अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 40
ऋषिः - आत्मा
देवता - जगती
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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आ वां॑ प्र॒जांज॑नयतु प्र॒जाप॑तिरहोरा॒त्राभ्यां॒ सम॑नक्त्वर्य॒मा। अदु॑र्मङ्गली पतिलो॒कमावि॑शे॒मं शं नो॑ भव द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे ॥
स्वर सहित पद पाठआ । वा॒म् । प्र॒ऽजाम् । ज॒न॒य॒तु॒ । प्र॒जाऽप॑ति: । अ॒हो॒रा॒त्राभ्या॑म् । सम् । अ॒न॒क्तु॒ । अ॒र्य॒मा। अदु॑:ऽमङ्गली । प॒ति॒ऽलो॒कम् । आ । वि॒श॒ । इ॒मम् । शम् । न॒: । भ॒व॒ । द्वि॒ऽपदे॑ । शम् । चतु॑:ऽपदे ॥२.४०॥
स्वर रहित मन्त्र
आ वां प्रजांजनयतु प्रजापतिरहोरात्राभ्यां समनक्त्वर्यमा। अदुर्मङ्गली पतिलोकमाविशेमं शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ॥
स्वर रहित पद पाठआ । वाम् । प्रऽजाम् । जनयतु । प्रजाऽपति: । अहोरात्राभ्याम् । सम् । अनक्तु । अर्यमा। अदु:ऽमङ्गली । पतिऽलोकम् । आ । विश । इमम् । शम् । न: । भव । द्विऽपदे । शम् । चतु:ऽपदे ॥२.४०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहआश्रम का उपदेश।
पदार्थ
[हे वधू-वर !] (प्रजापतिः) प्रजापालक, (अर्यमा) श्रेष्ठों का मान करनेवाला, [परमात्मा] (वाम्)तुम दोनों को (प्रजाम्) सन्तान (आ जनयतु) उत्पन्न करे और (अहोरात्राभ्याम्) दिनऔर रात्रि के साथ [सबको] (सम् अनक्तु) संयुक्त करे। [हे वधू !] (अदुर्मङ्गली)दुष्टलक्षणरहित तू (इमम्) इस (पतिलोकम्) पति लोक [पतिकुल] में (आ विश) प्रवेशकर, और (नः) हमारे (द्विपदे) दोपायों के लिये (शम्) सुखदायक और (चतुष्पदे)चौपायों के लिये (शम्) सुखदायक (भव) हो ॥४०॥
भावार्थ
जगत्पालक परमेश्वर कीउपासना करके युक्त आहार-विहार, ऋतुगमन आदि योग्य क्रिया के साथ पति-पत्नी चिरजीवीसन्तान उत्पन्न करें, जिससे पतिकुल में उस वधू के शुभागमन से सब मनुष्य और गौआदि पशु बढ़कर प्रसन्न रहें ॥४०॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।८५।४७॥
टिप्पणी
४०−(वाम्) युवाभ्याम् (प्रजाम्) सन्तानम् (आ जनयतु) उत्पादयतु (प्रजापतिः)परमेश्वरः (अहोरात्राभ्याम्) रात्रिदिनाभ्याम्। सर्वदेत्यर्थः (समनक्तु)संयोजयतु (अर्यमा) श्रेष्ठानां मानकर्ता (अदुर्मङ्गली) दुष्टलक्षणरहिता (पतिलोकम्) पतिकुलम् (आ विश) प्रविश (इमम्) (शम्) सुखप्रदा (नः) अस्माकम् (भव) (द्विपदे) मनुष्यादिसमूहाय (शम्) (चतुष्पदे) गवादिपशुसमूहाय ॥
विषय
अदुर्मङ्गली
पदार्थ
१. (प्रजापति:) = सब प्रजाओं का रक्षक प्रभु (वां प्रजाम्) = आप दोनों की सन्तति को (आजनयतु) = प्रादुर्भूत करे। प्रभु-कृपा से आप दोनों को उत्तम सन्तति प्राप्त हो। (अर्यमा) = शत्रुओं का नियमन करनेवाला प्रभु (अहोरात्राभ्यां समनक्तु) = दिन-रात से आपको संगत करे, अर्थात् आपके जीवन को प्रभु दीर्ष करें। वस्तुतः काम-क्रोधादि शत्रुओं को जीतना ही दीर्घजीवन का साधन है। हे युवति! तू (अदुर्मङ्गली) = सब अशुभों से रहित हुई-हुई (इमं पतिलोकं आविश) = उस पतिलोक को प्राप्त कर । पतिलोक को प्राप्त होकर तू उसे मंगलमय बनानेवाली हो । (न:) = हमारे (द्विपदे शं भव) = दो पाँववाले मनुष्यादि के लिए शान्ति प्राप्त करानेवाली हो, (चतुष्पदे शम्) = चार पाँववाले गवादि पशुओं के लिए भी तु शान्ति प्राप्त करा।
भावार्थ
प्रभु-कृपा से पति-पत्नी को उत्तम सन्तान व दीर्घजीवन प्राप्त हो। पतिलोक में आती हुई युवति इस पतिलोक को मंगलमय बनाए। इस पतिलोक में मनुष्यों व पशुओं सभी को शान्ति प्राप्त हो।
भाषार्थ
(प्रजापतिः) प्रजा का रक्षक, तथा (अर्यमा) न्यायकारी परमेश्वर (वाम्) तुम दोनों के लिए (प्रजाम्, आ जनयतु) उत्तम सन्तान को जन्म दे, और (अहोरात्राभ्याम्) दिनों तथा रातों द्वारा, (सम्) सम्यक् प्रकार से उसे (अनक्तु) कान्तियुक्त करे। हे पत्नी (अदुर्मङ्गली) बुरे लक्षणों से रहित तू (इमम्) इस (पतिलोकम) पतिकुल में (आ विश) प्रवेश कर या उस पर स्वामित्व कर। (नः) हमारे लिये (शम्) शान्तिप्रद (भव) हो, (द्विपदे) दुपाए अर्थात् मनुष्य जाति के लिए, (चतुष्पदे) चौपाए पशुओं के लिए (शम्) शान्तिदायक हो।
टिप्पणी
[आ जनयतु=आ जननम् = High birth or origin, Famous or well-known origin (आप्टे)। आ विश = To enter To take possession of (आप्टे)।]
विषय
पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
(प्रजापतिः) प्रजाओं का स्वामी, परिपालक परमेश्वर (वां) तुम दोनों की (प्रजाम्) प्रजा को (जनयतु) उत्पन्न करे (अर्यमा) न्यायकारी प्रभु तुमको (अहोरात्राभ्याम्) दिन और रात (सम् अनक्तु) एक दूसरे के साथ सदा परस्पर मिलाये रखे। हे वधू ! तू (अदुर्मङ्गली) दुःखदायी स्वरूप की न होकर (इमं) इस (पतिलोकम्) पतिगृह में (आविश) प्रविष्ट हो और (नः) हमारे (द्विपदे) दो पैर के मनुष्यों और (चतुष्पदे) पशुओं के लिये (शं शं भव) सदा कल्याणकारिणी, शान्तिदायिनी हो।
टिप्पणी
(प्र०) ‘आ नः प्रजां’ (द्वि०) ‘आजरसाय सम’ (तृ०) ‘अदूर्मगलीः प’ (च०) ‘शंनो अस्तु’ इति ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
May Prajapati generate progeny for you both. May Aryama grant you happy days and nights. O woman, free from inauspiciousness, enter this life and home with the husband. Let there be peace and joy for humans and animals all.
Translation
May the Lord of creatures bless both of you with offspring. May the ordainer Lord keep you together day and night. Never unpropitious (O bride), enter this house (world) of your husband. Be you a blessing for our bipeds, a blessing for our quadrupeds. (Rg. X.85:43; Variation)
Translation
O bride and bride-groom may the Lord of universe give you off spring, may the sun unite you with day and night, O auspicious bride enter this husbands' house and may there be happiness for our bipeds and quadrupeds.
Translation
May God, the Lord of life, vouchsafe you children. May God bind you, day and night together. Enter thy husband’s house thou bride, free from ill fortune. Bring blessing to our bipeds and quadrupeds.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४०−(वाम्) युवाभ्याम् (प्रजाम्) सन्तानम् (आ जनयतु) उत्पादयतु (प्रजापतिः)परमेश्वरः (अहोरात्राभ्याम्) रात्रिदिनाभ्याम्। सर्वदेत्यर्थः (समनक्तु)संयोजयतु (अर्यमा) श्रेष्ठानां मानकर्ता (अदुर्मङ्गली) दुष्टलक्षणरहिता (पतिलोकम्) पतिकुलम् (आ विश) प्रविश (इमम्) (शम्) सुखप्रदा (नः) अस्माकम् (भव) (द्विपदे) मनुष्यादिसमूहाय (शम्) (चतुष्पदे) गवादिपशुसमूहाय ॥
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