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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 34
    सूक्त - आत्मा देवता - परानुष्टुप् त्रिष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    अ॑प्स॒रसः॑सधमादं मदन्ति हवि॒र्धान॑मन्त॒रा सूर्यं॑ च। तास्ते॑ ज॒नित्र॑म॒भि ताः परे॑हि॒नम॑स्ते गन्धर्व॒र्तुना॑ कृणोमि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒प्स॒रस॑: । स॒ध॒ऽमाद॑म् । म॒द॒न्ति॒ । ह॒वि॒:ऽधान॑म् । अ॒न्त॒रा । सूर्य॑म् । च॒ । ता: । ते॒ । ज॒नित्र॑म् । अ॒भि । ता: । परा॑ । इ॒हि॒ । नम॑: । ते॒ । ग॒न्ध॒र्व॒ऽऋ॒तुना॑ । कृ॒णो॒‍मि॒ ॥२.३४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप्सरसःसधमादं मदन्ति हविर्धानमन्तरा सूर्यं च। तास्ते जनित्रमभि ताः परेहिनमस्ते गन्धर्वर्तुना कृणोमि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप्सरस: । सधऽमादम् । मदन्ति । हवि:ऽधानम् । अन्तरा । सूर्यम् । च । ता: । ते । जनित्रम् । अभि । ता: । परा । इहि । नम: । ते । गन्धर्वऽऋतुना । कृणो‍मि ॥२.३४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 34

    पदार्थ -
    (अप्सरसः) अप्सराएँ [कामों में व्यापक स्त्रियाँ] (हविर्धानम्) ग्राह्य पदार्थों के आधार [वधू] (च)और (सूर्यम् अन्तरा) प्रेरणा करनेवाले [वर] के पास (सधमादम्) परस्पर आनन्द (मदन्ति) मनाती हैं। [हे वधू वा वर !] (ताः) वे [स्त्रियाँ] (ते) तेरे (जनित्रम्) जन्म का कारण हैं, (ताः अभि) उनके सामने होकर (परा) निकट (इहि) जा, (गन्धर्वर्तुना) विद्या धारण करनेवाले मनुष्य के ऋतु से [यथार्थ समय के विचारसे] (ते) तेरे लिये (नमः) आदर (कृणोमि) मैं करता हूँ ॥३४॥

    भावार्थ - कुलस्त्रियाँ शान्तिकरण, स्वस्तिवाचन आदि गान से आनन्द मनावें, सादर प्रेरणा किये हुएवधू-वरउन को सविनय नमस्कार करें ॥३४॥इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध आचुका है-अथर्व० ७।१०९।३॥

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