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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 38
    ऋषिः - आत्मा देवता - परानुष्टुप् त्रिष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
    1113

    तां पू॑षंछि॒वत॑मा॒मेर॑यस्व॒ यस्यां॒ बीजं॑ मनु॒ष्या॒ वप॑न्ति। या न॑ ऊ॒रू उ॑श॒तीवि॒श्रया॑ति॒ यस्या॑मु॒शन्तः॑ प्र॒हरे॑म॒ शेपः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ताम् । पूष॑न् । शि॒वऽत॑माम् । आ । ई॒र॒य॒स्व॒ । यस्या॑म् । बीज॑म् । म॒नु॒ष्या᳡: । वप॑न्ति । या । न॒: । ऊ॒रू इति॑ । उ॒श॒ति । वि॒ऽश्रया॑ति । यस्या॑म् । उ॒शन्त॑: । प्र॒ऽहरे॑म । शेप॑: ॥२.३८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तां पूषंछिवतमामेरयस्व यस्यां बीजं मनुष्या वपन्ति। या न ऊरू उशतीविश्रयाति यस्यामुशन्तः प्रहरेम शेपः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ताम् । पूषन् । शिवऽतमाम् । आ । ईरयस्व । यस्याम् । बीजम् । मनुष्या: । वपन्ति । या । न: । ऊरू इति । उशति । विऽश्रयाति । यस्याम् । उशन्त: । प्रऽहरेम । शेप: ॥२.३८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 38
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    (पूषन्) हे पोषक पति ! (ताम्) उस (शिवतमाम्) अतिशय कल्याण करनेहारी पत्नी को (आ ईरयस्व) प्रेरणा कर (यस्याम्) जिस [पत्नी] में (मनुष्याः) मनुष्यलोग [मैं पति] (बीजम्) वीर्य (वपन्ति) बोवें। (या) जो (नः) हमारी (उशती) कामना करती हुई (ऊरू) दोनों जङ्घाओंको (विश्रयाति) फैलावे, और (यस्याम्) जिस में (उशन्तः) [उसकी] कामना करते हुएहम लोग (शेपः) उपस्थेन्द्रिय का (प्रहरेम) प्रहरण करें ॥३८॥

    भावार्थ

    मन्त्र में बहुवचनविद्वत्ता, बलवत्ता और प्रीति के सूचनार्थ है। युवा पति पत्नी दोनों परस्परकामना करते हुए प्रसन्नवदन होकर गर्भाधान के लिये अपने अङ्गों को यथाविधि ठीककरें ॥३८॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है १०।८५।३७। ऊपर मन्त्र ३७ भी देखो॥

    टिप्पणी

    ३८−(ताम्) युवतीम् (पूषन्) हे पोषक पते (शिवतमाम्) अतिशयेनानन्दकरीम् (एरयस्व)प्रेरय (यस्याम्) पत्न्याम् (बीजम्) वीर्यम् (मनुष्याः) नराः (वपन्ति)निक्षिपन्ति (या) पत्नी (नः) अस्मान् (ऊरू) जङ्घाप्रदेशौ (उशती) कामयमाना (विश्रयाति) विविधं श्रयेत्। विस्तारयेत् (यस्याम्) (उशन्तः) तां कामयमानाः (प्रहरेम) प्रहृतं कुर्याम (शेपः) उपस्थेन्द्रियम् ॥

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    विषय

    पूषा शिवतमा

    पदार्थ

    १. हे (पूषन्) = अपनी शक्तियों का उचित पोषण करनेवाले युवक ! तू (तां शिवतमाम्) = उस अतिशयेन मंगलमय स्वभाववाली पत्नी को (एरयस्व) = प्रेरित करनेवाला हो। पति में सन्तान प्राप्ति की कामना हो तो पत्नी को भी उस भावना से युक्त होने के लिए प्रेरित करे। उस पत्नी को तू प्रेरणा देनेवाला हो (यस्याम्) = जिसमें (मनुष्या:) = विचारशील व्यक्ति (बीजं वपन्ति) = सन्तानोत्पत्ति के लिए बीज का वपन करते हैं। २. पत्नी वही ठीक है (या) = जो (उशती) = उत्तम सन्तान की कामनावाली होती हुई (न: ऊरू विश्नयाति) = हमारे ऊरूओं को खोलनेवाली होती है। (यस्याम) = जिसमें पति भी (उशन्त:) = उत्तम सन्तान की कामनावाले होते हुए (शेपं प्रहोम) = जननेन्द्रिय को प्राप्त कराते हैं। सन्तान की कामना से होनेवाला यह बीजवपन 'वीर्यदान' कहलाता है। भोगवत्ति में यही 'वीर्यविनाश' हो जाता है।

    भावार्थ

    पति 'पूषा' हो, पत्नी शिवतमा'। दोनों उत्तम सन्तान की कामनावाले होकर ही परस्पर सम्बद्ध हों। यह सम्बन्ध पवित्र होता हुआ शक्ति-विनाश का कारण न बनेगा।

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    भाषार्थ

    (पूषन्) हे परिपुष्ट पति ! (शिवतमाम्) शिवस्वरूपा कल्याणमयी (ताम्) उस पृथिवीरूपा जनित्री शक्ति को (एरयस्व) तु प्रेरित कर, (यस्याम्) जिस में कि (मनुष्याः) पुरुष (बीजम्) बीज (वपन्ति) बोते हैं (या) जो (उशती) कामना वाली (नः) हमारे लिये (ऊरू) जांघों को (विश्रयाति) खोल देती है (उशन्तः) और कामना वाले हम पुरुष (यस्याम्) जिस में (शेपः) पुरुषेन्द्रिय का (प्रहरेम) प्रहार करें।

    टिप्पणी

    [पूषन् = परिपुष्टपति (अथर्व० १४।१।१५,३९), पति परिपुष्ट होना चाहिये। निर्बल की सन्ताने निर्बल होती हैं। वीर्यग्रहण के लिये पत्नी को शिवस्वरूपा होना चाहिये, उसे, शिवसंकल्पो तथा शिवकर्मों की मूर्ति होना चाहिये। इस से सन्तानें भी शिवसंकल्पों तथा शिवकर्मों वाली हो सकेंगी। सन्तान-कर्म के लिये पत्नी की कामना आवश्यक है, पत्नी पर जबर्दस्ती नहीं चाहिये। सम्भोग एक ही की कामना का परिणाम न होना चाहिये। दूसरे साथी की कामना के बिना किया भोग बलात्कार है। "प्रहरेम" द्वारा प्रजननोपयोगी पुरुषेन्द्रिय की कठोरता को सूचित किया है जो कि जननेन्द्रियशास्त्र (Eugenics) के अनुकूल है। मन्त्र में स्त्री को पृथिवी तथा पौरुषशक्ति को बीज कहा है। पृथिवी में बीजाधान, कोई भी किसान, बिना प्रयोजन के नहीं करता। अपितु बीज की उत्तमता और पृथिवी की उपजाऊ शक्ति तथा ऋतु को दृष्टिगत कर के ही किसान बीजावाप करता है। गृहस्थधर्म में भी इन परिस्थितियों का विचार अवश्य अपेक्षित है। "यस्यां बीजं मनुष्या वपन्ति" का अर्थ है "जिस में मनुष्य बीज बोते है"। बीज बोने के वर्णन से यह अभिप्राय है कि जिस पृथिवी में किसान लोग बीज बोते हैं। परन्तु विवाह प्रकरण में यह अभिप्राय है कि जिस पृथिवी सदृश जनित्री-शक्ति में पतिलोग बीज बोते हैं। "यस्याम्" द्वारा मन्त्र में कोई एक विशेष नारी अभिप्रेत नहीं, जिस से कि एक नारी के बहुपति होने की आशंका हो सके। मन्त्र १४।२।१४ में नारी को "उर्वरा" कहा है। उर्वरा का अर्थ होता है "उपजाऊ भूमि" इस से नारी-शक्ति या जनित्री-शक्ति को पृथिवी द्वारा रूपित किया है। मन्त्र १४।१।१,२ नारी-शक्ति को भूमि तथा पृथिवी कहा गया है। इस से बीजावाप की दृष्टि से पृथिवी के गुण-धर्मों का आरोप नारी-शक्ति या जनित्री-शक्ति पर किया गया है। जैसे पृथिवी एक एकाई है वैसे नारी-शक्ति या जनित्री-शक्ति भी एक एकाई-रूप है। पृथिवीरूप से पृथिवी एक एकाई है, परन्तु फिर भी किसान को यह अधिकार प्राप्त नहीं कि वह जहां चाहे अपना बीजावाप कर दे। पृथिवी के एक सीमित निज भूक्षेत्र में ही बीजावाप का अधिकार उसे प्राप्त होता है। इसी प्रकार पृथिवीरूपा नारी-शक्ति या जनित्री-शक्ति एक एकाई है। परन्तु फिर भी प्रत्येक पुरुष को यह अधिकार प्राप्त नहीं कि वह जिस किसी नारी में अपना बीजावाप अर्थात् वीर्याधान कर सके। इसे भी एक सीमित या नियत नारी-क्षेत्र में ही बीजावाप करने का अधिकार, विवाह विधि द्वारा प्राप्त है। इस लिये "नारी" में एक वचन तथा "मनुष्याः, वपन्ति, उशन्तः" में बहुवचनों के होते भी मन्त्र द्वारा एक पत्नी के बहुपति होने की आशङ्का न करनी चाहिये। साथ ही यह भी जानना चाहिये कि दम्पती के सम्बन्ध में मन्त्र में चकवा-चकवी पक्षियों का दृष्टान्त दिया है (अथर्व० १४।२।६४; चक्रवाकेन दम्पती)। यह कविप्रसिद्ध बात है कि चकवा-चकवी में, एक की मृत्यु हो जाने पर जीवित पक्षी, पुनः अन्य चकवा-चकवी के साथ सम्बन्ध नहीं करता।]

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    विषय

    पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    हे पूषन् ! पोषक पते ! तू (ताम्) उस परम प्रियतमा (शिवतमाम्) अति कल्याणकारिणी उस स्त्री को (ऐरयस्व) प्राप्त कर, (यस्याम्) जिसमें (मनुष्याः) मनुष्य, मननशील पुरुष (बीजम्) अपना बीज (वपन्ति) बोते हैं। (या) जो स्त्री (उशती) कामना करती हुई। (नः) हमारे लिये (ऊरू) अपनी दोनों जंघाएं (विश्रयाति) खोलकर धर दे और (यस्याम्) जिसमें हम (उशन्तः) कामना करते हुए (शेपः) प्रजनन अंग को (प्रहरेम) प्रवेश करावें।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘विश्रयाते’ (च०) ‘प्रहराम शेषम्’ इति ऋ० पैप्प० सं०, ‘तां न...विश्रयाते...प्रहरेम शेपम्’ इति हि० गृ० सू०। ‘सा नः पूषा शिवतमेरय सा न ऊरू उशती विहर। यस्यामुशन्तः प्रहराम शेपं यस्यामुकामा बहवोनिविष्ट्ये’ पा० गृ० सू०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    O youthful, protective man, love, court, solicit and inspire her, the wife in your care, who is the most blessed and blissful partner of your life, for, into her, men sow the seed of their life’s extension. It is she who in the state of love would bare and wax herself in whom men in a state of passion would plant the seed for generation.

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    Translation

    O Lord of nourishment, inspire her, who is-most auspicious, in whom men may sow seed; who shall twine her loving arms about me, and enter into consummation. (Rv. X.85.37)

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    Translation

    O Men, you are the strengthener. You inspire into this lady well-wisher of you and your family the spirit of procreating children. This woman is such an entity in whom the men sow semen-seed, who desiring progeny spread her thigh towards her husband and in whom the husband like you and us thrust organ with the desire of children.

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    Translation

    O powerful husband, secure this bride, who shall be the sharer of thy pleasures;-who shall twine her eager arms about her husband, and welcome all his love and soft embraces.

    Footnote

    See Rig, 10-85-37.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३८−(ताम्) युवतीम् (पूषन्) हे पोषक पते (शिवतमाम्) अतिशयेनानन्दकरीम् (एरयस्व)प्रेरय (यस्याम्) पत्न्याम् (बीजम्) वीर्यम् (मनुष्याः) नराः (वपन्ति)निक्षिपन्ति (या) पत्नी (नः) अस्मान् (ऊरू) जङ्घाप्रदेशौ (उशती) कामयमाना (विश्रयाति) विविधं श्रयेत्। विस्तारयेत् (यस्याम्) (उशन्तः) तां कामयमानाः (प्रहरेम) प्रहृतं कुर्याम (शेपः) उपस्थेन्द्रियम् ॥

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