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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 70
    सूक्त - आत्मा देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    सं त्वा॑नह्यामि॒ पय॑सा पृथि॒व्याः सं त्वा॑ नह्यामि॒ पय॒सौष॑धीनाम्। सं त्वा॑ नह्यामिप्र॒जया॒ धने॑न॒ सा संन॑द्धा सनुहि॒ वाज॒मेमम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । त्वा॒ । न॒ह्या॒मि॒ । पय॑स । पृ॒थि॒व्या: । सम् । त्वा॒ । न॒ह्या॒मि॒ । पय॑सा । ओष॑धीनाम । सम् । त्वा॒ । न॒ह्या॒मि॒ । प्र॒ऽजया॑ । धने॑न । सा । सम्ऽन॑ध्दा । स॒नु॒हि॒ । वाज॑म् । आ । इ॒मम् ॥२.७०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सं त्वानह्यामि पयसा पृथिव्याः सं त्वा नह्यामि पयसौषधीनाम्। सं त्वा नह्यामिप्रजया धनेन सा संनद्धा सनुहि वाजमेमम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । त्वा । नह्यामि । पयस । पृथिव्या: । सम् । त्वा । नह्यामि । पयसा । ओषधीनाम । सम् । त्वा । नह्यामि । प्रऽजया । धनेन । सा । सम्ऽनध्दा । सनुहि । वाजम् । आ । इमम् ॥२.७०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 70

    पदार्थ -
    [हे प्रजा !] (त्वा)तुझे (पृथिव्याः) पृथिवी के (पयसा) ज्ञान से (सं नह्यामि) मैं कवचधारी करता हूँ, (त्वा) तुझे (ओषधीनाम्) ओषधियों [अन्न सोमलता आदि] के (पयसा) ज्ञान से (संनह्यामि) कवचधारी करता हूँ। (त्वा) तुझे (प्रजया) प्रजा [सन्तान सेवक आदि] से और (धनेन) धन से (सं नह्यामि) मैं कटिबद्ध करता हूँ, (सा) सो तू [हे प्रजा !] (सन्नद्धा) सन्नद्ध [कटिबद्ध] होकर (इमम्) यह (वाजम्) बल (आ) सब ओर से (सनुहि)दे ॥७०॥

    भावार्थ - राजा को योग्य है ऐसे-ऐसे विद्यालयों को बनावे, जिन में प्रजागण भूगर्भविद्या, भूतलविद्या, अन्नविद्या, ओषधिविद्या आदि प्राप्त करके सन्तान और धन से बढ़ती करें और राजा कोभी यथायोग्य सहायता देकर समर्थ बनावें ॥७०॥

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