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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 30
    ऋषिः - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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    रु॒क्मप्र॑स्तरणंव॒ह्यं विश्वा॑ रू॒पाणि॒ बिभ्र॑तम्। आरो॑हत्सू॒र्या सा॑वि॒त्री बृ॑ह॒तेसौभ॑गाय॒ कम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रु॒क्म॒ऽप्रस्त॑रणम् । व॒ह्यम् । विश्वा॑ । रू॒पाणि॑ । बिभ्र॑तम् । आ । अ॒रो॒ह॒त् । सू॒र्या । सा॒वि॒त्री । बृ॒ह॒ते । सौभ॑गाय । कम् ॥२.३०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रुक्मप्रस्तरणंवह्यं विश्वा रूपाणि बिभ्रतम्। आरोहत्सूर्या सावित्री बृहतेसौभगाय कम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रुक्मऽप्रस्तरणम् । वह्यम् । विश्वा । रूपाणि । बिभ्रतम् । आ । अरोहत् । सूर्या । सावित्री । बृहते । सौभगाय । कम् ॥२.३०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 30
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    (रुक्मप्रस्तरणम्)सुवर्ण के बिछौनेवाले, (विश्वा) सब (रूपाणि) रूपों [उत्तम, मध्यम, नीच आकार वाबैठकों] को (बिभ्रतम्) धारण करनेवाले (वह्यम्) [गृहाश्रमरूप] गाड़ी पर (सावित्री) सविता [सर्वजनक परमात्मा] को अपना देवता माननेवाली (सूर्या) प्रेरणाकरनेवाली [वा सूर्य की चमक के समान तेजवाली] वधू (बृहते) बड़े (सौभगाय) सौभाग्य [पति की प्रीति, बहुत ऐश्वर्य आदि सुख] पाने के लिये (कम्) सुख से (आ अरुहत्)चढ़ी है ॥३०॥

    भावार्थ

    हे विद्वानो ! यहब्रह्मवादिनी तेजस्विनी वधू गृहाश्रम में प्रविष्ट हुई है, हम ऐसा उपाय करें किवह पतिप्रिया और ऐश्वर्यवती होकर सदा सुख भोगे ॥३०॥

    टिप्पणी

    ३०−(रुक्मप्रस्तरणम्) स्तृञ्आच्छादने-ल्युट्। सुवर्णच्छादनयुक्तम् (वह्यम्) गृहाश्रमरूपं यानं रथम् (विश्वा)सर्वाणि (रूपाणि) आकारान् (बिभ्रतम्) शतृरूपम्। धारयन्तम् (आरोहत्) प्रातिष्ठत् (सूर्या) प्रेरयित्री सूर्यदीप्तिवत्तेजस्विनी वा वधूः (सावित्री) सवितासर्वोत्पादकः परमात्मा देवता यस्याः सा (बृहते) महते (सौभगाय) सुभगत्वाय।पतिप्रियत्वाय। बह्वैश्वर्याय (कम्) सुखेन ॥

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    विषय

    रुक्म प्रसारणं वह्यम

    पदार्थ

    १. (सूर्या) = सूर्यसम तेजस्विनी, (सावित्री) = उत्तम सन्तानों को जन्म देनेवाली यह वधू (बृहते सौभगाय) = महान् सौभाग्य के लिए (कं वह्यम्) = इस सुखप्रद गृहस्थ-रथ पर (आरोहत्) = आरूढ़ हुई है। यह वधू इस गृहस्थ के सौभाग्य को बढ़ानेवाली ही प्रमाणित होगी। २. यह गृहस्थ (रुक्मनप्रस्तरणम्) = देदीप्यमान, शुद्ध व अलंकृत प्रस्तरणों-बिछौनोंबाला है तथा (विश्वा रूपाणि बिभ्रतम्) = [रूप cattle] गौ आदि सब पशुओं से युक्त हो। यहाँ न आवश्यक वस्त्रों की कमी है, न दूध, दही आदि की ही कमी है।

    भावार्थ

    वधू को 'सूर्या व सावित्री' होना है। वर को ऐसी व्यवस्था करनी है कि घर में न आवश्यक वस्त्रों की कमी हो और न शरीर के लिए आवश्यक दुधादि भोजनों की कमी हो।

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    भाषार्थ

    (रुक्मप्रस्तेरणम्) सुवर्ण की नक्काशी से युक्त गद्दी वाली, (विश्वा) तथा विविध (रूपाणि) रूपों को (बिभ्रतम्) धारण की हुई (वह्मम्) पालकी पर, (सावित्री) जीवित पिता वाली (सूर्या) सूर्या-ब्रह्मचारिणी, (बृहते, सौभगाय) बड़े सौभाग्य के लिए, (कम्) सानन्द (आरोहत्) चढ़ी है।

    टिप्पणी

    [रुक्मप्रस्तरणम् = (मन्त्र १४।१।६१)। वह्यम्= रथ या पालकी। सविता = पिता (मन्त्र १४।१।९, १३)। सावित्री = सविता की पुत्री। कम्= सुखनाम (निघं० ३।६)]

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    विषय

    पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    (सावित्री) प्रजा उत्पन्न करने में समर्थ (सूर्या) सूर्य के समान कान्तिमती, कन्या (बृहते सौभगाय) बड़े भारी सौभाग्य के लिये (कम्) ही (रुक्मप्रस्तरणम्) सुनहले बिछोने से सजे (विश्वा रूपाणि) नाना सुन्दर रूपों के (बिभ्रतम्) धारण करने वाले (वह्यं) रथ पर (आरोहत्) सवार हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    Let Surya Savitri, maidenly child of the sun, rise and ascend the chariot covered in golden light, wearing all forms of beauty for the attainment of abundant prosperity and high felicity of married life.

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    Translation

    This damsel of marriageable age (Surya), this girl at procreative stage (Savitri) has mounted this gold-cushioned litter, bearing all sorts of decorations for great happiness and good fortune.

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    Translation

    Let Surya, the child of Savitar, or the bride who is the child of her child of her fathet and mother mount on the comfortable conveyance which is decorated by golden cloth and has various colors, for great felicity and prosperity.

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    Translation

    May this bride, fit to bear children, lustrous like the Sun, for high felicity alone, mount this litter of domestic life, wearing all sorts of loveliness and full of priceless beddings.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३०−(रुक्मप्रस्तरणम्) स्तृञ्आच्छादने-ल्युट्। सुवर्णच्छादनयुक्तम् (वह्यम्) गृहाश्रमरूपं यानं रथम् (विश्वा)सर्वाणि (रूपाणि) आकारान् (बिभ्रतम्) शतृरूपम्। धारयन्तम् (आरोहत्) प्रातिष्ठत् (सूर्या) प्रेरयित्री सूर्यदीप्तिवत्तेजस्विनी वा वधूः (सावित्री) सवितासर्वोत्पादकः परमात्मा देवता यस्याः सा (बृहते) महते (सौभगाय) सुभगत्वाय।पतिप्रियत्वाय। बह्वैश्वर्याय (कम्) सुखेन ॥

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