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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 8
    ऋषिः - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
    75

    एमंपन्था॑मरुक्षाम सु॒गं स्व॑स्ति॒वाह॑नम्। यस्मि॑न्वी॒रो न रिष्य॑त्य॒न्येषां॑वि॒न्दते॒ वसु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । इ॒मम् । पन्था॑म् । अ॒रु॒क्षा॒म॒ । सु॒ऽगम् । स्व॒स्ति॒ऽवाह॑नम् । यस्मि॑न् । वी॒र: । न । रिष्य॑ति । अ॒न्येषा॑म् । वि॒न्दते॑ । वसु॑ ॥२.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एमंपन्थामरुक्षाम सुगं स्वस्तिवाहनम्। यस्मिन्वीरो न रिष्यत्यन्येषांविन्दते वसु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । इमम् । पन्थाम् । अरुक्षाम । सुऽगम् । स्वस्तिऽवाहनम् । यस्मिन् । वीर: । न । रिष्यति । अन्येषाम् । विन्दते । वसु ॥२.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    (इमम्) इस [वैदिक] (सुगम्) सुख से चलने योग्य, (स्वस्तिवाहनम्) आनन्द पहुँचानेवाले (पन्थाम्) मार्गपर (आ अरुक्षाम) हम चढ़ें। (यस्मिन्) जिस [मार्ग] में (वीरः) वीर पुरुष (नरिष्यति) कष्ट नहीं पाता है, और (अन्येषाम्) दूसरे [अधर्मियों] का (वसु) धन [दण्ड द्वारा] (विन्दते) लेता है ॥८॥

    भावार्थ

    गृहस्थियों को चाहियेकि धार्मिक वैदिक मार्ग पर चलकर वीरपन से अधर्मियों को दण्ड दें और धनवृद्धिकरें ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(इमम्) प्रसिद्धं वैदिकम् (पन्थाम्) मार्गम् (आ अरुक्षाम) आरुहेम (सुगम्) सुखेन गमनीयम् (स्वस्तिवाहनम्) आनन्दप्रापकम् (यस्मिन्) पथि (वीरः)पराक्रमी पुरुषः (न) निषेधे (रिष्यति) दुःखं प्राप्नोति (अन्येषाम्) अधर्मिणाम् (विन्दते) लभते (वसु) धनम् ॥

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    विषय

    'सुगं स्वस्तिवाहन' पन्था

    पदार्थ

    (इमम्) = इस (सुगम्) = शुभ की ओर ले जानेवाले (स्वस्तिवाहनम्) = कल्याण प्राप्त करानेवाले (पन्थाम् आ अरुक्षाम) = मार्ग पर ही आरोहण करें। हम सदा शुभ मार्ग पर ही चलें, उस मार्ग पर चलें, जिसपर चलता हुआ (वीर: न रिष्यति) = वीरपुरुष हिंसित नहीं होता तथा (अन्येषाम्) = विलक्षण पुरुषों [Extra-ordinary] के (वसु विन्दते) = धन को प्राप्त करता है।

    भावार्थ

    हम उत्तम मार्ग पर चलते हुए वीर बनें, रोगादि से हिंसित न हों तथा विशिष्ट धनों को प्राप्त करें।

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    भाषार्थ

    (इमम्) इस (पन्थाम्) गृहस्थ-तीर्थ [मन्त्र ६] के पथ पर (आ अरुक्षाम) हम आरूढ़ हुए हैं, (सुगम्) जो कि सुगम मार्ग है, (स्वस्तिवाहनम्) और कल्याण प्राप्त करता है। (यस्मिन्) जिस मार्ग पर चलता हुआ (वीरः) धर्मवीर पुरुष (रिष्यति, न) विनाश को प्राप्त नहीं होता, और (अन्येषाम्) अन्य धर्मवीरों की (वसु) धर्मरूपी सम्पत् को (विन्दते) प्राप्त करता है।

    टिप्पणी

    [स्वस्ति = उत्तम स्थिति। "सुष्ठु अस्ति वर्त्तते इति स्वस्ति, कल्याणं वा" (उणा० ४।१८२)। वाहनम् = वह प्रापणे] [व्याख्या– मन्त्र ६ में गृहस्थ को तीर्थ तथा सुगम कहा है, परन्तु तब जब कि गृहस्थ-पथ पर सुमतिपूर्वक और धर्मपूर्वक चला जाय। धर्मपूर्वक चलने गृहस्थी दीर्घजीवी हो कर विनाश को प्राप्त नहीं होते, और वे अन्य सद्गृहस्थियों के धर्ममार्ग का अवलम्बन करते रहते हैं। इस प्रकार जीवन में उत्तमस्थिति प्राप्त कर, कल्याण को प्राप्त करते हैं।]

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    विषय

    पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    हम लोग (इमं पन्थाम्) इस मार्ग को (आरुक्षाम्) प्राप्त करें, उसपर चलें जो (सुगम) सुख से चलने योग्य और (स्वस्तिवाहनम्) जिसपर सुख से रथ, घोड़े और हाथी आदि चल सकें। (यस्मिन्) जिस से (वीरः) वीर्यवान् पुरुष, राजा (न रिष्यति) कभी क्लेश नहीं पाता प्रत्युत (अन्येषां) औरों के (वसु) धन आदि सम्पत्ति और आवास योग्य गृह आदि पर भी (विन्दते) अधिकार प्राप्त करता है।

    टिप्पणी

    (प्र० द्वि०) ‘सुगं पन्थानमारुक्षामरिष्टं स्वास्ति’ इति आपस्त०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    We have taken on to this path of matrimony as our way of life. It is holy, clear, and a harbinger of auspicious well being and prosperity. On this path the brave are never defeated, never destroyed, in fact they achieve the same wealth and values as of the other brave way farers past and present.

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    Translation

    Let us ride along this path, easy to bring weal, whereon no hero suffers harm and he wins the wealth of his enemies.

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    Translation

    We walk by this path which is easily passable and good for conveyance and which the brave man does not find any trouble and attains the wealth for others.

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    Translation

    Let us follow the convenient, blissful Vedic path, whereon no here suffers harm, which gives us more wealth than all other paths.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(इमम्) प्रसिद्धं वैदिकम् (पन्थाम्) मार्गम् (आ अरुक्षाम) आरुहेम (सुगम्) सुखेन गमनीयम् (स्वस्तिवाहनम्) आनन्दप्रापकम् (यस्मिन्) पथि (वीरः)पराक्रमी पुरुषः (न) निषेधे (रिष्यति) दुःखं प्राप्नोति (अन्येषाम्) अधर्मिणाम् (विन्दते) लभते (वसु) धनम् ॥

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