Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 67
    ऋषिः - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
    39

    सं॑भ॒ले मलं॑सादयि॒त्वा क॑म्ब॒ले दु॑रि॒तं व॒यम्। अभू॑म य॒ज्ञियाः॑ शु॒द्धाः प्र ण॒ आयूं॑षितारिषत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒म्ऽभ॒ले । मल॑म् । सा॒द॒यि॒त्वा । क॒म्ब॒ले । दु॒:ऽइ॒तम् । व॒यम् । अभू॑म । य॒ज्ञिया॑: । शु॒ध्दा: । प्र । न॒: । आयूं॑षि । ता॒रि॒ष॒त् ॥२.६७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    संभले मलंसादयित्वा कम्बले दुरितं वयम्। अभूम यज्ञियाः शुद्धाः प्र ण आयूंषितारिषत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम्ऽभले । मलम् । सादयित्वा । कम्बले । दु:ऽइतम् । वयम् । अभूम । यज्ञिया: । शुध्दा: । प्र । न: । आयूंषि । तारिषत् ॥२.६७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 67
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    (संभले=संभलस्य) आपसमें समझा देनेवाले पुरुष के (कम्बले) कामनायोग्य कर्म पर (मलम्) मलिनता और (दुरितम्) खोट को (सादयित्वा) मिटा कर (वयम्) हम (यज्ञियाः) पूजायोग्य और (शुद्धाः) शुद्ध (अभूम) होवें, [और यह कर्म] (नः) हमारे (आयूंषि) जीवनों को (प्रतारिषत्) बढ़ावे ॥६७॥

    भावार्थ

    चतुर विद्वान् पुरुषके निर्णय पर परस्पर ग्लानि मिटाकर वधू-वर के पक्षवाले प्रसन्न होवें॥६७॥

    टिप्पणी

    ६७−(संभले) म० ६६। षष्ठ्यर्थे सप्तमी। सम्यग् निरूपकस्य (मलम्) मालिन्यम् (सादयित्वा) नाशयित्वा (कम्बले) म० ६६। कमनीये कर्मणि (दुरितम्) दोषम् (वयम्)पुरुषाः (अभूम) भवेम (यज्ञियाः) पूजार्हाः (शुद्धाः) प्रसन्नाः (प्र तारिषत्)वर्धयेत् (नः) अस्माकम् (आयूंषि) जीवनानि ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    यज्ञिय व शुद्ध दीर्घजीवन

    पदार्थ

    १. (सम्भले) = सम्यक् परिभाषण में (मलं सादयित्वा) = सब मल को विनष्ट करके (वयम्) = हम (कम्बले) = मधुरवाणीरूप जल में (दुरितम्) = सब दुरित को दूर करके यज्ञियाः यज्ञ करने के योग्य (शुद्धा अभूम) = शुद्ध हो जाते हैं। प्रभु (न: आयूँषि प्रतारिषत्) = हमारे जीवनों को दीर्घ करें।

    भावार्थ

    हम सम्यक् परिभाषणरूप जलों में सब मल व दुरितों को दूर करके पवित्र जीवनवाले बनें और प्रभु के अनुग्रह से दीर्घजीवी हों।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (संभले) सम्यक्-भाषी अर्थात् मधुरभाषी वर के [घर] में (दुरितम्) बुरे परिणामों अर्थात् रोगों को पैदा करने वाले (मलम्) मल को (कम्बले) जल में (सादयित्वा) स्थापित कर के (वयम्) हम गृहवासी (यज्ञियाः) यज्ञकर्मों के करने के योग्य (शुद्धाः) शुद्ध (अभूम) हो गए हैं, यह शुद्धि (नः) हम गृहवासियों की (आयुः) आयु को (तारिषत्) बढ़ाएं।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में वर के घर की केवल शुद्धि का वर्णन नहीं किया। इस का वर्णन मन्त्र ६६ में हो चुका है। वर के घर की शुद्धि का पुनः वर्णन इस लिये हुआ है कि विवाह के पश्चात् वधू ने वर के घर रहना है, अतः उस की शुद्धि अधिक अपेक्षित है। मलिन अवस्था में गृहस्थी यज्ञकर्मों का अधिकारी नहीं होता, शुद्धि से आयु की वृद्धि भी होती है]।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    (सम्भले) वर के प्रशंसक ‘संभल’ नामक पुरुष पर (मलं) विवाह के अवसर पर होने वाले दोष को अथवा दोष की उत्तरदायिता को (सादयित्वा) डाल कर और (वयम् दुरितम्) हुई त्रुटिको (कम्बले) कम्बल पर डाल कर हम (यज्ञियाः) विवाह यज्ञ में आये बाराती लोग (शुद्धाः) शुद्ध, निर्दोष (अभूम) रहें। वह ‘सम्भल’ ही (नः) हमारे (आयूंषि) जीवनों को उस अवसर (प्र तारिषत्) सुरक्षित रखता है। वहीं बरातियों के सुखपूर्वक रहने आदि का उत्तरदायी होता है।

    टिप्पणी

    (च०) ‘तारिषम्’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    Having assigned the pollution and undesirables to mutual discussion and discretion of the wise, and having thus washed it off as in water, we have become pure and worthy venerable performers of yajna, and we pray may this purity bring us a long happy life across all difficulties.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Having deposited the malignancy on the intermediary and the fault on his dress, we have become holy and pure. May he prolong our life-spans. .

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    We having laid down our stains on the cloak of bride-groom and evils on the blanket become pure and meet for Yajna. Let the Yajna make our lives prolonged.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    We, having laid the stain and fault in marriage upon the matchmaker’s lovely act, are pure and meet for sacrifice. May lie prolong our lives for us.

    Footnote

    The interceder is responsible for any error in the marriage proceedings. He is responsible also to look after the comforts and health of the marriage party.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६७−(संभले) म० ६६। षष्ठ्यर्थे सप्तमी। सम्यग् निरूपकस्य (मलम्) मालिन्यम् (सादयित्वा) नाशयित्वा (कम्बले) म० ६६। कमनीये कर्मणि (दुरितम्) दोषम् (वयम्)पुरुषाः (अभूम) भवेम (यज्ञियाः) पूजार्हाः (शुद्धाः) प्रसन्नाः (प्र तारिषत्)वर्धयेत् (नः) अस्माकम् (आयूंषि) जीवनानि ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top