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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 26
    सूक्त - आत्मा देवता - त्रिपदा विराण्नाम गायत्री छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    सु॑मङ्ग॒लीप्र॒तर॑णी गृ॒हाणां॑ सु॒शेवा॒ पत्ये॒ श्वशु॑राय शं॒भूः। स्यो॒ना श्व॒श्र्वै प्रगृ॒हान्वि॑शे॒मान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽम॒ङ्ग॒ली । प्र॒ऽतर॑णी । गृ॒हाणा॑म् । सु॒ऽशेवा॑ । पत्ये॑ । श्वशु॑राय । श॒म्ऽभू: । स्यो॒ना । श्व॒श्वै । प्र । गृ॒हान् । वि॒श॒ । इ॒मान् ॥२.२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुमङ्गलीप्रतरणी गृहाणां सुशेवा पत्ये श्वशुराय शंभूः। स्योना श्वश्र्वै प्रगृहान्विशेमान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽमङ्गली । प्रऽतरणी । गृहाणाम् । सुऽशेवा । पत्ये । श्वशुराय । शम्ऽभू: । स्योना । श्वश्वै । प्र । गृहान् । विश । इमान् ॥२.२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 26

    पदार्थ -
    [हे वधू !] (सुमङ्गली)बड़ी मङ्गलवाली, (गृहाणाम्) घरों [घरवालों] की (प्रतरणी) बढ़ानेवाली, (पत्ये)पति के लिये (सुशेवा) बड़ी सुख देनेवाली, (श्वशुराय) ससुर के लिये (शंभूः)शान्ति देनेवाली और (श्वश्र्वै) सासु के लिये (स्योना) आनन्द देनेवाली तू (इमान्गृहान्) इन घरों [अर्थात् गृहकार्य्यों] में (प्र विश) प्रवेश कर ॥२६॥

    भावार्थ - वधू को योग्य है कि सबप्रकार चतुर होकर घरवालों की उन्नति करती हुई पति, सासु, ससुर आदि को प्रसन्नरखकर घर के कामों में प्रवेश करे ॥२६॥मन्त्र २६ और २७ महर्षिदयानन्दकृतसंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात् हैं ॥

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