Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 54
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - द्विपदार्षी गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    भव॑द्वसुरि॒दद्व॑सुः सं॒यद्व॑सुरा॒यद्व॑सु॒रिति॒ त्वोपा॑स्महे व॒यम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भव॑त्ऽवसु: । इ॒दत्ऽव॑सु: । सं॒यत्ऽव॑सु: । आ॒यत्ऽव॑सु: । इति॑ । त्वा॒ । उप॑ । आ॒स्म॒हे॒ । व॒यम् ॥९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भवद्वसुरिदद्वसुः संयद्वसुरायद्वसुरिति त्वोपास्महे वयम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भवत्ऽवसु: । इदत्ऽवसु: । संयत्ऽवसु: । आयत्ऽवसु: । इति । त्वा । उप । आस्महे । वयम् ॥९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 54

    भाषार्थ -
    (भवद्वसुः) वसुओं को पैदा करने वाला, (इदद्वसुः) वसुओं में ऐश्वर्ये स्थापित करने वाला, (संयद्वसुः) वसुओं का संयमन करने वाला, (आयद्वसुः) वसुओं में प्रयत्नशील, उन में गति देने वाला१ तू है (इति) यह जान कर (वयम्) हम (त्वा) तेरी (उपास्महे) उपासना करते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top