अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 56
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - निचृत्साम्नी बृहती
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
अ॒न्नाद्ये॑न॒ यश॑सा॒ तेज॑सा ब्राह्मणवर्च॒सेन॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒न्न॒ऽअद्ये॑न । यश॑सा । तेज॑सा । ब्रा॒ह्म॒ण॒ऽव॒र्च॒सेन॑ ॥९.५॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्नाद्येन यशसा तेजसा ब्राह्मणवर्चसेन ॥
स्वर रहित पद पाठअन्नऽअद्येन । यशसा । तेजसा । ब्राह्मणऽवर्चसेन ॥९.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 56
भाषार्थ -
(अन्नाद्येन) खाद्य अन्न से, (यशसा) यश से, (तेजसा) तेज से, (ब्राह्मणवर्चसेन) ब्रह्मज्ञों की दीप्ति से [युक्त हमें करके, कृपादृष्टि से देख]।