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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 74
    ऋषिः - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
    65

    येदंपूर्वाग॑न्रशना॒यमा॑ना प्र॒जाम॒स्यै द्रवि॑णं चे॒ह द॒त्त्वा। तांव॑ह॒न्त्वग॑त॒स्यानु॒ पन्थां॑ वि॒राडि॒यं सु॑प्र॒जा अत्य॑जैषीत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या । इ॒दम् । पूर्वा॑ । अग॑न् । र॒श॒ना॒ऽयमा॑ना । प्र॒ऽजाम् । अ॒स्यै । द्रवि॑णम् । च॒ । इ॒ह । द॒त्त्वा । ताम् । व॒ह॒न्तु॒ । अग॑तस्य । अनु॑ । पन्था॑म् । वि॒ऽराट् । इ॒यम् । सु॒ऽप्र॒जा: । अति॑ । अ॒जै॒षी॒त् ॥२.७४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येदंपूर्वागन्रशनायमाना प्रजामस्यै द्रविणं चेह दत्त्वा। तांवहन्त्वगतस्यानु पन्थां विराडियं सुप्रजा अत्यजैषीत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या । इदम् । पूर्वा । अगन् । रशनाऽयमाना । प्रऽजाम् । अस्यै । द्रविणम् । च । इह । दत्त्वा । ताम् । वहन्तु । अगतस्य । अनु । पन्थाम् । विऽराट् । इयम् । सुऽप्रजा: । अति । अजैषीत् ॥२.७४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 74
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    (या) जो [वधू] (पूर्वा) पहिली [सबसे ऊपर] होकर (रशनायमाना) कटि बाँधे हुए (इदम्) इस [स्थान]में (अगन्) आवे, (अस्यै) इस [वधू] के हित के लिये (इह) यहाँ (प्रजाम्) प्रजा [सन्तान, सेवक आदि जनता] (च) और (द्रविणम्) धन (दत्त्वा) देकर (ताम्) उस को (अगतस्य) बिना प्राप्त हुए [आगे आनेवाले काल] के (पन्थाम् अनु) मार्ग के पीछे-पीछे (वहन्तु) वे [पिता आदि] ले चलें, (विराट्) बड़े ऐश्वर्यवाली (इयम्) यह (सुप्रजाः) उत्तम जन्मवाली [वधू] (अति) अत्यन्त (अजैषीत्) जय पावे ॥७४॥

    भावार्थ

    सब बड़े लोग सेवक धनआदि से प्रयत्न करें कि महाविदुषी, पुरुषार्थिनी, स्त्रीरत्न कुलवधू उत्तमसन्तान उत्पन्न करके आगे को यश बढ़ावे ॥७४॥

    टिप्पणी

    ७४−(या) वधूः (इदम्) स्थानम् (पूर्वा)प्रथमा। मुख्या (अगन्) आगच्छतु (रशनायमाना) रशनां कटिबन्धनं करोतीति रशनायते।तत्करोति तदाचष्टे। वा–० पा० ३।१।२६। रशना-णिच्, शानच्। कटिबन्धनं कुर्वाणा। सदापुरुषार्थयुक्ता (प्रजाम्) सन्तानसेवकादिजनताम् (अस्यै) वधूहिताय (द्रविणम्)धनम् (इह) गृहाश्रमे (दत्त्वा) (ताम्) वधूम् (वहन्तु) नयन्तु (अगतस्य)अप्राप्तस्य। अनागतस्य कालस्य (अनु) अनुसृत्य (पन्थाम्) पन्थानम् (विराट्)विविधैश्वर्यवती (इयम्) गुणवती (सुप्रजाः) जनी-विट्। सुजन्मा सती (अति)अत्यन्तम् (अजैषीत्) जयेत् ॥

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    विषय

    पूर्वा रशनायमाना

    पदार्थ

    १. (या) = जो (पूर्वा) = [प] पालन व पूरण करनेवाली (रशनायमाना) = रशना के समान आचरण करनेवाली, अर्थात् कर्त्तव्यकर्मों के करने में सदा कटिबद्ध यह युवति (इदम) = इस गृह में (आगन्) = आई है। (अस्यै) = इस वधू के लिए (इह) = यहाँ इस गृह में (प्रजां द्रविणं च दत्त्वा) = उत्तम सन्तति व ऐश्वर्य को प्राप्त कराके (ताम्) = उस वधू को (अ-गतस्य पन्थाम् अनुवहन्तु) = न चले गये, अर्थात् दीर्घजीवी पति के मार्ग पर अनुकूलता से सब देव ले-चलें। सब देवों के अनुग्रह से यह दीर्घजीवी पति के अनुकूल मार्ग पर चलनेवाली हो। इसका सौभाग्य स्थिर रहे और पति के साथ अनुकूलता में बनी रहे। २. इस प्रकार (इयम) = यह (विराट्) = अति तेजस्विनी वधू (सुप्रजा:) = उत्तम प्रजावाली होती हुई (अति अजैषीत्) = सब कष्टों व शत्रुओं को जीतनेवाली बनें।

    भावार्थ

    पत्नी [क] पालनात्मक व पूरणात्मक कर्मों में प्रवृत्त हो। [ख] कर्त्तव्य-कर्मों के करने में सदा कटिबद्ध हो। [ग] सौभाग्यशालिनी बने। [घ] पति के अनुकूल मार्ग पर चले। तेजस्विनी हो। [ङ] उत्तम प्रजावाली हो। [च] कष्टों व शत्रुओं को जीतनेवाली हो।

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    भाषार्थ

    (या) जो (पूर्वा) पूर्वावस्था अर्थात् ब्रह्मचर्यावस्था में (रशनायमाना) रशना अर्थात् मेखला धारण किये हुए भी, वह (इदम्) इस पतिगृह में (आ अगन्) आई है, (अस्यै) इस वधू के लिये (इह) इस पतिगृह में (प्रजाम्, द्रविणम्, च) उत्तम सन्तान और धनैश्वर्य का आशीर्वाद (दत्त्वा) दे कर, (ताम्) उसे (अगतस्य) पहिले न चले हुए (पन्थाम्) गृहस्थ-मार्ग के (अनु) अनुसार, (वहन्तु) हे पितरों! बुजुर्गों! आप चलाये। (इयम्) यह वधू (विराट्) शोभायमाना प्रकृतिरूपा है, यह (सुप्रजाः) उत्तम-सन्तानों को उत्पन्न करे। क्योंकि (अति, अजैषीत्१) इसने दुर्वासनाओं पर महा-विजय प्राप्त की है।

    टिप्पणी

    [पूर्वा रशनायमाना=इसके द्वारा सूर्या की ब्रह्मचर्यावस्था का निर्देश किया है। वेदानुसार कन्या के लिये भी ब्रह्मचर्याश्रम विहित है। यथा “ब्रह्मचर्येण कन्या युवानं विन्दते पतिम्” (अथर्व० ११।५।१८)। विराट्=(अथर्व० १४।२।१५)। प्रकृतिरूपा वधू ] [व्याख्या–कन्या के वृद्धपुरुष, वरपक्ष के बुजुर्गों को कहते हैं कि इस वधू ने अभी तक ब्रह्मचर्याश्रम के कर्तव्यों का पालन किया है, गृहस्थाश्रम के कर्तव्यों से यह अभी अनभिज्ञ है। इसे गृहस्थ के कर्तव्यों का ज्ञान कराइये। ऐसी शिक्षा दीजिये जिस से यह वधू उत्तम-सन्तानों वाली हो, तथा धनैश्वर्य का सदुपयोग कर सके। साथ ही यह वधू विराटरूपा है, प्रकृतिरूपा है। प्रकृति जिस प्रकार संसार की माता है, इसी प्रकार यह वधू भी उत्तमोत्तम सन्तानों की माता बनें। ताकि कहा जा सके कि वधू गृहस्थपथ पर चलते हुएं महाविजय प्राप्त की है।] [१. इस वधू ने प्रथमाश्रम अर्थात् ब्रह्मचर्याश्रम के कर्तव्यों के पालन में महाविजय प्राप्त की है, यह गृहस्थाश्रम के कर्तव्यों के पालन में भी महाविजय प्राप्त करे-ऐसी आशा पितरों की है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    This girl, earlier observing the discipline of maidenly zone, has come to this home as a bride. May the parents and seniors, having given her blessings for noble progeny and the wealth of a happy home, guide her now on the path of matrimony yet unknown. She is now a human version of Virat Prakrti, the Mother. May she win noble progeny and much more.

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    Translation

    May they conduct this bride, who came to this place first as if girdling (the house-hold), along with the pathways yet unfrequented. May this shining one, blessed with children win.

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    Translation

    Let this long chain serving lifelong stretched rope coming through in family from previous time giving progeny and wealth to this bride, lead her on the path of future. This brilliant bride having good off spring conquer all.

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    Translation

    This vigilant and enterprising bride, who has for the first time come here, should be blessed with offspring and riches, and instructed to tread the untrodden future path of domestic life by the elders. May she in this Grihastha Ashrama excel all others, full of prosperity and. blessed with progeny.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७४−(या) वधूः (इदम्) स्थानम् (पूर्वा)प्रथमा। मुख्या (अगन्) आगच्छतु (रशनायमाना) रशनां कटिबन्धनं करोतीति रशनायते।तत्करोति तदाचष्टे। वा–० पा० ३।१।२६। रशना-णिच्, शानच्। कटिबन्धनं कुर्वाणा। सदापुरुषार्थयुक्ता (प्रजाम्) सन्तानसेवकादिजनताम् (अस्यै) वधूहिताय (द्रविणम्)धनम् (इह) गृहाश्रमे (दत्त्वा) (ताम्) वधूम् (वहन्तु) नयन्तु (अगतस्य)अप्राप्तस्य। अनागतस्य कालस्य (अनु) अनुसृत्य (पन्थाम्) पन्थानम् (विराट्)विविधैश्वर्यवती (इयम्) गुणवती (सुप्रजाः) जनी-विट्। सुजन्मा सती (अति)अत्यन्तम् (अजैषीत्) जयेत् ॥

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