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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 11
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    स प्र॒जाभ्यो॒ वि प॑श्यति॒ यच्च॑ प्रा॒णति॒ यच्च॒ न ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । प्र॒ऽजाभ्य॑: । वि । प॒श्य॒ति॒ । यत् । च॒ । प्रा॒णति॑ । यत् । च॒ । न ॥४.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स प्रजाभ्यो वि पश्यति यच्च प्राणति यच्च न ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । प्रऽजाभ्य: । वि । पश्यति । यत् । च । प्राणति । यत् । च । न ॥४.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 11

    भाषार्थ -
    (सः) वह सविता (प्रजाभ्यः) प्रजाओं के भले के लिये (वि पश्यति) अलग-अलग रूप में सब को देखता रहता है, अर्थात् (यच्च) जो कि (प्राणति) प्राणधारी है, (यच्च) और जो (न) प्राणधारी नहीं, अर्थात् जड़ है।

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