Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 33
    सूक्त - आत्मा देवता - विराट् आस्तार पङ्क्ति छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    उत्ति॑ष्ठे॒तोवि॑श्वावसो॒ नम॑सेडामहे त्वा। जा॒मिमि॑च्छ पितृ॒षदं॒ न्यक्तां॒ स ते॑ भा॒गोज॒नुषा॒ तस्य॑ विद्धि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ति॒ष्ठ॒ । इ॒त: । वि॒श्व॒व॒सो॒ इति॑ विश्वऽवसो । नम॑सा । ई॒डा॒म॒हे॒ । त्वा॒। जा॒मिम् । इ॒च्छ॒ । पि॒तृ॒ऽसद॑म् । निऽअ॑क्ताम् । स: । ते॒ । भा॒ग: । ज॒नुषा॑ । तस्य॑ । वि॒ध्दि॒ ॥२.३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तिष्ठेतोविश्वावसो नमसेडामहे त्वा। जामिमिच्छ पितृषदं न्यक्तां स ते भागोजनुषा तस्य विद्धि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । तिष्ठ । इत: । विश्ववसो इति विश्वऽवसो । नमसा । ईडामहे । त्वा। जामिम् । इच्छ । पितृऽसदम् । निऽअक्ताम् । स: । ते । भाग: । जनुषा । तस्य । विध्दि ॥२.३३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 33

    पदार्थ -
    (विश्वावसो) हे समस्तधनवाले वर ! (इतः) [अपने] इस स्थान से (उत् तिष्ठ) उठ, (नमसा) आदर के साथ (त्वा)तुझ से (ईडामहे) हम यह चाहते हैं। (पितृपदम्) पितृकुल में रहती हुई, (न्यक्ताम्) नियम से तैल आदि लगाये हुए [विवाहसंस्कार किये हुए] (जामिम्)कुलवधू से (इच्छ) प्रीति कर, (जनुषा) जन्म [मनुष्यजन्म] के कारण (सः) यह (ते)तेरा (भागैः) सेवनीय पदार्थ है, (तस्य) इसका (विद्धि) तू ज्ञान कर ॥३३॥

    भावार्थ - पूर्व मन्त्र में वरके साथ मिलने के लिये वधू से कहा गया था, अब वर से कहा है कि अपनी विवाहितस्त्री से यथाशास्त्र मिलकर सन्तान उत्पन्न करके मनुष्यजन्म सुफल करे ॥३३॥यहमन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।८५।२१, २२ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top