अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 31
ऋषिः - आत्मा
देवता - जगती
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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आ रो॑ह॒ तल्पं॑सुमन॒स्यमा॑ने॒ह प्र॒जां ज॑नय॒ पत्ये॑ अ॒स्मै। इ॑न्द्रा॒णीव॑ सु॒बुधा॒बुध्य॑माना॒ ज्योति॑रग्रा उ॒षसः॒ प्रति॑ जागरासि ॥
स्वर सहित पद पाठआ । रो॒ह॒ । तल्प॑म् । सु॒ऽम॒न॒स्यमा॑ना । इ॒ह॒ । प्र॒ऽजाम् । ज॒न॒य॒ । पत्ये॑ । अ॒स्मै । इ॒न्द्रा॒णीऽइ॑व । सु॒ऽबुधा॑ । बुध्य॑माना । ज्योति॑:ऽअग्रा: । उ॒षस॑: । प्रति॑ । जा॒ग॒रा॒सि॒ ॥२.३१॥
स्वर रहित मन्त्र
आ रोह तल्पंसुमनस्यमानेह प्रजां जनय पत्ये अस्मै। इन्द्राणीव सुबुधाबुध्यमाना ज्योतिरग्रा उषसः प्रति जागरासि ॥
स्वर रहित पद पाठआ । रोह । तल्पम् । सुऽमनस्यमाना । इह । प्रऽजाम् । जनय । पत्ये । अस्मै । इन्द्राणीऽइव । सुऽबुधा । बुध्यमाना । ज्योति:ऽअग्रा: । उषस: । प्रति । जागरासि ॥२.३१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहआश्रम का उपदेश।
पदार्थ
[हे वधू !] तू (सुमनस्यमाना) प्रसन्नचित्त होकर (तल्पम्) पर्यङ्क पर (आ रोह) चढ़, ओर (इह) यहाँ [गृहाश्रम में] (अस्मै पत्ये) इस पति के लिये (प्रजाम्) सन्तान (जनय) उत्पन्नकर। (इन्द्राणी इव) इन्द्राणी [बड़े ऐश्वर्यवान् मनुष्य की पत्नी वा सूर्य कीकान्ति] के समान, (सु बुधा) सुन्दर ज्ञानवाली (बुध्यमाना) सावधान तू (ज्योतिरग्राः) ज्योति को आगे रखनेवाली (उषसः प्रति) प्रभातवेलाओं में (जागरासि) जागती रहे ॥३१॥
भावार्थ
वधू को योग्य है किप्रसन्नचित्त होकर पति के साथ उच्च पद पर विराजकर उत्तम सन्तान उत्पन्न करे औरसावधान रहकर सूर्योदय से पहिले उठकर शारीरिक और आत्मिक उन्नति करे ॥३१॥मन्त्र ३१और ३२ महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात हैं ॥
टिप्पणी
३१−(आरोह) आतिष्ठ (तल्पम्) पर्यङ्कम्। उच्चपदम् (सुमनस्यमाना) प्रसन्नचित्ता सती (इह)गृहाश्रमे (प्रजाम्) सन्तानम् (जनय) उत्पादय (पत्ये) (अस्मै) (इन्द्राणी)इन्द्रस्य पत्नी। ऐश्वर्यवतः पुरुषस्य भार्या। सूर्यकान्तिः (इव) यथा (सुबुधा)बहुज्ञानवती (बुध्यमाना) सावधाना (ज्योतिरग्राः) ज्योतिः प्रकाशोऽग्रे यासां ताः (उषसः) प्रभातवेलाः (प्रति) अनुलक्ष्य (जागरासि) जागृता भवेः ॥
विषय
सुमनस्यमाना
पदार्थ
१. हे वधु! तू (सुमनस्यमाना) = प्रसन्नचित्तवाली होती हुई इह यहाँ-गृहस्थाश्रम में (तल्पं आरोहः) = पर्यंक [चारपाई] पर आरोहण कर और (अस्मै) = इस पति के लिए-इसके वंश के अविच्छेद के लिए (प्रजां जनय) = सन्तान को जन्म दे। उत्तम सन्तान के लिए पति-पत्नी की मानस प्रसन्नता सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसमें भी पत्नी का सौमनस्य अधिक महत्त्व रखता है। २. वधू के लिए उपदेश है कि तू इन्द्राणी इव-इन्द्र की पत्नी के समान बन। तेरा पति भी जितेन्द्रिय हो, तू भी इन्द्रियों को वश में रखनेवाली हो। वैषयिक वृत्ति होने पर सन्तानों के उत्तम होने का प्रश्न ही नहीं होता। (सुबुधा) = तू उत्तम बोधवाली हो। (बुध्यमाना) = बड़ी समझदार-सब बातों को ठीक से समझनेवाली हो। (ज्योतिरग्रा: उषस:) = नक्षत्र ताराओंवाली उषाओं में ही (प्रतिजागरासि) = तू प्रतिदिन जागनेवाली हो-सूर्य-उदय से बहुत पूर्व ही जागकर क्रियाशील होती है।
भावार्थ
सन्तानों की उत्तमता के लिए गृहिणी ने 'सदा प्रसन्न मनवाली, जितेन्द्रिय व ज्ञानरुचि, समझदार व उषाकाल में प्रबुद्ध होनेवाली' होना है। ऐसी बनकर ही वह उत्तम सन्तानों को जन्म दे पाती है।
भाषार्थ
हे वधु ! (सुमनस्यमाना) सुप्रसन्नचित्त वाली तू (तल्पम्) पलङ्ग पर (आ रोह) चढ़, (इह) यहां अर्थात् इस गृहस्थाश्रम में (अस्मै, पत्ये) इस पति के लिए (प्रजाम, जनय) प्रजा को उत्पन्न कर। (इन्द्राणीव) आत्मशक्ति सम्पन्न पुरुष की पत्नी के सदृश (सुबुधा)१ सुबोधयुक्ता तू (बुध्यमाना) और भी बोध को प्राप्त करती हुई, (ज्योतिरग्राः) अग्रभाग में ज्योति वाली (उषसः प्रति) उषाओं के कालों में (जागरासि) तू अपने कर्तव्यों में जागरूक रह।
टिप्पणी
[इन्द्राणी=इन्द्र अर्थात् जीवात्मा इसीलिये जीवात्मा के साधनों को इन्द्रिय कहते हैं। इन्द्राणी= आत्मशक्तिसम्पन्न पुरुष की पत्नी]। [व्याख्या- वधू के प्रति मन्त्र में निम्नलिखित उपदेश दिये गए हैं। (१) दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो कर, रात्रि के समय तू जब शयन के लिए चारपाई पर जाया करे तब प्रसन्नचित्त हो कर चारपाई पर आरोहण किया कर। सोने से पूर्व चित्त अवश्य प्रसन्न होना चाहिये। इस से निद्रा शीघ्र आ जाती तथा गाढ़-निद्रा आती है। साथ ही इन्द्रियों और शरीर की शिथिलता भी दूर हो जाती है। वधू से यह भी कहा है कि ब्रह्मचर्य काल में यद्यपि तू ने उच्चकोटि की शिक्षा पाई है, तो भी गृहस्थ जीवन में और भी ज्ञान की प्राप्ति करते रहना तथा ब्राह्म मुहूर्त में ही जागकर गृहस्थ के कर्मों के करने में सावधान रहना इस सात्विक समय में सुस्ती, निद्रा तथा आलस्य न करना।]
विषय
पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
हे नववधू ! तू (सुमनस्यमाना) शुभ चित्तवाली होकर (तल्पम्) सेज पर (आरोह) चढ़। (अस्मै पत्ये) इस पति के लिये (प्रजां जनय) प्रजा को उत्पन्न कर। तू (इन्द्राणी इव) इन्द्र परमेश्वर की परम शक्ति या इन्द्र राजा की स्त्री महाराणी के समान (सुबुधाः) उत्तम ज्ञान सम्पन्न होकर (ज्योतिरग्रा) नक्षत्र = ताराओं वाली (उषसः) उषाओं में ही (बुध्यमाना) सचेत होकर (प्रति) प्रतिदिन (जागरसि) जागा कर। प्रातः सूर्य उगने से पूर्व नक्षत्रों के होते होते प्रथम पत्नी को जागना चाहिये।
टिप्पणी
(तृ०) ‘इन्द्राणीव सुप्ता बुध्य’ (च०) ‘प्रति चाकरः’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
Come happy at heart, ascend this bridal bed and here in this home give birth to noble progeny for this young man, your husband. Like the wife of divine Indra, intelligent, rising in awareness and wisdom, leading light of the dawn, be wide awake and ever alert in your life and conduct of duty.
Translation
Mount the bridal bed with friendly and cheerful mind. Give birth to offsprings here for this husband of yours. Alert and easy to awake like Indrani, may you wake up to meet the dawns followed by light.
Translation
O bride, you having a delightful sound sleep on the bed procreate children for this husband and you educated well, rise always very early like the splendor of the Sun which is the first light dawn and always be alert like this dawn-light in your work and duties.
Translation
O bride, mount the bridal bed with cheerful spirit, here bring forth children to this man thy husband watchful and talented like a queen, wake thou before the earliest light of Morning.
Footnote
Verses 31-40 contain the epithalamium.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३१−(आरोह) आतिष्ठ (तल्पम्) पर्यङ्कम्। उच्चपदम् (सुमनस्यमाना) प्रसन्नचित्ता सती (इह)गृहाश्रमे (प्रजाम्) सन्तानम् (जनय) उत्पादय (पत्ये) (अस्मै) (इन्द्राणी)इन्द्रस्य पत्नी। ऐश्वर्यवतः पुरुषस्य भार्या। सूर्यकान्तिः (इव) यथा (सुबुधा)बहुज्ञानवती (बुध्यमाना) सावधाना (ज्योतिरग्राः) ज्योतिः प्रकाशोऽग्रे यासां ताः (उषसः) प्रभातवेलाः (प्रति) अनुलक्ष्य (जागरासि) जागृता भवेः ॥
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