अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 48
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
नम॑स्ते अस्तु पश्यत॒ पश्य॑ मा पश्यत ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । ते॒ । अ॒स्तु॒ । प॒श्य॒त॒ । पश्य॑ । मा॒ । प॒श्य॒त॒ ॥८.३॥
स्वर रहित मन्त्र
नमस्ते अस्तु पश्यत पश्य मा पश्यत ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । ते । अस्तु । पश्यत । पश्य । मा । पश्यत ॥८.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 48
भाषार्थ -
(पश्यत१) हे सर्वद्रष्टा परमेश्वर! (ते नमः अस्तु) तुम्हें नमस्कार हो, (पश्यत) हे सर्वद्रष्टः! (मा) मुझे (पश्य) कृपा दृष्टि से देख।
टिप्पणी -
[१. "पश् या स्पश" वैदिक धातु है- जिस का अर्थ है,- देखना। "स्पशः" (गुप्तचर), (अथर्व० ४।१६।४); यतो व्रतानि "पस्पशे" (अथर्व० ७।२६।६); यदा "पश्यः" पश्यते रुक्मवर्णम् (मुण्डक उप० ३।१।३); "पस्पश" (पस्पशाह्निक, महाभाष्य पतन्जलि)। स्पशः आदि पदों में "पश्" धातु प्रयुक्त हुई है। Spy तथा spectrum में भी "पश्" धातु-प्रतीत होती है। Spy तथा स्पश में अधिक वर्णसाम्य और अर्थ साम्य है।]