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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 28
    सूक्त - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    सु॑मङ्ग॒लीरि॒यंव॒धूरि॒मां स॒मेत॒ पश्य॑त। सौभा॑ग्यम॒स्यै द॒त्त्वा दौर्भा॑ग्यैर्वि॒परे॑तन॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽम॒ङ्ग॒ली । इ॒यम् । व॒धू: । इ॒माम् । स॒म्ऽएत॑ । पश्य॑त । सौभा॑ग्यम् । अ॒स्यै । द॒त्त्वा । दौ:ऽभा॑ग्यै: । वि॒ऽपरे॑तन ॥२.२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुमङ्गलीरियंवधूरिमां समेत पश्यत। सौभाग्यमस्यै दत्त्वा दौर्भाग्यैर्विपरेतन॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽमङ्गली । इयम् । वधू: । इमाम् । सम्ऽएत । पश्यत । सौभाग्यम् । अस्यै । दत्त्वा । दौ:ऽभाग्यै: । विऽपरेतन ॥२.२८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 28

    पदार्थ -
    [हे विद्वानो !] (इयम्वधूः) यह वधू (सुमङ्गलीः) बड़े मङ्गलवाली है, (समेत) मिलकर आओ और (इमाम्) इसे (पश्यत) देखो। (अस्यै) इस [वधू] को (सौभाग्यम्) सुभागपन [पति की प्रीति] (दत्त्वा) देकर (दौर्भाग्यैः) दुर्भागपनों से [इस को] (विपरेतन) पृथक् रक्खो॥२८॥

    भावार्थ - सब विद्वान् लोग मिलकरआशीर्वाद देवें कि वधू पति की प्राणप्रिया होकर सदा आनन्द से रहे और कभी कष्ट नउठावे ॥२८॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।८५।३३, और महर्षिदयानन्दकृतसंस्कारविधि विवाहप्रकरण में आशीर्वाद देने के लिये विवाह में आये लोगों केबुलाने में विनियुक्त है ॥

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