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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 64
    ऋषिः - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
    184

    इ॒हेमावि॑न्द्र॒सं नु॑द चक्रवा॒केव॒ दम्प॑ती। प्र॒जयै॑नौ स्वस्त॒कौ विश्व॒मायु॒र्व्यश्नुताम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒ह । इ॒मौ । च॒न्द्र॒ । सम् ।नु॒द॒ । च॒क्र॒वा॒काऽइ॑व । दंप॑ती॒ इति॒ दम्ऽप॑ती । प्र॒ऽजया॑ । ए॒नौ॒ । ॒सु॒ऽअ॒स्त॒कौ । विश्व॑म् । आयु॑: । वि । अ॒श्नु॒ता॒म् ॥२.६४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इहेमाविन्द्रसं नुद चक्रवाकेव दम्पती। प्रजयैनौ स्वस्तकौ विश्वमायुर्व्यश्नुताम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इह । इमौ । चन्द्र । सम् ।नुद । चक्रवाकाऽइव । दंपती इति दम्ऽपती । प्रऽजया । एनौ । सुऽअस्तकौ । विश्वम् । आयु: । वि । अश्नुताम् ॥२.६४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 64
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहआश्रम का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हेपरमैश्वर्ययुक्त राजन् ! (इह) यहाँ [संसार में] (इमौ) इन दोनों (चक्रवाका इव)चकवा-चकवी के समान (दम्पती) पति-पत्नी को (सं नुद) यथावत् प्रेरणा कर (प्रजया)प्रजा के साथ (एनौ) इन दोनों (स्वस्तकौ) उत्तम घरवालों को (विश्वम्) सम्पूर्ण (आयः) आयु (वि अश्नुताम्) प्राप्त होवे ॥६४॥

    भावार्थ

    राजा व्यवस्था करे किपति-पत्नी चकवा-चकवी के समान बड़े प्रेम से मिलकर रहें और ब्रह्मचर्य के पालन औरधनादि के रक्षण से बलवान् और सुखी होकर पूर्ण आयु भोगें ॥६४॥यह मन्त्र महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात है ॥

    टिप्पणी

    ६४−(इह) संसारे (इमौ)प्रसिद्धौ (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (सं नुद) सम्यक् प्रेरय (चक्रवाका-इव) स्वनामख्यातौ खगौ यथा (दम्पती) जायापती (प्रजया) सन्तानेन (एनौ)द्वितीयाटौस्वेनः। पा० २।४।३४। इति द्वितीयायाम् एनादेशः। पूर्वोक्तौ (स्वस्तकौ)अस्तं गृहनाम-निघ० ३।४। उत्तमगृहयुक्तौ (विश्वम्) सम्पूर्णम् (आयुः) जीवनम् (अश्नुताम्) प्राप्नोतु ॥

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    विषय

    चक्रवाकः इव दम्पती

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले ऐश्वर्यशाली प्रभो! (इह) = इस घर में (इमौ दम्पती) = इन पति-पत्नी को (चक्रवाकः इव) = चकवा-चकवी की भाँति (संनुद) = प्रेरित कीजिए। 'चक्रवाक' की भावना है 'चक तृसौ, वच भाषणे', जो तृप्त हैं, असन्तुष्ट नहीं और प्रभु का गुणगान करते हैं। घर में पति-पत्नी काम-क्रोध से ऊपर उठे हुए, आवश्यक ऐश्वर्य से युक्त हुए-हुए प्रसन्नतापूर्वक प्रभु का स्मरण करनेवाले हों। २. (एनौ) = ये सन्तुष्ट व प्रभु-स्मरणयुक्त पति पत्नी (प्रजया) = उत्तम सन्तान के साथ (स्वस्तकौ) = उत्तम गृहवाले होते हुए (विश्व आय:) = पूर्ण जीवन को (व्यश्नुताम्) = प्राप्त करें। इनके शरीर स्वस्थ हों। मन पवित्र हों तथा मस्तिष्क सुलझे हुए हों।

    भावार्थ

    प्रभुकृपा से घर में पति-पत्नी पुरुषार्थ के साथ प्रभु-स्मरण करते हुए पवित्र ऐश्वर्यवाले हों। उत्तम सन्तान को प्राप्त करके. अपने घर को शुभ बनाएँ और पूर्ण जीवन प्राप्त करें।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे सम्राट्! या राजकीय वव्यस्था! (इमौ) इन दोनों अर्थात् पति-पत्नी को (इह) इस गृहस्थाश्रम में (सं नुद) इकट्ठे रहने, एक-दूसरे के साथ रहने की प्रेरणा कर, (दम्पती) क्योंकि पति-पत्नी (चक्रवाका=चक्रवाकौ, इव) चकवा-चकवी पक्षियों के जोड़े के सदृश है। (एनौ) ये दोनों (प्रजया) उत्तम सन्तानों वाले, (स्वस्तकौ) उत्तम घरों वाले, (विश्वम्) सम्पूर्ण (आयुः) आयु को (व्यश्नुताम्) प्राप्त हों, भोगें।

    टिप्पणी

    [इन्द्र=इन्द्रश्च सम्राट् वरुणश्च राजा (यजु० ८।३७)। प्रजया=प्रजया सम्बद्धौ। “प्रजावन्तौ” (पैप्पलाद शाखा)] [व्याख्या–विवाह बन्धन में, पति और पत्नी को व्यवस्थित रखना, राजनियमों द्वारा होता है। राजकीय व्यवस्था के न होने पर यह सम्बन्ध दृढ़ नहीं रह सकता। विषय वासना आदि कारण इस सम्बन्ध को शिथिल कर दें, यदि राजदण्ड का भय इस में बाधक न हो। इस उद्देश्य से मन्त्र में राजा या राजकीय-व्यवस्था का आश्रय, पति-पत्नी के एक-दूसरे के साथ दृढ़-बद्ध रहने में लिया गया है। दाम्पत्य-सम्बन्ध अर्थात् पति-पत्नी के सम्बन्ध को स्थिर द्योतित करने के लिए, मन्त्र में, चकवा-चकवी को आदर्शरूप में पेश किया गया है। चकवा-चकवी के दाम्पत्य-सम्बन्ध का वर्णन संस्कृत साहित्य में बहुत हुआ है। इन पक्षियों में नर-मादा का सम्बन्ध यावज्जीवन स्थिर रहता है। एक की मृत्यु हो जाने पर दूसरा किसी अन्य नर-मादा के साथ सम्बन्ध नहीं रखता, और दोनों के जीवित रहते इन का पारस्परिक नर-मादा का सम्बन्ध कभी व्यभिचरित नहीं होता। इसी प्रकार मनुष्यों में भी पति-पत्नी का सम्बन्ध स्थिर रहना चाहिये, अर्थात् इन में एक पत्नीव्रत तथा एक पतिव्रत का नियम सुदृढ़ होना चाहिये। पति-पत्नी का गृह सूना है यदि उन की कोई सन्तान नहीं। परन्तु जैसी-वैसी भी सन्तान गृहजीवन के सुनेपन को दूर नहीं कर सकती। प्रजा अर्थात् प्रकृष्ट सन्तान ही गृहजीवन को वास्तविक रूप दे सकती है। सजा-सजाथा घर उत्कृष्ट नहीं यदि उस में प्रकृष्ट और सद्गुणी सन्तानों का वास नहीं। वैदिक गृहस्थ का उद्देश्य उत्तम सन्तानें हैं। गृहस्थ जीवन में संयम का भी उचित ध्यान होना चाहिये। गृहस्थ जीवन अधिकार प्राप्त लम्पटता का जीवन नहीं। उचित और विहित संयम के रहते ही पति-पत्नी के दीर्घायु पर, भोग के कारण, कोई अनुचित प्रभाव नहीं पड़ता। परिणामरूप में इन दोनों की आयु १०० वर्षों तक की होनी अधिक सम्भावित हो जाती है।]

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    विषय

    पति पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) परमेश्वर ! (इमौ) इन दोनों (चक्रवाका इव) चकवा चकवी के समान परस्पर प्रेम से बंधे (दम्पती) पति पत्नी भाव से मिले हुए जोड़े को (सं नुद) प्रेरणा कर कि (एनौ) वे दोनों (सु-अस्तकौ) उत्तम घर में रहते हुए (प्रजया) अपनी प्रजा सहित (विश्वम् आयुः) समस्त आयु का (वि अश्नुताम्) नाना प्रकार से भोग करें।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘प्रजावन्तौ स्वस्तकौ दीर्घमा०’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। सूर्यः स्वयमात्मतया देवता। [ १० यक्ष्मनाशनः, ११ दम्पत्योः परिपन्थिनाशनः ], ५, ६, १२, ३१, ३७, ३९, ४० जगत्य:, [३७, ३६ भुरिक् त्रिष्टुभौ ], ९ व्यवसाना षट्पदा विराड् अत्यष्टिः, १३, १४, १७,१९, [ ३५, ३६, ३८ ], ४१,४२, ४९, ६१, ७०, ७४, ७५ त्रिष्टुभः, १५, ५१ भुरिजौ, २० पुरस्ताद् बृहती, २३, २४, २५, ३२ पुरोबृहती, २६ त्रिपदा विराड् नामगायत्री, ३३ विराड् आस्तारपंक्ति:, ३५ पुरोबृहती त्रिष्टुप् ४३ त्रिष्टुब्गर्भा पंक्तिः, ४४ प्रस्तारपंक्तिः, ४७ पथ्याबृहती, ४८ सतः पंक्तिः, ५० उपरिष्टाद् बृहती निचृत्, ५२ विराट् परोष्णिक्, ५९, ६०, ६२ पथ्यापंक्तिः, ६८ पुरोष्णिक्, ६९ त्र्यवसाना षट्पदा, अतिशक्वरी, ७१ बृहती, १-४, ७-११, १६, २१, २२, २७-३०, ३४, ४५, ४६, ५३-५८, ६३-६७, ७२, ७३ अनुष्टुभः। पञ्चसप्तत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    O lord omnipotent, ruler of the world, Indra, pray bless and inspire this wedded couple loving each other like chakravaka birds: May this couple live and attain a full, long, happy, perfect life with noble progeny in a prosperous home.

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    Translation

    O resplendent Lord, may you urge these two spouses to each other like a cakravaka couple. May both of them live their full life-span with children in their nice home.

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    Translation

    O learned man, or king, you inspire in the married the spirit of living like the pair of Chakravaka, Anus Casarca. Both of them attain the full longevity of life with children enjoying all sorts of happiness.

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    Translation

    Persuade thou this couple, O God, like the Chakravaka and his mate: may they attain to full old age with children in their happy home.

    Footnote

    Chakravaka (Anas Casarca, commonly called the Brahmany duck). Chakwa and Chakwi are regarded as emblems of conjugal love a.rid constancy. This verse has been explained by Maharshi Dayananda in the Sanskar Vidhi in the chapter on Domestic life.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६४−(इह) संसारे (इमौ)प्रसिद्धौ (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (सं नुद) सम्यक् प्रेरय (चक्रवाका-इव) स्वनामख्यातौ खगौ यथा (दम्पती) जायापती (प्रजया) सन्तानेन (एनौ)द्वितीयाटौस्वेनः। पा० २।४।३४। इति द्वितीयायाम् एनादेशः। पूर्वोक्तौ (स्वस्तकौ)अस्तं गृहनाम-निघ० ३।४। उत्तमगृहयुक्तौ (विश्वम्) सम्पूर्णम् (आयुः) जीवनम् (अश्नुताम्) प्राप्नोतु ॥

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