Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 19
    ऋषिः - आत्मा देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
    74

    उत्ति॑ष्ठे॒तःकिमि॒च्छन्ती॒दमागा॑ अ॒हं त्वे॑डे अभि॒भूः स्वाद्गृ॒हात्। शू॑न्यै॒षी नि॑रृते॒याज॒गन्धोत्ति॑ष्ठाराते॒ प्र प॑त॒ मेह रं॑स्थाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ति॒ष्ठ॒ । इ॒त: । किम् । इ॒च्छन्ती॑ । इ॒दम् । आ । अ॒गा॒: । अ॒हम् । त्वा॒ । ई॒डे॒ । अ॒भि॒ऽभू: । स्वात् । गृ॒हात् । शू॒न्य॒ऽए॒षी । नि॒:ऽऋ॒ते॒ । या । आ॒ऽज॒गन्ध॑ । उत् । ति॒ष्ठ॒ । अ॒रा॒ते॒ । प्र । प॒त॒ । मा । इह । रं॒स्था॒: ॥१.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तिष्ठेतःकिमिच्छन्तीदमागा अहं त्वेडे अभिभूः स्वाद्गृहात्। शून्यैषी निरृतेयाजगन्धोत्तिष्ठाराते प्र पत मेह रंस्थाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । तिष्ठ । इत: । किम् । इच्छन्ती । इदम् । आ । अगा: । अहम् । त्वा । ईडे । अभिऽभू: । स्वात् । गृहात् । शून्यऽएषी । नि:ऽऋते । या । आऽजगन्ध । उत् । तिष्ठ । अराते । प्र । पत । मा । इह । रंस्था: ॥१.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    (निर्ऋते) हे अलक्ष्मी ! [दरिद्रता आदि] (इतः) यहाँ से [सुप्रबन्धयुक्त घर से] (उत् तिष्ठ) उठ, (किम्)क्या [बुरा] (इच्छन्ती) चाहती हुई (इदम्) इस [घर में] (आ अगः) तू आयी है, (अभिभूः) विजयी (अहम्) मैं (त्वा) तुझे (स्वात् गृहात्) अपने घर से (ईडे=ईरे)निकालता हूँ। (शून्यैषी) शून्य [निर्जनपन] चाहनेवाली (या) जो तू (आजगन्ध) आयीहै, (अराते) हे कंजूसिन (उत् तिष्ठ) उठ, (प्र पत) चलती हो, (इह) यहाँ (मारंस्थाः) मत ठहर ॥१९॥

    भावार्थ

    जिस घर में स्त्री-पुरुष विद्वान् चतुर कार्यकुशल होते हैं, वहाँ पर दरिद्रता, कंजूसी आदिदुर्विघ्न नहीं रहते, वह घर धन-धान्य से भरा-पूरा सदा मङ्गलमय रहता है॥१९॥

    टिप्पणी

    १९−(उत्तिष्ठ) दूरे गच्छ (इतः) अस्मात् सुप्रबन्धयुक्तगृहात् (किम्) अहितम् (इच्छन्ती) (इदम्) गृहम् (आ अगाः) आगतवती (अहम्) पुरुषार्थी गृहस्थः (त्वा)त्वाम् (ईडे) रस्य डः। ईरे। प्रेरयामि (अभिभूः) अभिभविता। विजयी (स्वात्) (गृहात्) (शून्यैषी) शूनायै प्राणिहिंसायै हितम्, शूना-यत्+इष इच्छायाम्-अच्, ङीप्। निर्जनत्वमिच्छन्ती (निर्ऋते) अ० १।३१।२। हे कृच्छ्रापत्ते-निरु० २।७। हेअलक्ष्मि (या) या त्वम् (आजगन्ध) थस्य धः। आजगन्थ। आगतवती (उत्तिष्ठ) (अराते) हेअदानशीले (प्रपत) बहिर्गच्छ (इह) अस्मिन् गृहे (मा रंस्थाः) नैवोपरम ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अलक्ष्मी का निर्वासन

    पदार्थ

    १.हे (निर्ऋते) = अलक्ष्मि! तू (इत: उत्तिष्ठ) = यहाँ से खड़ी हो। (किं इच्छन्ति इदं आ अगा:) = क्या चाहती हुई तू इस घर में आई है। (अहं त्वा ईडे) = मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि तू चुपके-से चली जा। (अभिभूः स्वात् गृहात्) = मैं अपने घर से तेरा पराभव करनेवाला हूँ। तुझे इस घर से अवश्य बहिष्कृत करूँगा। २. (शून्यैषी) = घर को सुना करना चाहती हुई (या) = जो तू (आजगन्ध) = यहाँ आई है, वह तू (उत्तिष्ठ) = उठ खड़ी हो। हे (अराते) = अदान की वृत्ति, कृपणते! (प्रपत) = यहाँ से भाग जा। (इह मा रंस्था) = यहाँ तू रमण करनेवाली न हो।

    भावार्थ

    पति-पत्नी यह दृढ़ निश्चय करें कि उनके घर में अलक्ष्मी व अराति [अदानवृत्ति] का निवास नहीं होगा।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    हे पत्नी ! (इतः) इस गार्हपत्याग्नि के स्थान से (उत्तिष्ठ) उठ, और सोचा कर कि (किम्) किस उद्देश्य की (इच्छन्ती) इच्छा करती हुई (इदम्) इस पतिगृह में (आ अगाः) तू आई है। (अहम्) मैं पति (त्वा) तेरी (ईडे) स्तुति करता हूं, तेरे सद्गुणों का कथन करता हूं। हे पत्नी ! तू कहा कर कि (निर्ऋते) हे मूर्त्तिमयी आपत्ति ! (स्वाद् गृहात्) अपने घर से (अहम्) मैं (त्वा) तुझे (अभिभूः) पराभूत करती हूं, निकाल देती हूं, (शून्येषी) तू घर के जीवन को शून्य बना देने की एषणा वाली है, (या) जो (आजगन्ध) तू मेरे घर आई है वह तू (उत्तिष्ठ) यहां से उठ जा, (अराते) हे शत्रुरूप आपत्ति ! (प्र पत) शीघ्र चली जा, (इह) इस घर में (मा)(रंस्थाः) रमण कर। अथवा - (निर्ऋते) हे मूर्त्तिमयी आपत्ति ! (इतः) इस घर से (उत्तिष्ठ) तू उठ जा, (किम्) क्या (इच्छन्ती) चाहती हुई (इदम्) इस घर में (आ अगाः) तू आई है ? (अभिभूः) पराभव करने वाली (अहम्) मैं (स्वात् गृहात्) अपने घर से (त्वा) तुझे (इडे) निकाल देती हूं, (शून्येषी) शून्यता चाहनेवाली, घर को शून्य अर्थात् सूना बना देनेवाली (या) जो तू (आजगन्ध) आ गई है (उत्तिष्ठ) वह तू उठ जा, (अराते) हे शत्रुरूपे ! (प्र प्रत) दौड़ जा, भाग जा, (इह) इस घर में (मा)(रंस्थाः) तू रमण कर।

    टिप्पणी

    [ईडे=ईड स्तुतौ। निर्ॠतिः कृच्छ्रापत्तिः, कष्टापत्तिः। यथा "निर्ऋतिर्निरमणादृच्छतेः पत्तिः" (निरु० २।२।८)। आजगन्ध = आजगन्थ। अरातिः= अ+ रा (दाने) दान का अभाव, कंजूसी आदि शत्रु। अदान सामाजिक जीवन का शत्रु है] व्याख्या--पत्नी गार्हपत्य-अग्नि से अग्निहोत्र कर के सोचा करे कि वह किस उद्देश्य से पतिगृह में आई है, ताकि वह इस उद्देश्य के अनुसार अपने जीवन को ढाल सके। जो पत्नी अपने गृहस्थ जीवन के उद्देश्य को समझ कर, तदनुसार व्यवहार करे, उस गुणवती देवी के सद्गुणों की प्रशंसा पति किया करे। पत्नी गृह्यकष्टों तथा आपत्तियों के निरसन के लिये निज उग्रभावनाओं को जागरित रखे। अथवा [ईडे=ईरे =ईर गतौ कम्पने च ईडे=ईले=ईरे। रलयोरभेद!, डलयोरभेदः] भावार्थ- दैनिक अग्निहोत्र के पश्चात् पत्नी प्रतिदिन ऊपर लिखा संकल्प किया करे। अग्निहोत्र द्वारा रोगों और रोग के कारणों के निरसन के लिये प्रयत्न किया करे। मनुस्मृति के अनुसार निम्न प्रकार से विचार किया करे यथा-- ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थौ चानुचिन्तयेत् ।कायक्लेशांश्च तन्मूलान्वेदतत्त्वार्थं एव च ।।(मनु० ४/९२)

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    O adversity, get off from here! What for do you come? I being the stronger, drive you out of my house. O lover of nothing, O indigence, unwelcome visitor, get up and run off, don’t stay here.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Get up hence. Desiring what have you come here. I, the conquerer, request you (to go) out from my own house. O perdition, you have come here seeking to empty this house. Stand up, O malignity; flee away. Do not tarry here.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let this poverty and calamity disappear from here; desiring what it has come here, I strong (will and power) send this away from my house. This is a hope in vain that it has come here. Let this poverty and calamity fly away and let it not stay here any longer.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O poverty, begone from this house. What wish hath brought thee hither. I mightier than thee expel thee from my house. O poverty, willing to destroy my house, thou hast come here in vain. Get up, Malignity, fly off, stay here no longer!

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १९−(उत्तिष्ठ) दूरे गच्छ (इतः) अस्मात् सुप्रबन्धयुक्तगृहात् (किम्) अहितम् (इच्छन्ती) (इदम्) गृहम् (आ अगाः) आगतवती (अहम्) पुरुषार्थी गृहस्थः (त्वा)त्वाम् (ईडे) रस्य डः। ईरे। प्रेरयामि (अभिभूः) अभिभविता। विजयी (स्वात्) (गृहात्) (शून्यैषी) शूनायै प्राणिहिंसायै हितम्, शूना-यत्+इष इच्छायाम्-अच्, ङीप्। निर्जनत्वमिच्छन्ती (निर्ऋते) अ० १।३१।२। हे कृच्छ्रापत्ते-निरु० २।७। हेअलक्ष्मि (या) या त्वम् (आजगन्ध) थस्य धः। आजगन्थ। आगतवती (उत्तिष्ठ) (अराते) हेअदानशीले (प्रपत) बहिर्गच्छ (इह) अस्मिन् गृहे (मा रंस्थाः) नैवोपरम ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top