अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 39
ऋषिः - आत्मा
देवता - भुरिक् त्रिष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
161
आ रो॑हो॒रुमुप॑धत्स्व॒ हस्तं॒ परि॑ ष्वजस्व जा॒यांसु॑मन॒स्यमा॑नः। प्र॒जां कृ॑ण्वाथामि॒हमोद॑मानौ दी॒र्घं वा॒मायुः॑ सवि॒ता कृ॑णोतु ॥
स्वर सहित पद पाठआ । रो॒ह॒ । ऊ॒रुम् । उप॑ । ध॒त्स्व॒ । हस्त॑म् । परि॑ । स्व॒ज॒स्व॒ । जा॒याम् । सु॒ऽम॒न॒स्यमा॑न: । प्र॒ऽजाम् । कृ॒ण्वा॒था॒म् । इ॒ह । मोद॑मानौ । दी॒र्घम् । वा॒म् । आयु॑: । स॒वि॒ता । कृ॒णो॒तु॒ ॥२.३९॥
स्वर रहित मन्त्र
आ रोहोरुमुपधत्स्व हस्तं परि ष्वजस्व जायांसुमनस्यमानः। प्रजां कृण्वाथामिहमोदमानौ दीर्घं वामायुः सविता कृणोतु ॥
स्वर रहित पद पाठआ । रोह । ऊरुम् । उप । धत्स्व । हस्तम् । परि । स्वजस्व । जायाम् । सुऽमनस्यमान: । प्रऽजाम् । कृण्वाथाम् । इह । मोदमानौ । दीर्घम् । वाम् । आयु: । सविता । कृणोतु ॥२.३९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहआश्रम का उपदेश।
पदार्थ
[हे पति !] तू (ऊरुम्)जङ्घा के (आ रोह) ऊपर आ, (हस्तम्) हाथ का (उप धत्स्व) सहारा दे, और (सुमनस्यमानः)प्रसन्नचित्त होकर तू (जायाम्) पत्नी को (परि ष्वजस्व) चिपटा ले। [हे स्त्री-पुरुषो !] (इह) यहाँ [गर्भाधानक्रिया में] (मोदमानौ) हर्ष मनाते हुए तुम दोनों (प्रजाम्) सन्तान को (कृण्वाथाम्) उत्पन्न करो, (सविता) सबका उत्पन्न करनेवाला [परमेश्वर] (वाम्) तुम दोनों का (आयुः) आयु (दीर्घम्) दीर्घ (कृणोतु) करे ॥३९॥
भावार्थ
पति-पत्नी दोनोंप्रसन्नवदन होकर मुख के सामने मुख, नासिका के सामने नासिका आदि अङ्गों को यथायोग्य सूधा रक्खें। पुरुष के प्रक्षिप्त वीर्य को खैंचकर स्त्री गर्भाशय मेंस्थिर करे, जिस से गर्भाधानक्रिया सफल होवे, और परमेश्वर के अनुग्रह से उत्तमसन्तान उत्पन्न करके वे दोनों अपने जीवन में प्रसन्न रहें ॥३९॥
टिप्पणी
३९−(आ रोह)आतिष्ठ (ऊरुम्) जङ्घाम् (उप धत्स्व) उपेत्य व्याप्य धारय (हस्तम्) (परि ष्वजस्व)आलिङ्ग (जायाम्) पत्नीम् (सुमनस्यमानः) प्रसन्नचित्तः (प्रजाम्) सन्तानम् (कृण्वाथाम्) जनयतम् (इह) गर्भाधानविधौ (मोदमानौ) हर्षन्तौ (दीर्घम्) (वाम्)युवयोः (आयुः) जीवनम् (सविता) सर्वोत्पादकः परमेश्वरः (कृणोतु) करोतु ॥
विषय
मोदमानौ
पदार्थ
१. हे पूषन् [पुष्टशक्तिवाले वर]! (उरुं आरोह) = युवति की जाँच पर आरोहण कर । (हस्तं उपधत्स्व) = हाथ को तकिये के रूप में सहारा देनेवाला बना और (सुमनस्यमानः) = प्रसन्नचित्तवाला होता हुआ (जायां परिष्वजस्व) = पत्नी का आलिंगन करनेवाला हो। प्रसन्नचित्तता पर ही सन्तान की उत्तमता निर्भर है। हे पूषन् और हे शिवतमे! आप दोनों (इह) = यहाँ-गृहस्थाश्रम में (मोदमानौ) = अत्यन्त हर्ष का अनुभव करते हुए (प्रजां कृण्वाथाम्) = उत्तम सन्तति का निर्माण करो। (सविता) = वह सर्वोत्पादक, सर्वप्रेरक प्रभु (वां आयु:) = आप दोनों के आयुष्य को (दीर्घं कृणोतु) = अत्यन्त दीर्घ करे।
भावार्थ
पति प्रसन्नता से मोदमाना पत्नी का आलिंगन करता हुआ उत्तम सन्तान को जन्म दे। इस पवित्र भावनावाले [भोगवृत्ति से ऊपर उठे हुए] पति-पत्नी के आयुष्य को प्रभु दीर्घ करें।
भाषार्थ
हे पति ! (उरुम्) पत्नी की जांघ पर (आरोह) आरोहण कर (हस्तम्) अपने हाथों का (उपधत्स्व) उपधानरूप में सहारा दे, (सुमनस्यमानः) सुप्रसन्नचित हो कर (जायाम्) पत्नी का (परिष्वजस्व) आलिङ्गन कर। (मोदमानौ) प्रमुदित अर्थात् प्रकर्षाविष्ट तुम दोनों (इह) यहां (प्रजाम् कृण्वाथाम्) प्रजननक्रिया करो, (सविता) सर्वोत्पादक परमेश्वर-पिता (वाम्) तुम दोनों की (आयुः) आयु को (दीर्घम्) दीर्घ (कृणोतु) करे। उपधान= सिरहाना।
टिप्पणी
[व्याख्या- कामशास्त्रों में मैथुन की नानाविधियों और आसनों का वर्णन मिलता है। वेद ने केवल सुगम और उचित आसन का वर्णन किया है, और यही आसन उत्तम-सन्तानों के उत्पादन में उपयोगी है। शेष आसन पारस्परिक अनुचित-कामुकता के प्रदर्शक हैं। उत्तम-सन्तानों के उत्पादन में पति-पत्नी में पारस्परिक प्रसन्नता महत्वपूर्ण कारण है। मन्त्र में सुमनस्यमानः, मोदमानौ, तथा परिष्वजस्व शब्द, पारस्परिक प्रसन्नता के सूचक हैं। गृहस्थधर्म के पालन में अनियन्त्रण तथा लम्पटता से आयुः क्षीण हो जाती है। इसलिये आयु को दीर्घ करने के लिये सविता अर्थात् जगदुत्पादक परमेश्वर की जगदुत्पादन विधि का विचार रखते हुए गृहस्थधर्म का पालन करना चाहिये। सविता, प्रकृति-पत्नी से, जगदुत्पादन कर रहा है, जिस में कि कामुकता का लेश मात्र भी नहीं। इस कामुकता के परित्याग से, गृहस्थधर्म पालन करते हुए भी, आयु दीर्घ हो जाती है।]
विषय
पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
हे पुरुष ! (ऊरुम्) अपनी पत्नी को प्रेम से अपनी जंघा पर (आरोह=आरोहय) चढ़ा ले। (हस्तम्) अपने हाथ को या बाहू को (उपधत्स्व) उसके सिरहाने के समान लगा दे। और (सुमनस्यमानः) शुभ चित्त वाला होकर (जायाम्) अपनी स्त्री को (परिष्वजस्व) आलिंगन कर। हे स्त्री पुरुषो ! (इह) गृहस्थ में (मोदमानौ) परस्पर प्रसन्न रहते हुए, आनन्दविनोद करते हुए तुम दोनों (प्रजाम्) उत्तम सन्तानोस्पत्ति (कृण्वाथाम्) करो। (सविता) सब संसार का उत्पन्न करने वाला परमेश्वर (वां) तुम दोनों की (दीर्घम् आयुः) दीर्घ आयु (कृणोतु) करे।
टिप्पणी
‘आरोहोरूमुपबर्हस्व बाहुम्’ इति आपस्त०। (तृ०) ‘रोदमानौ’ (च०) ‘दीर्घ त्वायुः स’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
Overwhel her with love, caress her softly, embrace the wife happy at heart, and exciting her too at heart, rejoice both here in the home, obtain the child, and may Savita, lord of life, energy and inspiration grant you both a long happy life.
Translation
Mount the thigh. Apply a caressing hand. Embrace your wife with friendly and cheerful mind. May both of you, rejoicing, bring forth progeny here. May the creator Lord grant you long-long life.
Translation
O happy bride-groom mount over thigh of your wife and touch with hand, in a joyous spirit your wife. You both delighted with joy procreate children. May All-creating God give you long life.
Translation
Up, happy bridegroom ! with a joyous spirit caress thy wife and throw thine arm around her. O husband and wife, here, with pleasure procreate your offspring. May God bestow long life upon you both.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३९−(आ रोह)आतिष्ठ (ऊरुम्) जङ्घाम् (उप धत्स्व) उपेत्य व्याप्य धारय (हस्तम्) (परि ष्वजस्व)आलिङ्ग (जायाम्) पत्नीम् (सुमनस्यमानः) प्रसन्नचित्तः (प्रजाम्) सन्तानम् (कृण्वाथाम्) जनयतम् (इह) गर्भाधानविधौ (मोदमानौ) हर्षन्तौ (दीर्घम्) (वाम्)युवयोः (आयुः) जीवनम् (सविता) सर्वोत्पादकः परमेश्वरः (कृणोतु) करोतु ॥
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