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यजुर्वेद अध्याय - 11

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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 6
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः
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    यस्य॑ प्र॒याण॒मन्व॒न्यऽइद्य॒युर्दे॒वा दे॒वस्य॑ महि॒मान॒मोज॑सा। यः पार्थि॑वानि विम॒मे सऽएत॑शो॒ रजा॑सि दे॒वः स॑वि॒ता म॑हित्व॒ना॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑। प्र॒याण॑म्। प्र॒यान॒मिति॑ प्र॒ऽयान॑म्। अनु॑। अ॒न्ये। इत्। य॒युः। दे॒वाः। दे॒वस्य॑। म॒हि॒मान॑म्। ओज॑सा। यः। पार्थि॑वानि। वि॒म॒म इति॑ विऽम॒मे। सः। एत॑शः। रजा॑सि। दे॒वः। स॒वि॒ता। म॒हि॒त्व॒नेति॑ महिऽत्व॒ना ॥६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्य प्रयाणमन्वन्यऽइद्ययुर्देवा देवस्य महिमानमोजसा । यः पार्थिवानि विममे सऽएतशो रजाँसि देवः सविता महित्वना ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य। प्रयाणम्। प्रयानमिति प्रऽयानम्। अनु। अन्ये। इत्। ययुः। देवाः। देवस्य। महिमानम्। ओजसा। यः। पार्थिवानि। विमम इति विऽममे। सः। एतशः। रजासि। देवः। सविता। महित्वनेति महिऽत्वना॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 6
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्याः कस्योपासनं कुर्य्युरित्याह॥

    अन्वयः

    हे योगिनः! युष्माभिर्यस्य देवस्य महिमानं प्रयाणमन्वन्ये देवा ययुः। य एतशः सविता देवो भगवान् महित्वनौजसा पार्थिवानि रजांसि विममे, स इदेव सततमुपास्यो मन्तव्यः॥६॥

    पदार्थः

    (यस्य) परमेश्वरस्य (प्रयाणम्) प्रयान्ति सर्वाणि सुखानि येन तत्प्रकृष्टं प्रयाणम् (अनु) पश्चात् (अन्ये) जीवादयः (इत्) एव (ययुः) प्राप्नुयुः (देवाः) विद्वांसः (देवस्य) सर्वसुखप्रदातुः (महिमानम्) स्तुतिविषयम् (ओजसा) पराक्रमेण (यः) परमेश्वरः (पार्थिवानि) पृथिव्यां विदितानि (विममे) विमानयानवन्निर्मिमीते (सः) (एतशः) सर्वं जगदितः स्वव्याप्त्या प्राप्तः। इणस्तशन्तशसुनौ॥ (उणा॰३।१४७) (रजांसि) सर्वान् लोकान् (देवः) दिव्यस्वरूपः (सविता) सर्वस्य जगतो निर्माता (महित्वना) स्वमहिम्ना। अत्र बाहुलकादौणादिक इत्वनिः प्रत्ययः। [अयं मन्त्रः शत॰६.३.१.१८ व्याख्यातः]॥६॥

    भावार्थः

    ये विद्वांसः सर्वस्य जगतोऽन्तरिक्षेऽनन्तबलेन धर्त्तारं निर्मातारं सुखप्रदं शुद्धं सर्वशक्तिमन्तं सर्वान्तर्यामिणमीश्वरमुपासते, त एव सुखयन्ति नेतरे॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य किस की उपासना करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे योगीपुरुषो! तुम को चाहिये कि (यस्य) जिस (देवस्य) सब सुख देने हारे ईश्वर के (महिमानम्) स्तुति विषय को (प्रयाणम्) कि जिस से सब सुख प्राप्त होवे उस के (अनु) पीछे (अन्ये) जीवादि और (देवाः) विद्वान् लोग (ययुः) प्राप्त होवें (यः) जो (एतशः) सब जगत् में अपनी व्याप्ति से प्राप्त हुआ (सविता) सब जगत् का रचने हारा (देवः) शुद्धस्वरूप भगवान् (महित्वना) अपनी महिमा और (ओजसा) पराक्रम से (पार्थिवानि) पृथिवी पर प्रसिद्ध (रजांसि) सब लोकों को (विममे) विमान आदि यानों के समान रचता है (सः) वह (इत्) ही निरन्तर उपासनीय मानना चाहिये॥६॥

    भावार्थ

    जो विद्वान् लोग सब जगत के बीच पोल में अपने अनन्त बल से धारण करने, रचने और सुख देने हारे सर्वशक्तिमान् सब के हृदयों में व्यापक ईश्वर की उपासना करते हैं, वे ही सुख पाते हैं, अन्य नहीं॥६॥

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    विषय

    प्रभु-स्तुति

    पदार्थ

    १. ( यस्य देवस्य ) = जिस देव के ( प्रयाणम् अनु ) = प्रयाण के निर्देशानुसार ( अन्ये देवाः ) =  अन्य सब देव ( इत् ) = निश्चय से ( ययुः ) = चलते हैं। प्रभु ने इन देवों का जो भी मार्ग निश्चित किया है उसी मार्ग पर ये सब निरन्तर चल रहे हैं। 

    २. ( यस्य ओजसा ) = जिस देव के ओज से ( अन्ये देवाः ) = दूसरे सब देव ( महिमानम् ) = महिमा को ( ययुः ) = प्राप्त होते हैं। प्रभास्मि शशिसूर्ययोः इत्यादि वाक्यों के अनुसार सूर्य और चन्द्रमा आदि को उस प्रभु से ही प्रभा प्राप्त हुई है। तस्य भासा सर्वमिदं विभाति = उसी की चमक से सब पदार्थ चमक रहे हैं। जहाँ कहीं भी विभूति, श्री, व ऊर्ज् है यह सब उस महान् देव का ही अंश है। तेन देवा देवतामग्र आयन् = देवों को देवत्व प्रभु से ही प्राप्त हुआ है। 

    ३. ( यः सविता देवः ) = जो सबका उत्पादक देव ( महित्वना ) = अपनी महिमा से ( पार्थिवानि रजांसि ) = इन सब पार्थिव लोकों को ( विममे ) = विशेष माप से बनाता है। 

    ४. ( सः ) = वही देव ( एतशः ) = [ एतानि शेते ] इन सब लोकों में निवास कर रहा है। उसके निवास से ही सब लोकों का धारण हो रहा है। सूर्यादि में प्रभु का निवास न हो तो वे एक बुझे कोयले की भाँति ही लगेंगे।

    भावार्थ

    भावार्थ — १. प्रभु के प्रशासन में ही सब देव गति कर रहे हैं। २. उसके ओज से ही ये महिमावाले हो रहे हैं। ३. वही इन सबका निर्माण करते हैं। ४. वही इनका धारण करनेवाले हैं।

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    विषय

    सब का नेता अग्रणी परमेश्वर और राजा ।

    भावार्थ

    भा०- ( यस्य देवस्य ) जिस देव के ( ओजसा ) वीर्य से पराक्रम पूर्वक किये गये ( प्रयाणम् ) प्रकृष्ट या गमन के (अनु) पीछे पीछे ( अन्ये देवाः ) अन्य देव, विद्वान्गण ( इत्) भी ( ययुः) गमन करते हैं और जिसके ( महिमानम् अनुययुः ) महान् सामर्थ्य का अन्य विद्वान् अनुकरण करते हैं और ( यः ) जो ( पार्थिवानि ) पृथिवी पर प्रसिद्ध ( रजांसि ) समस्त लोकों को ( महित्वना ) अपने महान् सामर्थ्य से ( विममे ) विविध प्रकार से बनाता है । ( सः ) वह ( एतशः ) सर्व जगत् में व्यापक (देवः) प्रकाशस्वरूप देव ही ( सविता ) सविता, सबका उत्पादक है । शत० ६ । २ । ३ । १८ ॥ राजा के पक्ष में- ( यस्य देवस्य प्रयाणम् अनु ) जिस देव, राजा के प्रयास अर्थात् विजय यात्रा के पीछे ( अन्ये देवाः ययुः ) और राजा लोग गमन करते हैं ( ओजसा ) बल पराक्रम से जिसके (महिमानम् अनुययुः) महान् सामर्थ्य को भी वे अनुकरण करते हैं, जो पृथिवी के समस्त जनों को अपने (महित्वना ) बड़े भारी बल से ( विममे ) वश करता है, ( सः एतशः ) वह सूर्य के समान तेजस्वी ( देव: ) राजा ( सविता इव ) 'सविता' कहा जाता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सविता ऋषिः । सविता देवता । जगती । निषादः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे विद्वान या विश्वाच्या पोकळीत आपले अनन्त बल धारण करणाऱ्या, विश्वाची रचना करणाऱ्या, सुखकारक, शुद्ध, सर्वशक्तिमान व सर्वांच्या अंतःकरणात वास करणाऱ्या व्यापक परमेश्वराची उपासना करतात तेच सुखी होतात, अन्य होत नाहीत.

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    विषय

    मनुष्यांनी कोणाची उपासना करावी, याविषयी

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे योगीजन हो, (यस्य) ज्या (देवस्थ) सर्व सुखदात्या परमेश्वराची (महिमानम्) महिमा आणि स्तुती (प्रयाणम्) सर्वसुखांची प्राप्ती करून देणारी आहेत (त्या स्तुती ईश्वर स्तुती, प्रार्थना उपासनेच्या) (अनु) मागे (अन्ये) जीवांनी आणि (देवा) विद्वज्जनांनी (ययु:) जायला हवे (सर्वांनी परमेश्वराची स्तुती केली पाहिजे, कारण ती सर्वसुख देणारी आहे) (य:) तोच परमात्मा (एतश:) सर्व जगामध्ये व्याप्त असून तोच (सविता) सर्व जगाचा निर्माता आहे, तोच (देव:) शुद्ध स्वरूप भगवान (महित्वना) आपल्या प्रहत्तेने आणि (ओजसा) सामर्थ्याने (पार्थिवावि) पृथ्वीवर असलेल्या (रजांसि) सर्व लोकांची (पदार्थांची) (विममे) लोक आदी यानांची निर्मिती करतात, त्याप्रमाणे जगाची व पदार्थांची रचना करतो. (स:) असा तो महान परमेश्वर (इत्)(एकमेव तोच) सर्वांनी सदैव उपासनीय मानावा ॥6॥

    भावार्थ

    भावार्थ - परमेश्वर सर्व जगामधे, अंतरिक्षात वा शून्यात आपल्या अनंत शक्तिसामर्थ्याने व्यापक असून जगाचा धारक, रचविता आणि सर्वसुखदाता आहे, तोच एकमेव शुद्धस्वरूप आणि सर्व शक्तिमान असून सर्वांच्या हृदयीं विद्यमान आहे, जे विद्वज्जन अशा परमेश्वराची उपासना करतात, तेच सुखी होतात, अन्य कोणी नव्हे ॥6॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O yogis, the learned souls, should follow through contemplation, God, the Embodiment of happiness, and the Giver of peace. The Omnipresent, Effulgent Lord, the creator of the universe, brings into existence the material worlds through His glory and power. He alone deserves worship.

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    Meaning

    The great Lord Savita with His own power and majesty has created all the regions of the earth and heaven. He is the lord of light omnipresent in this world whose great path of Dharma and yoga all the noble people and others have followed with all their power and potential.

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    Translation

    He is divine and resplendent; from Him alone the other gods, the sense-organs, proceed to receive their majesty with power. He verily by His greatness has measured out the terrestrial regions. (1)

    Notes

    Taken from Rgveda V. 81. 3. Prayanam, progress, movement. Anu yayuh, have followed. Etasah एतज्जगत्त्रयं स्थावरजंगमं प्राणभावेन शेते व्याप्नोति य: स:, one who pervades all the three worlds, all the immovable as Well as moving beings as their soul. Parthivani rajainsi,लोका: रजांस्युच्यंते (Nirukta, IV. 19), the worlds are called rajámsi. Material worlds; also the worlds, earth etc.

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    बंगाली (1)

    विषय

    মনুষ্যাঃ কস্যোপাসনং কুর্য়্যুরিত্যাহ ॥
    মনুষ্য কাহার উপাসনা করিবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে যোগীপুরুষগণ ! তোমাদের উচিত যে, (য়স্য) যে (দেবস্য) সর্বসুখদাতা ঈশ্বরের (মহিমানম্) স্তুতি বিষয়কে (প্রয়াণম্) যদ্দ্বারা সকলে সুখ প্রাপ্ত হইবে তদ্ (অনু) পশ্চাৎ (অন্যে) জীবাদি এবং (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ (য়য়ুঃ) প্রাপ্ত হইবে, (য়ঃ) যিনি (এতশঃ) সর্ব জগতে স্বীয় খ্যাতি দ্বারা প্রাপ্ত (সবিতা) সর্ব জগতের রচনাকারী (দেবঃ) শুদ্ধস্বরূপ ভগবান্ (মহিত্বনা) স্বীয় মহিমা এবং (ওজসা) পরাক্রম দ্বারা (পার্থিবানি) পৃথিবীর উপর প্রসিদ্ধ (রজাংসি) সর্ব লোককে (বিমমে) বিমানাদি যান সদৃশ রচনা করেন, (সঃ) তাহাকেই (ইৎ) সর্বদা উপাসনার যোগ্য মানিতে হইবে ॥ ৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে বিদ্বান্গণ সর্ব জগতের মধ্যে অন্তরিক্ষে স্বীয় অনন্ত বল পূর্বক ধারক, রচয়িতা এবং সুখদায়ক শুদ্ধ সর্বশক্তিমান সকলের হৃদয়ে ব্যাপক ঈশ্বরের উপাসনা করেন, তাহারাই সুখলাভ করেন, অন্যে নহে ॥ ৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়স্য॑ প্র॒য়াণ॒মন্ব॒ন্যऽইদ্য॒য়ুর্দে॒বা দে॒বস্য॑ মহি॒মান॒মোজ॑সা । য়ঃ পার্থি॑বানি বিম॒মে সऽএত॑শো॒ রজা॑ᳬंসি দে॒বঃ স॑বি॒তা ম॑হিত্ব॒না ॥ ৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়স্য প্রয়াণমিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । সবিতা দেবতা । নিচৃজ্জগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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