें।
विषय
अश्व और राजा का दृढ ऐश्वर्यवान् आशुकारी होना ।
भावार्थ
हे ( अर्वन् ) विज्ञानयुक्त ! अति शीघ्रगामिन् ! विद्वन् वीर ! ब्रह्मचारिन् ! तू ( स्थिरः ) स्थिर (वीड्वङ्गः) दृढ़ अंगोंवाला ( आशुः ) अश्व के समान वेगवान् और ( वाजी ) ज्ञानवान्, बलवान्, ऐश्वर्यवान् ( भव ) हो । ( त्वम् ) तू ( पृथुः ) विशाल शरीरवाला ( सुषदः ) सुख से आश्रय करने योग्य या गुणों का उत्तम आश्रय और ( अग्नेः ) अग्रणी राजा के लिये ( पुरीषवाहनः ) उसके ऐश्वर्य को वहन करनेवाला ( भव ) हो । अश्व के पक्ष में स्पष्ट है ॥ शत० ६ । ४ । ४ । ३॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिः साध्या वा ऋषयः।रासभो अग्निर्देवता । विराडनुष्टुप् । गान्धारः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
हे उत्तम संतानांनो ! ब्रह्मचर्याने शरीराचे बल व विद्या आणि उत्तम शिक्षण यांनी आत्मबल वाढवा व स्थिरतेने त्यांचे रक्षण करा. आग्नेय अस्त्र-शस्त्र विद्येने शत्रूंचा नाश करा. अशा प्रकारे आई-वडिलांनी आपल्या मुलांना शिक्षण द्यावे.
विषय
आता माता-पित्याने आपल्या संतानांना कोणत्या प्रकारचे शिक्षण द्यावे, याविषयी पुढील मंत्रात कथन केले आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (माता-पिता पुत्रास म्हणत आहेत) हे अर्बन्) ज्ञानयुक्त (ज्ञान घेण्यास पात्र व समर्थ) पुत्र, तू आता विद्या ग्रहणाकरिता (स्थिर:) दृढ हो (विद्याध्ययनाचा दृढ संकल्पकर) तू (वाजी) योग्य अशी पात्रता प्राप्त करून (वीड्वड्ग) दृढ आणि शक्तिमान अवयवांनी (आशु:) शीघ्र कर्म करणारा (भव) हो (कोणतेही कार्य शीघ्र करण्याची रीती शिकून घे) (अग्ने:) तू अग्निविषयक (सुषद:) सुंदर कार्यांमध्ये मग्न रहा आणि (पुरीषवाहण:) पालनआदी जे उत्तम कर्म वा व्रत आहेत, त्यांसाठी तत्पर हो आणि (पृथु:) (सर्वासाठी वा परिवारासाठी) सुखाचा विस्तार करणारा (भव) हो ॥44॥
भावार्थ
भावार्थ - माता-पित्याने आपल्या संतानांना अशाप्रकारे उपदेश द्यावा की - “हे श्रेष्ठ पुत्र, हे पुत्री, तुम्ही ब्रह्मचर्य पालन करून शरीराचे बल वाढवा आणि विद्या व उत्तम ज्ञानाने आत्मिक शक्ती प्राप्त करून दृढ राहून स्वत:चे रक्षण व ब्रह्मचर्याचे रक्षण करा. तसेच आग्नेय आदी अस्त्रांची विद्या शिकून शत्रूंचा विनाश करा. ”॥44॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O intelligent son, steady be thou to acquire knowledge, learn statesmanship, be stout in body, be active, learn the use of fiery instruments, be diffuser of happiness, and teacher of moral duty of protecting the weak.
Meaning
Child, keen for knowledge, be firm in the matter of education. Strong of body, sharp and smart in action, fast in learning and doing, gain practical knowledge of life’s affairs. Bright as fire and light, create a place of dignity for yourself. Enjoy great prosperity and support the people around.
Translation
Be steady with firm and strong limbs. O courser, be a racer, fleet of foot. Be big enough to sit upon comfortably. You are the carrier of fodder for fire. (1)
Notes
Purisavahanah, purisa is fodder, beneficial for cattle: one that carries that fodder.
बंगाली (1)
विषय
অথ পিতরৌ স্বাপত্যানি কথং শিক্ষেয়াতামিত্যুপদিশ্যতে ॥
এখন মাতা-পিতা স্বীয় সন্তানদিগকে কীভাবে শিক্ষা প্রদান করিবেন এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (অর্বন্) বিজ্ঞানযুক্ত পুত্র ! তুমি বিদ্যাগ্রহণ হেতু (স্থিরঃ) দৃঢ় (ভব) হও । (বাজী) নীতি প্রাপ্ত হইয়া (বীড্বঙ্গ) দৃঢ় অত্যন্ত বলবান্ অবয়বযুক্ত (আশুঃ) শীঘ্র কর্ম সম্পাদনকারী (ভব) হও । (ত্বম্) তুমি (অগ্নেঃ) অগ্নিসম্পর্কীয় (সুষদঃ) সুন্দর ব্যবহারে স্থিত এবং (পুরীষবাহণঃ) পালনাদি শুভ কর্ম প্রদানকারী (পৃথুঃ) সুখের বিস্তারকারী হও ॥ ৪৪ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- হে সুসন্তানগণ ! তোমাদের উচিত ব্রহ্মচর্য্য সেবন দ্বারা শরীরের বল ও বিদ্যা তথা সুশিক্ষা দ্বারা আত্মার বল দৃঢ় করিয়া স্থিরতা পূর্বক রক্ষা করা এবং আগ্নেয়াদি অস্ত্র বিদ্যা দ্বারা শত্রুদিগের বিনাশ করা । এইভাবে মাতা পিতা তাঁহাদের সন্তানদিগকে শিক্ষা দিবে ॥ ৪৪ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
স্থি॒রো ভ॑ব বী॒ড্ব᳖ঙ্গऽআ॒শুর্ভ॑ব বা॒জ্য᳖র্বন্ ।
পৃ॒থুর্ভ॑ব সু॒ষদ॒স্ত্বম॒গ্নেঃ পু॑রীষ॒বাহ॑ণঃ ॥ ৪৪ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
স্থিরো ভবেত্যস্য ত্রিত ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । বিরাডনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal