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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 40
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - आसुरी गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    स य॒ज्ञस्तस्य॑ य॒ज्ञः स य॒ज्ञस्य॒ शिर॑स्कृ॒तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । य॒ज्ञ: । तस्य॑ । य॒ज्ञ: । स: । य॒ज्ञस्य॑ । शिर॑: । कृ॒तम् ॥७.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स यज्ञस्तस्य यज्ञः स यज्ञस्य शिरस्कृतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । यज्ञ: । तस्य । यज्ञ: । स: । यज्ञस्य । शिर: । कृतम् ॥७.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 40

    भाषार्थ -
    (सः) वह सविता (यज्ञः) यज्ञ है, (तस्य) उस सविता का (यज्ञः) यज्ञ है, (सः) वह सविता (यज्ञस्य) यज्ञ का (शिरः कृतम्) सिर रूप में कल्पित किया गया है।

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