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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 43
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - आर्षी गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    यद्वा॑ कृ॒णोष्योष॑धी॒र्यद्वा॑ वर्षसि भ॒द्रया॒ यद्वा॑ ज॒न्यमवी॑वृधः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । वा॒ । कृ॒णोषि॑ । ओष॑धी: । यत् । वा॒ । वर्ष॑सि । भ॒द्रया॑ । यत् । वा॒ । ज॒न्यम् । अवी॑वृध: ॥७.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्वा कृणोष्योषधीर्यद्वा वर्षसि भद्रया यद्वा जन्यमवीवृधः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । वा । कृणोषि । ओषधी: । यत् । वा । वर्षसि । भद्रया । यत् । वा । जन्यम् । अवीवृध: ॥७.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 43

    भाषार्थ -
    (यद्वा) और जो (ओषधीः) ओषधियों को (कृणोषि) तू पैदा करता है, (यद्वा) और जो (भद्रया) कल्याणकारिणी और सुखदायिनी भावना से (वर्षसि) तू वर्षा करता है, (यद्वा) और जो (जन्यम्) जन समुदाय की (अवीवृधः) वृद्धि करता है:-

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