Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 3
    सूक्त - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    सोम॑स्य जा॒याप्र॑थ॒मं ग॑न्ध॒र्वस्तेऽप॑रः॒ पतिः॑। तृ॒तीयो॑ अ॒ग्निष्टे॒ पति॑स्तु॒रीय॑स्तेमनुष्य॒जाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑स्य । जा॒या । प्र॒थ॒मम् । ग॒न्ध॒र्व: । ते॒ । अप॑र: । पति॑: । तृ॒तीय॑: । अ॒ग्नि: । ते॒ । पति॑: । तु॒रीय॑: । ते॒ । म॒नु॒ष्य॒ऽजा: ॥२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमस्य जायाप्रथमं गन्धर्वस्तेऽपरः पतिः। तृतीयो अग्निष्टे पतिस्तुरीयस्तेमनुष्यजाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमस्य । जाया । प्रथमम् । गन्धर्व: । ते । अपर: । पति: । तृतीय: । अग्नि: । ते । पति: । तुरीय: । ते । मनुष्यऽजा: ॥२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    १−सामान्य अर्थ ॥[हेवधू !] (सोमस्य) सोम [शान्ति आदि शुभ गुण] की (जाया) उत्पत्तिस्थान (प्रथमम्)पहिले [पहिली अवस्था में] [तू है], (गन्धर्वः) गन्धर्व [वेदवाणी का धारणकरनेवाला गुण] (ते) तेरा (अपरः) दूसरा (पतिः) पति [रक्षक] है। (अग्निः) अग्नि, [अर्थात् विद्या और शरीर का तेज] (ते) तेरा (तृतीयः) तीसरा (पतिः) पति [रक्षक]है, और (मनुष्यजाः) मनुष्य [अर्थात् मननशीलों में उत्पन्न विद्वान् युवा पुरुष] (ते) तेरा (तुरीयः) चौथा [पति] है ॥३॥ २−नियोगविषयक अर्थ ॥ [हे स्त्री ! तू] (सोमस्य) सोम [अर्थात् ऐश्वर्यवान् विवाहितपुरुष] की (जाया) पत्नी (प्रथमम्) पहिली बार [होती है], (गन्धर्वः) गन्धर्व [अर्थात् वेदवाणी का धारण करनेवाला नियुक्त पुरुष] (ते) तेरा (अपरः) दूसरा (पतिः) पति अर्थात् रक्षक [होता है], (अग्निः) अग्नि [अर्थात् ज्ञानी नियुक्तपुरुष] (ते) तेरा (तृतीयः) तीसरा (पतिः) पति [होता है] और (मनुष्यजाः) मनुष्य [मननशीलों में उत्पन्न नियुक्त पुरुष] (ते) तेरा (तुरीयः) चौथा [पति होता है]॥३॥

    भावार्थ - जब कन्या ब्रह्मचर्यसे पहिली, दूसरी और तीसरी अवस्था में क्रम से माता, पिता और आचार्य से सुशिक्षापाकर और शरीर से स्वस्थ युवती होकर तेजस्विनी हो, तब अपने सदृश मातृमान्पितृमान् और आचार्यवान् नीरोग ब्रह्मचारी पुरुष से विवाह करे ॥३॥इस मन्त्र काअर्थ श्रीमान् पण्डित कालीप्रसाद शर्मा आचार्य की सम्मति से किया गया है, जिन कोबहुत धन्यवाद देता हूँ ॥३॥ स्त्री को योग्य है कि विपत्तिकाल में अर्थात् विवाहित पति के रोगी होने वामर जाने पर अन्य तीन पतियों तक एक-दूसरे के पीछे नियोग करके सन्तान उत्पन्न करे, पहिले विवाहित पति का नाम सोम होता है और अन्य तीन जो नियोग के पति हैं, क्रम सेगन्धर्व, अग्नि और मनुष्य कहाते हैं। इसी प्रकार विवाहित स्त्री सोम्या, औरनियोग की तीनों स्त्रियाँ क्रम से गन्धर्वी, आग्नेयी और मानुषी कहाती हैं ॥३॥यहमन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।८५।४०। और महर्षिदयानन्दकृतसत्यार्थप्रकाश चतुर्थ समुल्लास नियोगविषय और ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका नियोगविषयमें व्याख्यात है। इस मन्त्र का पाठ और शब्दार्थ इस प्रकार है−सोमः॑ प्रथ॒मो वि॑विदे गन्ध॒र्वो वि॑विद॒उत्त॑रः। तृतीयो॑ अ॒ग्निष्टे॒ पति॑स्तु॒रीय॑स्ते मनुष्य॒जाः ॥[हे स्त्री !] (सोमः) सोम [अर्थात् शान्दि आदि शुभ गुण, वा ऐश्वर्यवान् पुरुष] (प्रथमः) पहिला (ते) तेरा (पतिः) पति [रक्षक] (विविदे) [विद सत्तायाम्-लडर्थे लिट्] होता है, (उत्तरः) दूसरा (गन्धर्वः) गन्धर्व [अर्थात् वेदवाणी का धारण करनेवाला गुण वापुरुष], (तृतीयः) तीसरा (अग्निः) अग्नि [अर्थात् विद्या और शरीर का तेज वाज्ञानी पुरुष], और (मनुष्यजाः) मनुष्य [मननशीलों में उत्पन्न हुआ पुरुष] (ते)तेरा (तुरीयः) चौथा [पति] (विविदे) होता है ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top