अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 13
ऋषिः - आत्मा
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
118
शि॒वानारी॒यमस्त॒माग॑न्नि॒मं धा॒ता लो॒कम॒स्यै दि॑देश। ताम॑र्य॒मा भगो॑ अ॒श्विनो॒भाप्र॒जाप॑तिः प्र॒जया॑ वर्धयन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठशि॒वा । नारी॑ । इ॒यम् । अस्त॑म् । आ । अ॒ग॒न् । इ॒मम् । धा॒ता । लो॒कम् । अ॒स्यै । दि॒दे॒श॒ । ताम् । अ॒र्य॒मा । भग॑: । अ॒श्विना॑। उ॒भा । प्र॒जाऽप॑ति: । प्र॒ऽजया॑ । व॒र्ध॒य॒न्तु॒ ॥२.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
शिवानारीयमस्तमागन्निमं धाता लोकमस्यै दिदेश। तामर्यमा भगो अश्विनोभाप्रजापतिः प्रजया वर्धयन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठशिवा । नारी । इयम् । अस्तम् । आ । अगन् । इमम् । धाता । लोकम् । अस्यै । दिदेश । ताम् । अर्यमा । भग: । अश्विना। उभा । प्रजाऽपति: । प्रऽजया । वर्धयन्तु ॥२.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
गृहआश्रम का उपदेश।
पदार्थ
(इयम्) यह (शिवा)मङ्गलदायिनी (नारी) नारी [नर की पत्नी] (अस्तम्) घर में (आ अगन्) प्राप्त होवे, (धाता) सर्वपोषक [परमात्मा] ने (अस्यै) इस [वधू] को (इमम्) यह (लोकम्) लोक [समाज] (दिदेश) दिया है। (ताम्) उस [वधू] को (अर्यमा) श्रेष्ठों का मान करनेवाला [राजा], (भगः) ऐश्वर्यवान् [आचार्य], (उभा) दोनों (अश्विना) विद्या को प्राप्त [स्त्री-पुरुषों के समाज], और (प्रजापतिः) प्रजापालक [परमेश्वर] (प्रजया) उत्तमसन्तान से (वर्धयन्तु) बढ़ावें ॥१३॥
भावार्थ
जब परमात्मा की कृपासे उत्तम वधू उत्तम वर को प्राप्त हो, राजा की व्यवस्था, आचार्य की शिक्षा, विद्वान् स्त्री-पुरुषों की सत्सङ्गति और परमात्मा की भक्ति से वधू-वर दोनोंगुणवान् श्रेष्ठ सन्तान उत्पन्न करें ॥१३॥
टिप्पणी
१३−(शिवा) मङ्गलदायिनी (नारी) नरस्यपत्नी (इयम्) गुणवती (अस्तम्) गृहम् (आ अगन्) आगच्छतु (इमम्) दृश्यमानम् (धाता)सर्वधारकः परमेश्वरः (लोकम्) समाजम् (अस्यै) वध्वै (दिदेश) दत्तवान् (ताम्)वधूम् (अर्यमा) श्रेष्ठानां मानयिता राजा (भगः) ऐश्वर्यवानाचार्यः (अश्विना)प्राप्तविद्यौ स्त्रीपुरुषसमूहौ (प्रजापतिः) प्रजापालको जगदीश्वरः (प्रजया)श्रेष्ठसन्तानेन (वर्धयन्तु) उन्नयन्तु ॥
विषय
शिवा नारी
पदार्थ
१. (इयम्) = यह (शिवा) = कल्याण करनेवाली (नारी) = गृह पत्नी (अस्तम् आगात्) = इस घर में आई है, (धाता) = उस सर्वाधार प्रभु ने (अस्यै) = इसके लिए (इमं लोकं दिदेश) = इस स्थान को निर्दिष्ट किया है अथवा प्रकाश को प्रास कराया है। प्रभु की व्यवस्था से ही एक युवति को एक नये घर के निर्माण के लिए प्रेरणा प्रास होती है। २. ताम्-इस नारी को (अर्यमा) = [अरीन् यच्छति] काम क्रोधादि शत्रुओं का (नियमन भगः) = संसार-यात्रा का साधनभूत मननीय ऐश्वर्य (उभा अश्विना) = दोनों प्राणापान-प्राण साधना द्वारा प्राणापान की शक्ति का वर्धन तथा (प्रजापति:) = सन्तान के रक्षण की भावना (प्रजया वर्धयन्तु) = उत्तम सन्तान के द्वारा बढ़ाएँ। 'अर्यमा' आदि देव नामों से सचित भावनाएँ ही हमें उत्तम सन्तान को प्राप्त करानेवाली होंगी।
भावार्थ
प्रभु की व्यवस्था से एक युवति एक नवगृहनिर्माण के लिए घर में आती है। इसके व्यवहार पर ही घर का कल्याण निर्भर है। घर में उत्तम सन्तानों का जन्म तभी होता है जब पति-पत्नी काम-क्रोधादि का नियमन करें, आवश्यक ऐश्वयों का सम्पादन करें, प्राणसाधना द्वारा प्राणापान को पुष्ट करें तथा सन्तान के संरक्षण की भावनावाले हो।
भाषार्थ
(शिवा) कल्याणी (इयम्) यह (नारी) नारी, (अस्तम्) पति के घर (आ अगन्) आई है। (धाता) जगत् के धारण करने वाले परमेश्वर ने (अस्यै) इस नारी के लिए (इमम्, लोकम्) यह पतिगृह (दिदेश) निर्दिष्ट किया है। (अर्यमा) जगत् के स्वामी परमेश्वर को जानने वाला, तथा (भगः) ऐश्वर्य आदि से सम्पन्न, और (प्रजापतिः) उत्पन्न होने वाली सन्तानों की पालना और रक्षा करने में समर्थ पति, तथा (अश्विना उभा) पति के दोनों माता-पिता (ताम्) उस नारी को (प्रजया) सन्तानों द्वारा (वर्धयन्तु) बढ़ाएं।
टिप्पणी
[अर्यमा (१४।१।३९)। भगः (१४।१।५१)। अश्विना (१४।१।१४)। दिदेश, दिश् = To allot, to give grant.] [व्याख्या- वधू जब पतिगृह में प्रवेश करे तब गृहपुरोहित कहे कि यह नारी शिवरूपा है, कल्याणस्वरूपा है जो कि इस घर में आई है तथा कहे कि पति-पत्नी के इस सम्बन्ध को विधाता ने निश्चित किया है इस लिये इस सम्बन्ध को बुद्धिमत्ता से स्थिर, पवित्र तथा आनन्दमय बनाए रखना चाहिये। विवाह के अनन्तर पतिगृह पर पत्नी का भी स्वामित्व हो जाता है जितना कि पति का है। पति में तीन गुण होने चाहियें। वह परमेश्वर को मानने वाला हो, आस्तिक हो। वह ऐश्वर्य आदि से सम्पन्न हो। अपनी सन्तान की पालना और रक्षा कर सकने में समर्थ हो, तथा प्रजा वृद्धि कर सके। पत्नी की वास्तविक वृद्धि है उस की गोद में सन्तानरत्नों का होना। क्योंकि सन्ताने ही विवाह में मुख्य लक्ष्य है। आत्मिक तथा उत्पादनशक्ति से सम्पन्ना नारी]
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
This blessed, blissful and gracious bride has come to this home of her husband and family. Dhata, lord ruler and sustainer of the world, had ordained this house, family and environment for her. May Aryama, lord of order and advancement, Bhaga, lord of glory and prosperity, both Ashvins, nature’s complemen¬ tarities of growth and progress, and Prajapati, lord of his children of creation, bless and exalt this bride with children and other people of the family around.
Translation
This auspicious woman has come home. The sustainer Lord has directed her to this place. May the Ordainer Lord, the Lord of good fortune, both the twins divine, the Lord of creatures make her prosper with progeny.
Translation
May this bride destroys of well-being of all go to her husband's house. God, the sustainer of world has show the path of house-hold life. May Aryaman, air, Bhagh, the sun, the twain of Prana and Apana and Prajapatih, the Lord of the creation and creatures prosper her with progeny.
Translation
This blessed dame has come to her husband’s house. God hath given her this new society. May the King, dignified preceptor, learned men and women, and God, make her thrive with offspring.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(शिवा) मङ्गलदायिनी (नारी) नरस्यपत्नी (इयम्) गुणवती (अस्तम्) गृहम् (आ अगन्) आगच्छतु (इमम्) दृश्यमानम् (धाता)सर्वधारकः परमेश्वरः (लोकम्) समाजम् (अस्यै) वध्वै (दिदेश) दत्तवान् (ताम्)वधूम् (अर्यमा) श्रेष्ठानां मानयिता राजा (भगः) ऐश्वर्यवानाचार्यः (अश्विना)प्राप्तविद्यौ स्त्रीपुरुषसमूहौ (प्रजापतिः) प्रजापालको जगदीश्वरः (प्रजया)श्रेष्ठसन्तानेन (वर्धयन्तु) उन्नयन्तु ॥
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