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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 29
    सूक्त - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    या दु॒र्हार्दो॑युव॒तयो॒ याश्चे॒ह जर॑ती॒रपि॑। वर्चो॒ न्वस्यै सं द॒त्ताथास्तं॑ वि॒परे॑तन॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या: । दु॒:ऽहार्द॑: । यु॒व॒तय॑: । या: । च॒ । इ॒ह । ज॒र॒ती॒: । अपि॑ । वर्च॑: । नु । अ॒स्यै । सम् । द॒त्त॒ । अथ॑ । अस्त॑म् । वि॒ऽपरे॑तन ॥२.२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या दुर्हार्दोयुवतयो याश्चेह जरतीरपि। वर्चो न्वस्यै सं दत्ताथास्तं विपरेतन॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या: । दु:ऽहार्द: । युवतय: । या: । च । इह । जरती: । अपि । वर्च: । नु । अस्यै । सम् । दत्त । अथ । अस्तम् । विऽपरेतन ॥२.२९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 29

    पदार्थ -
    (याः) जो तुम (युवतयः)हे युवा स्त्रियो ! (च) और (याः) जो तुम (जरतीः) हे वृद्ध स्त्रियो ! (अपि) भी (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवाली (इह) यहाँ पर हो। वे तुम (अस्यै) इस [वधू] को (वर्चः) अपना तेज (नु) शीघ्र (सम् दत्त) दे डालो, (अथ) फिर (अस्तम्) अपने-अपनेघर (विपरेतन) चली जाओ ॥२९॥

    भावार्थ - जो दुष्ट स्त्रियाँ घरमें आ जावें, वधू अपनी चतुरायी से उन्हें ऐसा परास्त करे कि वे अपना तेज गँवाकरचली जावें और फिर कभी न आवें ॥२९॥इस मन्त्र का चौथा पाद ऋग्वेद १०।८५।३३। मेंहै। यह मन्त्र महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण मेंव्याख्यात है ॥

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