अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 66
ऋषिः - आत्मा
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
54
यद्दु॑ष्कृ॒तंयच्छम॑लं विवा॒हे व॑ह॒तौ च॒ यत्। तत्सं॑भ॒लस्य॑ कम्ब॒ले मृ॒ज्महे॑ दुरि॒तंव॒यम् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । दु॒:ऽकृ॒तम् । यत् । शम॑लम् । वि॒ऽवा॒हे । व॒ह॒तौ । च॒ । यत् । तत् । स॒म्ऽभ॒लस्य॑ । क॒म्ब॒ले । मृ॒ज्महे॑ । दु॒:ऽइ॒तम् । व॒यम् ॥२.६६॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्दुष्कृतंयच्छमलं विवाहे वहतौ च यत्। तत्संभलस्य कम्बले मृज्महे दुरितंवयम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । दु:ऽकृतम् । यत् । शमलम् । विऽवाहे । वहतौ । च । यत् । तत् । सम्ऽभलस्य । कम्बले । मृज्महे । दु:ऽइतम् । वयम् ॥२.६६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहआश्रम का उपदेश।
पदार्थ
(यत्) जो (दुष्कृतम्)दुष्ट कर्म (च) और (यत्) जो (शमलम्) मलीनता (विवाहे) विवाह में [अथवा] (यत्) जो (वहतौ) विवाह में दिये पदार्थ में [होवे]। (तत्) उस (दुरितम्) खोट को (संभलस्य)आपस में समझा देनेवाले पुरुष के (कम्बले) कामनायोग्य कर्म पर (वयम्) हम (मृज्महे) शोध लेवें ॥६६॥
भावार्थ
जो कोई दोष विवाह कीप्रवृत्ति वा समाप्ति में आ पड़े, बुद्धिमान् लोग समझ-बूझकर उसका निबटारा कर लें॥६६॥
टिप्पणी
६६−(यत्) (दुष्कृतम्) दुष्टकर्म (यत्) (शमलम्) मालिन्यम् (विवाहे) (वहतौ)विवाहे दातव्यपदार्थे (च) (तत्) दुष्टकर्म (संभलस्य) भल निरूपणे-अच्। सम्यग्निरूपकस्य (कम्बले) कमेर्बुक्। उ० १।१०७ कमु कान्तौ-कल प्रत्यये बुक्। कमनीयेकर्मणि (मृज्महे) शोधयामः (दुरितम्) दुष्कर्म (वयम्) पुरुषार्थिनः ॥
विषय
सम्भल का कम्बल
पदार्थ
१. (यत्) = जो (विवाहे) = विवाह के अवसर पर वहतौ (च) = और दहेज में या रथ में, जिसमें बैठकर पतिगृह की ओर जाया जाता है, उस रथ में (यत्) = जो (दुष्कृतम्) = अशुभ हो जाता है, (यत्) = जो (शमलम्) = शान्तिभंग का कारणभूत विघ्न हो जाता है, (तत् दुरितम्) = उस सब अशुभ आचरण को (वयम्) = हम सम्भलस्य सम्यक् परिभाषण करनेवाले-ठीक प्रकार से बात करनेवाले पुरुष के (कम्बले) = मधुरवाणीरूप जल में [कम्बलम्-जलम्] (मृज्महे) = धो डालते हैं।
भावार्थ
विवाह के अवसर पर तथा रथ द्वारा पतिगृह की ओर प्रस्थान के अवसर पर मधुरता से व्यवहार करते हुए हम सब अशुभों व अशान्तियों को दूर करते हैं।
भाषार्थ
(संभलस्य) सम्यक् भाषी अर्थात् मधुरभाषी वर के (विवाहे) विवाह काल में [वर के घर में], जो (दुष्कृतम्) घर को दूषित करने वाला, (यद्) तथा जो (शमलम्) शान्ति को भंग करने वाला मल एकत्रित हो गया है, (च) और (वहतौ) प्रयाणकाल में रथ में स्थित वधू [के घर] में (यत्) जो दुष्कृत और शमल एकत्रित हो गया है,-जोकि (दुरितम्) बुरे परिणामों अर्थात रोगों को पैदा करता है,- (तत्) उसे (वयम्) हम [दोनों घरों के लोग] (कम्बले) जल में (मृज्महे) धो डालते हैं, जल द्वारा शुद्ध कर देते हैं।
टिप्पणी
[शमलम्=शम् (शान्ति, सुख)+अलम् (समाप्त कर देना)। शमलम्=Impurity (आप्टे)। वहतौ=वहतु का अर्थ है, रथ। “रथस्य वधू” वहतु का लाक्षणिक अर्थ है। यथा “मञ्चाः क्रोशन्ति” में मञ्चाः= मञ्चस्थाः पुरुषाः। संभलस्य=सम् (सम्यक्)+भल (परिभाषणे)। कम्बले=जले। कम्=सुखकारी+बलम्=बलकारी च। कम्बलम्=Water (आष्टे)। कम्बलम् = उदकम् (उणा० १।१०७, महर्षि दयानन्द)। संभलः=(१४।१।३१)]
विषय
पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
(यद्) जो (विवाहे) विवाह के अवसर पर और (यत् च) जो कुछ (वहतौ) दहेज में या रथ में (दुःकृतम्) बुरा, विघ्नकारी कार्य और (यत् शमलम्) जो शमल, घृणित, मलिन कार्य किया हो (वयम्) हम (तत् दुरितम्) उस बुरे कार्य को (सम्भलस्य) मधुर भाषी वरके प्रशंसक पुरुष के (कम्बले) कम्बल में (मृज्महे) शुद्ध करें। अर्थात् जो पुरुष कन्या के पिता के समक्ष वर के गुण वर्णन करता है उसका उसके कार्य के प्रतिफल में कम्बल दिया जाता है। वही विवाह के अवसर पर होने वाले विघ्न और त्रुटिका जिम्मेवार है। जैसे भृत्य के कार्य की त्रुटिको उसके वेतन में से पूर्ण करते हैं उसी प्रकार विवाह कार्य की त्रुटिको सम्भल के वेतन रूप कम्बल में से पूर्ण कर लेना चाहिये।
टिप्पणी
(तृ०) ‘संभरस्य’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
Whatever evil, whatever polluted deed, was done during the wedding or on the bridal car or in the procession, that wrong deed we assign to mutual discussion and discretion of the wise and wash off thus as in cleansing water away.
Translation
What misdeed and what mischief was done at the marriage and in the bridal procession, that blemish we wipe off at the dress of the intermediary.
Translation
Whatever evils were done in marriage, whatever dirty happenings got their places in marriage procession, we cleanse all these in these blanket of the husband. (i.e. all these minor things are removed easily).
Translation
Whatever fault or error was in marriage or dowry, for that woe we hold responsible the lovely act of the sweet tongued match-maker.
Footnote
We: The members of the marriage procession
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६६−(यत्) (दुष्कृतम्) दुष्टकर्म (यत्) (शमलम्) मालिन्यम् (विवाहे) (वहतौ)विवाहे दातव्यपदार्थे (च) (तत्) दुष्टकर्म (संभलस्य) भल निरूपणे-अच्। सम्यग्निरूपकस्य (कम्बले) कमेर्बुक्। उ० १।१०७ कमु कान्तौ-कल प्रत्यये बुक्। कमनीयेकर्मणि (मृज्महे) शोधयामः (दुरितम्) दुष्कर्म (वयम्) पुरुषार्थिनः ॥
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