Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 10
    सूक्त - यक्ष्मनाशनी देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    येव॒ध्वश्च॒न्द्रं व॑ह॒तुं यक्ष्मा॑ यन्ति॒ जनाँ॒ अनु॑। पुन॒स्तान्य॒ज्ञिया॑दे॒वा न॑यन्तु॒ यत॒ आग॑ताः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । व॒ध्व᳡: । च॒न्द्रम् । व॒ह॒तुम् । यक्ष्मा॑: । यन्ति॑ । जना॑न् । अनु॑ । पुन॑: । तान् । य॒ज्ञिया॑: । दे॒वा: । नय॑न्तु । यत॑: । आऽग॑ता: ॥१.१०।


    स्वर रहित मन्त्र

    येवध्वश्चन्द्रं वहतुं यक्ष्मा यन्ति जनाँ अनु। पुनस्तान्यज्ञियादेवा नयन्तु यत आगताः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । वध्व: । चन्द्रम् । वहतुम् । यक्ष्मा: । यन्ति । जनान् । अनु । पुन: । तान् । यज्ञिया: । देवा: । नयन्तु । यत: । आऽगता: ॥१.१०।

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 10

    भाषार्थ -
    (य) जो (यक्ष्माः) पूजनीय लोग अर्थात् कन्यापक्ष के लोग (वध्वः) वधू के (चन्द्रम्) आह्लादकारी तथा चन्द्रसमान चमकते हुए (वहतुम, अनु) रथ के साथ साथ या पीछे पीछे (यन्ति) चलते हैं, तथा (जऩानू अनु) वरपक्ष के जनों के साथ-साथ या पीछे-पीछे (यन्ति) चलते हैं (तान्) उन्हें, (यज्ञियाः) विवाह-यज्ञ में उपस्थित पूजनीय (देवाः) दिव्यगुणी कन्यापक्ष के लोग, (पुनः) फिर (नयन्तु) पहुँचा दें, (यतः) जहां जहां से कि वे (आगताः) आए थे।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top