अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 19
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
स सर्व॑स्मै॒ वि प॑श्यति॒ यच्च॑ प्रा॒णति॒ यच्च॒ न ॥
स्वर सहित पद पाठस: । सर्व॑स्मै । वि । प॒श्य॒ति॒ । यत् । च॒ । प्रा॒णति॑ । यत् । च॒ । न ॥५.६॥
स्वर रहित मन्त्र
स सर्वस्मै वि पश्यति यच्च प्राणति यच्च न ॥
स्वर रहित पद पाठस: । सर्वस्मै । वि । पश्यति । यत् । च । प्राणति । यत् । च । न ॥५.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 19
भाषार्थ -
(सः) वह परमेश्वर (सर्वस्मै) सब के भले के लिये (वि पश्यति) अलग-अलग रूप में सब को देखता रहता है (यच्च) अर्थात् जो (प्राणति) प्राणधारी है, (यच्च) और जो प्राणधारी नहीं, अर्थात् जड़ है। (य एतम्) देखो मन्त्र (२)।
टिप्पणी -
[४ (२) ।११ में प्रजाओं अर्थात् उत्पन्न पदार्थों का वर्णन हुआ है, और मन्त्र ४(२)।६ में सब उत्पन्न और अनुत्पन्न, प्राणी और अप्राणी जगत् का वर्णन हुआ है]।