Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 59
    सूक्त - आत्मा देवता - पथ्यापङ्क्ति छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    यदी॒मे के॒शिनो॒जना॑ गृ॒हे ते॑ स॒मन॑र्तिषू॒ रोदे॑न कृ॒ण्वन्तो॒घम्। अ॒ग्निष्ट्वा॒तस्मा॒देन॑सः सवि॒ता च॒ प्र मु॑ञ्चताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । इ॒मे । के॒शिन॑: । जना॑: । गृ॒हे । ते॒ । स॒म्ऽअन॑र्तिषु: । रोदे॑न । कृ॒ण्व॒न्त: । अ॒घम् । अ॒ग्नि:। त्वा॒ । तस्मा॑त् । एन॑स: । स॒वि॒ता । च॒ । प्र । मु॒ञ्च॒ता॒म् ॥२.५९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदीमे केशिनोजना गृहे ते समनर्तिषू रोदेन कृण्वन्तोघम्। अग्निष्ट्वातस्मादेनसः सविता च प्र मुञ्चताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । इमे । केशिन: । जना: । गृहे । ते । सम्ऽअनर्तिषु: । रोदेन । कृण्वन्त: । अघम् । अग्नि:। त्वा । तस्मात् । एनस: । सविता । च । प्र । मुञ्चताम् ॥२.५९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 59

    पदार्थ -
    (यदि) यदि (इमे) यह (केशिनः) क्लेशयुक्त (जनाः) मनुष्य (ते गृहे) तेरे घर में (रोदेन) विलाप के साथ (अघम्) दुःख (कृण्वन्तः) करते हुए (समनर्तिषुः) मिलकर इधर-उधर फिरें। (अग्निः)तेजस्वी (च) और (सविता) प्रेरक मनुष्य (त्वा) तुझे (तस्मात् एनसः) उस कष्ट से (प्र) सर्वथा (मुञ्चताम्) छुड़ावे ॥५९॥

    भावार्थ - यदि घर के लोग रोग वादरिद्रता आदि के कारण से क्लेश उठावें, प्रधान पुरुष अपने मानसिक और शारीरिकउत्साह और परमेश्वर में विश्वास से तेजस्वी होकर उन का दुःख दूर करें॥५९॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top