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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 44
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - साम्न्यनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    तावां॑स्ते मघवन्महि॒मोपो॑ ते त॒न्वः श॒तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तावा॑न् । ते॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । म॒हि॒मा । उपो॒ इति॑ । ते॒ । त॒न्व᳡: । श॒तम् ॥७.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तावांस्ते मघवन्महिमोपो ते तन्वः शतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तावान् । ते । मघऽवन् । महिमा । उपो इति । ते । तन्व: । शतम् ॥७.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 44

    भाषार्थ -
    (मघवन्) हे सम्पत्तिशालिन् सवितः ! (तावान्) उतनी या वह सब (ते महिमा) तेरी महिमा मात्र है, (उप उ) तथा (ते) तेरे [कार्यों के] (तन्वः) विस्तार (शतम्) सैकड़ों हैं।

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