यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 48
ऋषिः - त्रित ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
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ओष॑धयः॒ प्रति॑गृभ्णीत॒ पुष्प॑वतीः सुपिप्प॒लाः। अ॒यं वो॒ गर्भ॑ऽऋ॒त्वियः॑ प्र॒त्नꣳ स॒धस्थ॒मास॑दत्॥४८॥
स्वर सहित पद पाठओष॑धयः। प्रति॑। गृ॒भ्णी॒त॒। पुष्प॑वती॒रिति॒ पुष्प॑ऽवतीः। सु॒पि॒प्प॒ला इति॑ सुऽपिप्प॒लाः। अ॒यम्। वः॒। गर्भः॑। ऋ॒त्वियः॑। प्र॒त्नम्। स॒धस्थ॒मिति॑ स॒धऽस्थ॑म्। आ। अ॒स॒द॒त् ॥४८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ओषधयः प्रति गृभ्णीत पुष्पवतीः सुपिप्पलाः । अयँवो गर्भऽऋत्वियः प्रत्नँ सधस्थमासदत् ॥
स्वर रहित पद पाठ
ओषधयः। प्रति। गृभ्णीत। पुष्पवतीरिति पुष्पऽवतीः। सुपिप्पला इति सुऽपिप्पलाः। अयम्। वः। गर्भः। ऋत्वियः। प्रत्नम्। सधस्थमिति सधऽस्थम्। आ। असदत्॥४८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
स्त्रियोऽपि किं किमाचरेयुरित्याह॥
अन्वयः
हे स्त्रियः! यूयं या ओषधयः सन्ति, याभ्योऽयमृत्वियो गर्भो वः प्रत्नं सधस्थं गर्भाशयमासदत्, ताः पुष्पवतीः सुपिप्पला ओषधीः प्रति गृभ्णीत॥४८॥
पदार्थः
(ओषधयः) सोमादयः (प्रति) (गृभ्णीत) गृह्णीत (पुष्पवतीः) श्रेष्ठानि पुष्पाणि यासां ताः (सुपिप्पलाः) शोभनफलाः (अयम्) (वः) युष्माकम् (गर्भः) यासां ताः (ऋत्वियः) ऋतुः प्राप्तोऽस्य (प्रत्नम्) पुरातनम् (सधस्थम्) सहस्थानम् (आ) (असदत्) प्राप्नुयात्। [अयं मन्त्रः शत॰६.४.४.१७ व्याख्यातः]॥४८॥
भावार्थः
मातापितृभ्यां कन्याभ्यो व्याकरणादिकमध्याप्य वैद्यकशास्त्रमप्यध्यापनीयम्। यत इमा आरोग्यकारिका गर्भसंपादिनीरोषधीर्विज्ञाय सुसन्तानान्युत्पाद्य सततं प्रमोदेरन्॥४८॥
हिन्दी (3)
विषय
स्त्रियों को क्या-क्या आचरण करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे स्त्रियो! तुम लोग जो (ओषधयः) सोमलता आदि ओषधि हैं जिन से (अयम्) यह (ऋत्वियः) ठीक ऋतु काल को प्राप्त हुआ (गर्भः) गर्भ (वः) तुम्हारे (प्रत्नम्) प्राचीन (सधस्थम्) नियत स्थान गर्भाशय को (आ असदत्) प्राप्त होवे उन (पुष्पवतीः) श्रेष्ठ पुष्पों वाली (सुपिप्पलाः) सुन्दर फलों से युक्त ओषधियों को (प्रतिगृभ्णीत) निश्चय करके ग्रहण करो॥४८॥
भावार्थ
माता-पिता को चाहिये कि अपनी कन्याओं को व्याकरण आदि शास्त्र पढ़ा के वैद्यक शास्त्र पढ़ावें, जिससे ये कन्या लोग रोगों का नाश और गर्भ का स्थापन करने वाली ओषधियों को जान और अच्छे सन्तानों को उत्पन्न करके निरन्तर आनन्द भोगें॥४८॥
विषय
आचार्यकुल से विद्यार्थी का समावर्तन
पदार्थ
१. ( ओषधयः ) = हे दोषों का दहन करनेवाले आचार्यो! ( पुष्पवतीः ) = उत्तम पुष्पोंवाली ( सुपिप्पलाः ) = उत्तम फलोंवाली वाणियों को ( प्रतिगृभ्णीत ) = ग्रहण करो। ‘अर्थं वाचः पुष्पफलमाह, यज्ञदैवते पुष्पफले देवताध्यात्मे वा’ [ नि० १।१८ ]। [ क ] अर्थ ही वाणी का पुष्पफल है। इस प्रकार आचार्य अर्थसहित वाणी का ज्ञान रखता है। [ ख ] अथवा ‘यज्ञ’ वाणी के पुष्प हैं और देवता उसके फल हैं, अतः आचार्य वाणी में निर्दिष्ट यज्ञों को करनेवाला और देवताओं के ज्ञान को प्राप्त करानेवाला है। [ ग ] अथवा देवताओं का, अर्थात् प्राकृतिक शक्तियों का ज्ञान वाणी का पुष्प है और अध्यात्म व ब्रह्म-ज्ञान वाणी का फल है। एवं, आचार्य अपरा व परा दोनों ही ज्ञानों को प्राप्त करानेवाला होता है। वह सम्पूर्ण ज्ञान का पारङ्गत है। ब्रह्मचर्यसूक्त में इसी दृष्टि से आचार्य को ज्ञान का समुद्र कहा है।
२. आचार्य अपने समीप आये हुए विद्यार्थी को गर्भ में धारण करता है और उसे प्रकृति, जीव व परमात्मा का ज्ञान न होने तक, अर्थात् तीन रात्रियों तक उदर में धारण करता है। आचार्यों से कहते हैं कि ( अयम् ) = यह ( वः ) = आपका ( गर्भः ) = गर्भ में वास करनेवाला ( ऋत्वियः ) = समय पर दुबारा जन्म लेनेवाला ब्रह्मचारी है। ‘तं जातं द्रष्टुं अभिसंयन्ति देवाः’ = इस उत्पन्न हुए विद्यार्थी को देखने के लिए बड़े-बडे़ विद्वान् आते हैं।
३. अब यह विद्यार्थी आचार्यकुल से समावृत्त होकर घर में लौटता है और ( प्रत्नम् ) = अपने पुराने ( सधस्थम् ) = परिवार के व्यक्तियों के मिलकर ठहरने के स्थान में, अर्थात् पितृगृह में ( आसदत् ) = आसीन होता है। सारे अध्ययनकाल में २४, ४४ वा ४८ वर्ष इसका घर से किसी प्रकार का सम्बन्ध न रहा था, कुल ही उसका घर बन गया था। आज वह फिर पुराने घर में लौटता है।
भावार्थ
भावार्थ — आचार्य परा व अपरा विद्या में निपुण हैं। विद्यार्थी आचार्य के समीप विद्या-ग्रहण के काल तक रहता है। समावृत्त होकर पुराने पितृगृह में लौटता है।
विषय
औषधियों और प्रजाओं का वर्णन।
भावार्थ
भा०- ( ओषधयः ) ओषधियां जिस प्रकार ( पुष्पवतीः ) फूल वाली और ( सुपिप्पलाः ) उत्तम फलवाली होकर गर्भ ग्रहण करती हैं, उसी प्रकार हे ( ओषधयः ) वीर्य को धारण करने में समर्थ स्त्रियो ! आप सभी ( पुष्पवतीः ) रजस्वला एवं ( सुपिप्पला : ) उत्तम सफल होकर ( प्रतिगृभ्णीत ) प्रत्येक पृथक् २ गर्भ ग्रहण करो । ( व: ) तुम्हारा (अयं ) यह ( गर्भः ) ग्रहण किया हुआ गर्भ ( ऋत्वियः ) ऋतुकाल में प्राप्त होकर ( प्रत्नम् ) अपने प्रथम प्राप्त ( सधस्थम् ) स्थान पर ही (आसदत् ) स्थिर रहे । राजा के पक्ष में- हे ( ओषधयः ) वीर प्रजाजनो ! आप लोग (पुष्पवती: ) पुष्टिप्रद अन्न आदि से समृद्ध और ( सुपिप्पलाः) उत्तम रक्षा साधनों से युक्त होकर ( प्रतिगृभ्णीत ) प्रत्येक सुरक्षित रहो । ( अयं वः ) यह राजा तुम्हें ( गर्भः ) ग्रहण या वश करने में समर्थ है। वह (प्रत्नं ) पूर्व प्राप्त (सधस्थम् ) उच्च आश्रय को (आसदत् ) प्राप्त किये रहे, अपने पूर्व पद से न गिरे ॥ शत० ६ । ४ । ४ । १७ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिः साध्या वा ऋषयः।अग्निर्देवता । भुरिगनुष्टुप् । गांधारः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
आई-वडिलांनी आपल्या मुलींना व्याकरण इत्यादी शास्त्र शिकवून वैद्यकशास्रही शिकवावे. ज्यामुळे त्यांना रोगांचा नाश करण्याचे व गर्भ स्थापन करणाऱ्या औषधांचे ज्ञान व्हावे आणि चांगल्या संतानांना जन्म देऊन सदैव आनंद भोगता यावा.
विषय
स्त्रियांनी आपले आचरण कसे ठेवावे, पुढील मंत्रात याविषयी सांगितले आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे स्त्रियांनो, तुम्ही (औषधय:) सोमलता आदी औषधींचा उपयोग करा, ज्यामुळे (अयम्) हा (ऋत्विय:) नियमित ऋतुकाळ प्राप्त करून (गर्भ:) गर्भ (व:) तुमच्या (प्रत्नम्) (सधस्थम्) प्राचीन (प्राचीनकाळापासून गर्भधारणेसाठी असलेल्या (सधस्थम्) नियत स्थानात म्हणजे गर्भाशयात स्थित होईल, (या गर्भधारणासाठी) तुम्ही (पुष्पवती:) उत्तम फुलें असलेल्या (सुपिप्पला:) सुंदर स्वास्थ्यप्रद औषधींचा (प्रतिगृणीत) अवश्य ग्रहण करीत जा (गर्भधारणेसाठी या औषधींचे सेवन करीत जा) ॥48॥
भावार्थ
भावार्थ - माता-पित्यांनीं आपल्या मुलींना व्याकरण आदी शास्त्र शिकवून नंतर वैद्यकशास्त्राचे अध्यापन करावे की ज्यामुळे या कन्या रोगनाशक आणि गर्भ धारणाकारक औषधींचे ज्ञान मिळवितील आणि उत्तम संताने उत्पन्न करून सदा आनंदित राहतील. ॥48॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O women, use medicinal plants laden with bloom and goodly fruit, so that your conception experienced at the time of menstruation may stay in the womb in its proper place. Use the medicines prepared from nice flowery herbs full of fruits.
Meaning
Come would be mothers (in response to the generosity of nature), take the soothing beauty of the herbal flowers and the nectar-sweets of fruit so that the timely arrival of the coming guest to the maternal womb may be auspicious.
Translation
O herbs, laden with flowers and ample fruit, take in yourselves this fire. This is your child, coming in due season, which has settled in its ancient place. (1)
Notes
Rtviyah, ऋतुकालीन:, one whose due season has агrived, or which comes in due season. Pratnam, पुरातनम्, ancient. Sadhastham, place ог home.
बंगाली (1)
विषय
স্ত্রিয়োऽপি কিং কিমাচরেয়ুরিত্যাহ ॥
স্ত্রীদিগের কী কী আচরণ করা উচিত এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে স্ত্রীগণ ! তোমরা যে (ওষধয়ঃ) সোমলতাদি ওষধি আছে যাহার দ্বারা (অয়ম্) এই (ঋত্বিয়ঃ) ঠিক ঋতুকাল প্রাপ্ত (গর্ভঃ) গর্ভ (বঃ) তোমাদের (প্রত্নম্) প্রাচীন (সধস্থম্) নিশ্চিত স্থান গর্ভাশয়কে (আ অসদৎ) প্রাপ্ত হয়, সেই (পুষ্পবতীঃ) শ্রেষ্ঠ পুষ্পযুক্ত (সুপিপ্পলাঃ) সুন্দর ফলযুক্ত ওষধিসমূহকে (প্রতিগৃভ্ণীত) নিশ্চয় করিয়া গ্রহণ কর ॥ ৪৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- সব মাতা-পিতার উচিত যে, স্বীয় কন্যাদিগকে ব্যাকরণাদি শাস্ত্র পড়াইয়া বৈদ্যক শাস্ত্র পড়াইবে যাহাতে কন্যাগণ রোগের নাশ এবং গর্ভস্থাপক ওষধিসমূহ জানিয়া এবং সুসন্তান উৎপন্ন করিয়া সর্বদা আনন্দ ভোগ করে ॥ ৪৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ওষ॑ধয়ঃ॒ প্রতি॑ গৃভ্ণীত॒ পুষ্প॑বতীঃ সুপিপ্প॒লাঃ ।
অ॒য়ং বো॒ গর্ভ॑ऽঋ॒ত্বিয়ঃ॑ প্র॒ত্নꣳ স॒ধস্থ॒মাऽऽऽস॑দৎ ॥ ৪৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ওষধয় ইত্যস্য ত্রিত ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিগনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধার স্বরঃ ॥
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