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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 20
    ऋषिः - आत्मा देवता - पुरस्ताद् बृहती छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
    144

    य॒दागार्ह॑पत्य॒मस॑पर्यै॒त्पूर्व॑म॒ग्निं व॒धूरि॒यम्। अधा॒ सर॑स्वत्यै नारिपि॒तृभ्य॑श्च॒ नम॑स्कुरु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒दा । गार्ह॑ऽपत्यम् । अस॑पर्यैत् । पूर्व॑म् । अ॒ग्निम् । व॒धू: । इ॒यम् । अध॑ । सर॑स्वत्यै । ना॒रि॒ । पि॒तृऽभ्य॑: । च॒ । नम॑: । कु॒रु॒ ॥२.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदागार्हपत्यमसपर्यैत्पूर्वमग्निं वधूरियम्। अधा सरस्वत्यै नारिपितृभ्यश्च नमस्कुरु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदा । गार्हऽपत्यम् । असपर्यैत् । पूर्वम् । अग्निम् । वधू: । इयम् । अध । सरस्वत्यै । नारि । पितृऽभ्य: । च । नम: । कुरु ॥२.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 20
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    (यदा) जब (इयम् वधू)इस वधू ने (गार्हपत्यम्) गृहस्थसम्बन्धी (अग्निम्) अग्नि को (पूर्वम्) पहिले से (असपर्यैत्) सेवन किया है। (अध) इसलिये (नारि) हे नारी ! (सरस्वत्यै) सरस्वती [विज्ञान के भण्डार परमेश्वर] को (च) और (पितृभ्यः) पितरों [पिता समान मान्यपुरुषों] को (नमः) नमस्कार (कुरु) कर ॥२०॥

    भावार्थ

    जिस परमेश्वर की औरजिन महान् पुरुषों की कृपा से इस वधू ने हवन, शिल्प, अन्न, ओषधि आदि में अग्निकी विद्या को यथावत् जाना है, उस परमेश्वर और उन बड़े लोगों को वह कुलवधू सदाधन्यवाद देती रहे ॥२०॥

    टिप्पणी

    २०−(यदा) यस्मिन् काले (गार्हपत्यम्) गृहपतिसंबन्धिनम् (असपर्यैत्) असपर्यत्। सेवितवती (पूर्वम्) अग्रे (अग्निम्) अग्निविद्याम् (वधू) (इयम्) (अध) अथ (सरस्वत्यै) सरो विज्ञानं विद्यते यस्यां चितौ सा सरस्वती, तस्यै। सर्वविज्ञानवते परमेश्वराय (नारि) हे नरस्य पत्नि (पितृभ्यः)पितृतुल्यमान्येभ्यः (च) (नमः) नमस्कारम् (कुरु) ॥

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    विषय

    देवयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ, पितृयज्ञ

    पदार्थ

    १. (यदा) = जब (इयं वधूः) = यह वधू (पूर्वम्) = पहले (गार्हपत्यं अग्निं असपमैत्) = गार्हपत्य अग्नि का पूजन करती है, (अधा) = अब हे (नारि) = गृहपत्नि। तू (सरस्वत्यै) = सरस्वती के लिए-ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी के लिए (च) = तथा (पितृभ्यः) = पितरों के लिए (नमस्कुरु) = नमस्कार कर। २. गार्हपत्य अग्नि का पूजन यही है कि नैत्यिक अग्निहोत्र अवश्य किया जाए तथा घर में भोजनादि की सुव्यवस्था को सुव्यवस्थित रक्खा जाए, यही देवयज्ञ है। इसके साथ गृहपत्नी का यह भी आवश्यक कर्तव्य है कि वह स्वाध्याय करे, यही सरस्वतीपूजन व ब्रह्मयज्ञ है। स्वाध्यायानन्तर बड़ों के चरणों में प्रणाम किया जाए, यह बड़ों को आदर देना ही पितृयज्ञ है।

    भावार्थ

    एक वधू घर में 'देवयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ व पितृयज्ञ' को अवश्य सम्पादित करनेवाली हो।

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    भाषार्थ

    (यदा) जब (इयम्) वह (वधू) वधू, (पूर्वम्) पहिले, (गार्हपत्यम्, अग्निम) गार्हपत्याग्नि की (असपर्यैत्) परिचर्या कर चुके, अर्थात् अग्निहोत्र कर ले, (अधा) तदनन्तर (नारि) हे नारि ! हे वधु ! तू (सरस्वत्यै) वेदविद्या की अधिष्ठात्री पारमेश्वरी-शक्ति को, (च) और (पितृभ्यः) माता पिता रूप सास, श्वशुर आदि वृद्धों को (नमस्कुरु) नमस्कार किया कर।

    टिप्पणी

    [असपर्यैत्=सपर्यति परिचरण कर्मा (निघं० ३।५) परिचर्या=सेवा। पितृभ्यः=मातरश्च पितरश्च (एकशेष) तेभ्यः)] व्याख्या-अग्निहोत्र के पश्चात् वेद स्वाध्याय कर के, परमेश्वर को नमस्कार वधू करे, और घर के बुजुर्गो को भी नमस्कार किया करे।]

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    विषय

    पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    (यदा) जब (इयम् वधूः) यह नववधू (गार्हपर्त्यम्) गार्हपत्य (अग्निम्) अग्नि को (असपर्यैत) सेवा करती है (अधा) तब ही हे (नारि) स्त्री ! तू (सरस्वत्यै) सरस्वती, वेदवाणी का पाठ कर (पितृभ्यः च) और घर के वृद्ध पालक पिता आदि को भी (नमः कुरु) नमस्कार किया कर अर्थात् नववधू अग्निहोत्र के पश्चात् ही वेद का स्वाध्याय और वृद्धों को नमस्कार किया करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    As this lady of the house has served and maintained the holy fire of home life, so now, O lady, offer homage to Sarasvati and the parents and seniors of the family.

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    Translation

    When first of all this bride has tended the household fire, thereafter, O woman, pay your homage to the divine doctress as well as to the elders.

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    Translation

    O woman of the house, when this bride first enkindles the house-hold fire (for Yajna) you at that time pronounce vedic verse and pay respect to fathers.

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    Translation

    When this woman hath first of all adored the sacred household fire, O Dame, then study the Vedas, and pay homage to the elders of the family.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २०−(यदा) यस्मिन् काले (गार्हपत्यम्) गृहपतिसंबन्धिनम् (असपर्यैत्) असपर्यत्। सेवितवती (पूर्वम्) अग्रे (अग्निम्) अग्निविद्याम् (वधू) (इयम्) (अध) अथ (सरस्वत्यै) सरो विज्ञानं विद्यते यस्यां चितौ सा सरस्वती, तस्यै। सर्वविज्ञानवते परमेश्वराय (नारि) हे नरस्य पत्नि (पितृभ्यः)पितृतुल्यमान्येभ्यः (च) (नमः) नमस्कारम् (कुरु) ॥

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