अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 43
ऋषिः - आत्मा
देवता - त्रिष्टुब्गर्भा पङ्क्ति
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
69
स्यो॒नाद्योने॒रधि॒ बुध्य॑मानौ हसामु॒दौ मह॑सा॒ मोद॑मानौ। सु॒गू सु॑पु॒त्रौसु॑गृ॒हौ त॑राथो जी॒वावु॒षसो॑ विभा॒तीः ॥
स्वर सहित पद पाठस्यो॒नात् । योने॑: । अधि॑ । बुध्य॑मानौ । ह॒सा॒मु॒दौ । मह॑सा । मोद॑मानौ । सु॒गू इति॑ सु॒ऽगू । सु॒ऽपु॒त्रौ । सु॒ऽगृ॒हौ । त॒रा॒थ॒: । जी॒वौ । उ॒षस॑: । वि॒ऽभा॒ती: ॥२.४३॥
स्वर रहित मन्त्र
स्योनाद्योनेरधि बुध्यमानौ हसामुदौ महसा मोदमानौ। सुगू सुपुत्रौसुगृहौ तराथो जीवावुषसो विभातीः ॥
स्वर रहित पद पाठस्योनात् । योने: । अधि । बुध्यमानौ । हसामुदौ । महसा । मोदमानौ । सुगू इति सुऽगू । सुऽपुत्रौ । सुऽगृहौ । तराथ: । जीवौ । उषस: । विऽभाती: ॥२.४३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहआश्रम का उपदेश।
पदार्थ
[हे स्त्री-पुरुषो !] (स्योनात्) सुखदायक (योनेः) घर से (अधि) अच्छे प्रकार (बुध्यमानौ) जागते हुए, (हसामुदौ) हँसी और आनन्द करते हुए (महसा) बड़े प्रेम से (मोदमानौ) हर्ष मनातेहुए, (सुगू) सुन्दर चाल चलनेवाले [वा उत्तम गौओंवाले] (सुपुत्रौ) श्रेष्ठपुत्रोंवाले, (सुगृहौ) श्रेष्ठ गृह सामग्रीवाले, (जीवौ) प्राणों को धारण करतेहुए तुम दोनों (विभातीः) सुन्दर प्रकाशयुक्त (उषसः) बहुत प्रभातवेलाओं को (तराथः) पार करो ॥४३॥
भावार्थ
स्त्री-पुरुषों कोउचित है कि अपने घरों को आवश्यक गृहसामग्रियों से भरपूर रक्खें और पुत्र-पौत्रआदि के साथ प्रसन्न रहकर चिरजीवी होकर यशस्वी होवें ॥४३॥यह मन्त्र महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात है ॥
टिप्पणी
४३−(स्योनात्)सुखप्रदात् (योनेः) गृहात्-निघ० ३।४ (अधि) यथाविधि (बुध्यमानौ) जागरूकौ।अप्रमत्तौ (हसामुदौ) हास्येनामोदं कुर्वन्तौ (महसा) महता प्रेम्णा (मोदमानौ)हर्षन्तौ (सुगू) सु+गच्छतेर्डु, यद्वा। गोस्त्रियोरुपसर्जनस्य। पा० १।२।४८। इतिगोर्ह्रस्वः। शोभनचरित्रौ। उत्तमगोयुक्तौ (सुपुत्रौ) श्रेष्ठसन्तानौ (सुगृहौ)श्रेष्ठगृहसामग्रीयुक्तौ (तराथः) पारयतम् (जीवौ) प्राणान् धारयन्तौ (उषसः)बहुप्रभातवेलाः (विभातीः) विविधप्रकाशमानाः ॥
विषय
सुगू सुपुत्रौ सुगृहौ
पदार्थ
१. (स्योनात् योने: अधिबुध्यमानौ) = सुखकर घर के हेतु से आधिक्येन प्रबुद्ध [जागरित], सावधान होते हुए, अर्थात् प्रमाद, आलस्य व निद्रा से ऊपर उठकर घर को सुखमय बनाते हुए (हसामुदौ) = हँसी के साथ प्रसन्न होते हुए (महसा मोदमानौ) = तेजस्विता से आनन्दित होते हुए सग-उत्तम इन्द्रियोंवाले व उत्तम गौओंवाले (सुपुत्रौ) = उत्तम सन्तानोंवाले और इसप्रकार (सुग्रहौ) = उत्तम गृहोंवाले (जीवौ) = जीवनीशक्ति से परिपूर्ण आप दोनों पति-पत्नी (विभाती: उषस: तराथ:) = देदीप्यमान उषाकालों को तैरनेवाले बनो।
भावार्थ
घर को उत्तम बनाने के लिए आवश्यक है कि पति-पत्नी प्रबुद्ध हों, प्रसन्न हों, तेजस्विता से प्रफुल्लित हों। उत्तम गौओं, उत्तम सन्तानों व उत्तम घरोंवाले होकर जीवनीशक्ति से परिपूर्ण होते हुए उषाकालों को तैरनेवाले बनें।
भाषार्थ
हे पति-पत्नी ! (सुगू) तुम उत्तमगौओं वाले, (सुपुत्रौ) उत्तम-पुत्र पुत्रियों वाले, (सुगृहौ) उत्तम-घरों वाले हुए हुए, (स्योनात्) सुखदायक (योनेः अधि) घर से (बुध्यमानौ) जागकर, (हसामुदौ) हंसते-और-प्रमुदित होते हुए, (महसा) वस्त्रों की चमक अर्थात् स्वच्छता के कारण (मोदमानौ) सुप्रसन्न होते हुए, (बिभातीः) विविध रंगों से चमकीली (उषसः) उषाओं के (तरायः) पार होया करो, (जीवी) इस प्रकार दीर्घजीवी होओ।
टिप्पणी
[स्योनात् = स्योनम् सुखनाम (निघं० ३।६)। योनेः= योनिः गृहनाम (निघं० ३।४)। महसा = महस्= चमक; Lustre (आप्टे)।] [व्याख्या-गृह जीवन को सुखी बनाने के लिए घर में उत्तम गौएं चाहिये, उत्तम-सन्तानें तथा उत्तम मकान चाहियें। इस प्रकार के सुखी घर से जाग कर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर, हंसी और मोद-प्रमोद करते हुए, उषाकालों में प्रतिदिन,-उषाकाल के प्रारम्भ से उषाकाल की समाप्ति पर्यन्त-भ्रमण करना चाहिये। इस से पति-पत्नी दीर्घजीवी होते हैं।]
विषय
पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
(स्योनाद्) सुखकारी (योनेः) सेज या शयनस्थान से (अधि बुध्यमानौ) जागकर उठते हुए (हसामुदौ) परस्पर हंसी, विनोद युक्त होकर और (महसा) तेज और बल से (मोदमानौ) परस्पर आनन्दविनोद करते हुए (सुगू) उत्तम इन्द्रियों या गौओं से सम्पन्न और (सुपुत्रौ) उत्तम पुत्रों से युक्त और (सुगृहौ) उत्तम गृह से सम्पन्न होकर (जीवौ) दोनों जीव-वर वधू, सुख से जीवन बीताते हुए (विभातीः) विविधरूप से प्रकाशमान (उषसः) उषाओं, दिनों को (तराथः) व्यतीत करें।
टिप्पणी
(तृ० च०) ‘सुभौ सुयुतौ सुकृतौ चरातो जीवा उषासो विभातीः’ इति पैप्प० सं०। ‘चराथः’ इति क्वचित्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
Awake, arising and emerging over beautiful quarters, happy, laughing, celebrating your joy of the heart with pleasure and festivity, moving around at leisure, having noble children, a good home, live well enthusiastically, across the bright golden dawns and days of your life.
Translation
Waking up in your comfortable house, laughing merrily and greatly rejoicing, having good cattle, good sons, and good - household, may you two spirits swim through the splendours of dawn.
Translation
O Ye Jivau, (the bride and bride-groom) you both rising up from the comfortable bed, being happy in laughter, delighted with vigor and splendor, possessing good limbs and good cows, having good children, having good houses at your disposal pass away the dawns resplendent.
Translation
In your comfortable house awaking both together, reveling heartily with joy and laughter, rich with good cattle, brave sons, goodly homestead, live long to look on many radiant mornings.
Footnote
This verse has been explained by Maharshi Dayananda in the Sanskar Vidhi in the chapter on Grihastha Ashrama.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४३−(स्योनात्)सुखप्रदात् (योनेः) गृहात्-निघ० ३।४ (अधि) यथाविधि (बुध्यमानौ) जागरूकौ।अप्रमत्तौ (हसामुदौ) हास्येनामोदं कुर्वन्तौ (महसा) महता प्रेम्णा (मोदमानौ)हर्षन्तौ (सुगू) सु+गच्छतेर्डु, यद्वा। गोस्त्रियोरुपसर्जनस्य। पा० १।२।४८। इतिगोर्ह्रस्वः। शोभनचरित्रौ। उत्तमगोयुक्तौ (सुपुत्रौ) श्रेष्ठसन्तानौ (सुगृहौ)श्रेष्ठगृहसामग्रीयुक्तौ (तराथः) पारयतम् (जीवौ) प्राणान् धारयन्तौ (उषसः)बहुप्रभातवेलाः (विभातीः) विविधप्रकाशमानाः ॥
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