अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 26
ऋषिः - आत्मा
देवता - त्रिपदा विराण्नाम गायत्री
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
129
सु॑मङ्ग॒लीप्र॒तर॑णी गृ॒हाणां॑ सु॒शेवा॒ पत्ये॒ श्वशु॑राय शं॒भूः। स्यो॒ना श्व॒श्र्वै प्रगृ॒हान्वि॑शे॒मान् ॥
स्वर सहित पद पाठसु॒ऽम॒ङ्ग॒ली । प्र॒ऽतर॑णी । गृ॒हाणा॑म् । सु॒ऽशेवा॑ । पत्ये॑ । श्वशु॑राय । श॒म्ऽभू: । स्यो॒ना । श्व॒श्वै । प्र । गृ॒हान् । वि॒श॒ । इ॒मान् ॥२.२६॥
स्वर रहित मन्त्र
सुमङ्गलीप्रतरणी गृहाणां सुशेवा पत्ये श्वशुराय शंभूः। स्योना श्वश्र्वै प्रगृहान्विशेमान् ॥
स्वर रहित पद पाठसुऽमङ्गली । प्रऽतरणी । गृहाणाम् । सुऽशेवा । पत्ये । श्वशुराय । शम्ऽभू: । स्योना । श्वश्वै । प्र । गृहान् । विश । इमान् ॥२.२६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
गृहआश्रम का उपदेश।
पदार्थ
[हे वधू !] (सुमङ्गली)बड़ी मङ्गलवाली, (गृहाणाम्) घरों [घरवालों] की (प्रतरणी) बढ़ानेवाली, (पत्ये)पति के लिये (सुशेवा) बड़ी सुख देनेवाली, (श्वशुराय) ससुर के लिये (शंभूः)शान्ति देनेवाली और (श्वश्र्वै) सासु के लिये (स्योना) आनन्द देनेवाली तू (इमान्गृहान्) इन घरों [अर्थात् गृहकार्य्यों] में (प्र विश) प्रवेश कर ॥२६॥
भावार्थ
वधू को योग्य है कि सबप्रकार चतुर होकर घरवालों की उन्नति करती हुई पति, सासु, ससुर आदि को प्रसन्नरखकर घर के कामों में प्रवेश करे ॥२६॥मन्त्र २६ और २७ महर्षिदयानन्दकृतसंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात् हैं ॥
टिप्पणी
२६−(सुमङ्गली) बहुमङ्गलवती (प्रतरणी) वर्धयित्री (गृहाणाम्) गृहपुरुषाणाम् (सुशेवा) बहुसुखदात्री (पत्ये) (श्वशुराय) पतिजनकाय (शंभूः) शान्तिप्रदा (स्योना) सुखप्रदा (श्वश्र्वै)पतिजनन्यै (गृहान्) गृहकार्याणि (प्र विश) (इमान्) ॥
विषय
सुमंगली-स्योना
पदार्थ
१. हे नववधु! (सुमंगली) = पर का उत्तम मंगल साधनेवाली, (गृहाणां प्रतरणी) = घरों को दुःख से पार लगानेवाली (पत्ये सुशेवा) = पति के लिए उत्तम सुख देनेवाली (श्वशुराय शंभूः) = श्वसुर के लिए शान्ति प्राप्त करानेवाली तथा (श्वश्र्वै स्योना) = सास के लिए भी सुख देनेवाली तू (इमान् गृहान् प्रविश) = इन घरों में प्रवेश कर। २. (श्वशुरेभ्य:) = घर में श्वसुर-तुल्य बड़ों के लिए तू (स्योना भव) = सुख देनेवाली हो। (पत्ये गृहेभ्यः) = पति के लिए तथा पति की माता के लिए (स्योना) = सुख देनेवाली हो। (अस्यै सर्वस्यै विशे) = घर में स्थित इस सारी प्रजा के लिए-पति के भाइयों के लिए व उनकी सन्तानों के लिए (स्योना) = तू सुख ही देनेवाली हो। (स्योना) = सुख देनेवाली होती हुई (एषां पुष्टाय भव) = इन सबके पोषण के लिए हो। गृह में कलह सबके अकल्याण व कष्टों का कारण बनती है। यह गृहपत्नी सभी के लिए सुखकर होती हुई सबके कल्याण का ही कारण बने।
भावार्थ
गृहपत्नी ने घर में सबके मंगल व सुख को साधनेवाली बनना है। उसके कारण घर में कलह उत्पन्न न हो और सबका समुचित पोषण हो।
भाषार्थ
(सु मङ्गली) उत्तम-मङ्गलमयी, (गृहाणाम्) गृहवासियों के लिए गृहस्थ सागर की (प्रतरणी) प्रकृष्ट नौकारूप, (पत्ये) पति के लिए (सुशेवा) उत्तम सेवा करने वाली तथा उत्तम सुख देने वाली (श्वशुराय) श्वशुर के लिए (शम्भूः) शान्ति पैदा करने वाली, (श्वश्र्वै) सास के लिए (स्योना) सुखस्वरूपा तू हे पत्नी! (इमान्) इन (गृहान्) घरों में (प्रविश) प्रवेश पा।
टिप्पणी
[सुशेवा = सु+शेवृ (सेवने), तथा शेवम् सुखनाम (निघं० ३।६)। स्योना सुखनाम (निघं० ३।६)। प्रतरणी= प्र+तरणी (नौका); Boat (आप्टे)] गृहस्थ-सागर से सुख पूर्वक पार उतरने के लिए सुशीला पत्नी नौका रूप है। उत्तम नौका द्वारा समुद्र या नदी-नद पार किया जा सकता है, इसी प्रकार गुणवती पत्नी के सहारे गृहस्थ-जीवन को सुख से निभाया जा सकता है।
विषय
ऐसी हों नारियां
शब्दार्थ
हे देवी ! तू (गृहाणाम्) घरों, गृहस्थों, घर के लोगों की (सुमङ्गली) कल्याणकारिणी (प्रतरणी) तारनेवाली, पार ले जानेवाली नौका के समान है । तू (पत्ये) पति के लिए (सुशेवा) सुसेवाकारिणी बन । (श्वसुराय) श्वसुर के लिए (शंभू:) शान्तिदायक और कल्याणदात्री हो (श्वश्र्वै) सास के लिए (स्योना) सुख देनेवाली होकर (इमान् गृहान्) इन घरों, इन गृहस्थों में (प्रविश) प्रवेश कर ।
भावार्थ
घर में प्रवेश करनेवाली नववधुओं में क्या-क्या गुण और विशेषताएँ होनी चाहिए, वेद ने बहुत थोड़े-से परन्तु अत्यन्त सारगर्भित और मार्मिक शब्दों में वर्णन कर दिया है - १. नववधुओं को पारिवारिक जनों को दु:खों से तारनेवाली होना चाहिए । २. पति की सेवा और सुश्रूषा करके उसे सदा प्रसन्न रखना चाहिए । ३. श्वसुर के लिए शान्ति और कल्याणदात्री होना चाहिए । ४. सास के लिए सुख देनेवाली होना चाहिए । ५. इन चार गुणों से युक्त होकर ही वधुओं को पति-गृह में प्रवेश करना चाहिए । जिन घरों में ऐसी सुशीला नारियाँ होतीं हैं वे घर स्वर्ग बन जाते हैं, वहाँ दुःख और कष्ट नहीं होते । सभी व्यक्ति प्रसन्न और हर्षित रहते हैं ।
विषय
पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
(सुमङ्गली) उत्तम मङ्गलमय चिह्नों से युक्त और (गृहाणां प्रतरणी) गृह के जनों को दुःख से पार लगाने वाली (पत्ये) पति की (सुशेवा) उत्तम रूप से सेवा करनेहारी (श्वशुराय) श्वशुर को (शम्भूः) कल्याण और सुख देने वाली (श्वश्वै) सास को (स्योना) सुखी करनेहारी होकर (इमान्) इन (गृहान्) गृहजनों के बीच में (प्रविश) प्रवेश कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
Noble and auspicious, harbinger of peace and progress to the family, kind and loving to the husband, gracious to the father-in-law, pleasant and agreeable to the mother-in-law, please enter this home and join the family.
Translation
O propitious one, augmenter of household, gladdening to husband, pleasing to the father-in-law, delighting to the mother-in-law, enter this family (home).
Translation
O auspicious bride, you are able to set the houses in order. lead them to good-footing, pleasure-giving for husband; auspicious for the father of husband and able to encrise the deliget of husband's mother you enter these houses.
Translation
Bliss-bringer, furthering the welfare of thy householders, serving thy husband, gladdening thy father-in-law, and comforting thy mother-in-law, assume thou the domestic duties.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२६−(सुमङ्गली) बहुमङ्गलवती (प्रतरणी) वर्धयित्री (गृहाणाम्) गृहपुरुषाणाम् (सुशेवा) बहुसुखदात्री (पत्ये) (श्वशुराय) पतिजनकाय (शंभूः) शान्तिप्रदा (स्योना) सुखप्रदा (श्वश्र्वै)पतिजनन्यै (गृहान्) गृहकार्याणि (प्र विश) (इमान्) ॥
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