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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 7/ मन्त्र 29
    सूक्त - अथर्वा, क्षुद्रः देवता - स्कन्धः, आत्मा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सर्वाधारवर्णन सूक्त

    स्क॒म्भे लो॒काः स्क॒म्भे तपः॑ स्क॒म्भेऽध्यृ॒तमाहि॑तम्। स्कम्भं॒ त्वा वे॑द प्र॒त्यक्ष॒मिन्द्रे॒ सर्वं॑ स॒माहि॑तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्क॒म्भे । लो॒का: । स्क॒म्भे । तप॑: । स्क॒म्भे । अधि॑ । ऋ॒तम् । आऽहि॑तम् । स्कम्भ॑ । त्वा॒ । वे॒द॒ । प्र॒ति॒ऽअक्ष॑म् । इन्द्रे॑ । सर्व॑म् । स॒म्ऽआहि॑तम् ॥७.२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्कम्भे लोकाः स्कम्भे तपः स्कम्भेऽध्यृतमाहितम्। स्कम्भं त्वा वेद प्रत्यक्षमिन्द्रे सर्वं समाहितम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्कम्भे । लोका: । स्कम्भे । तप: । स्कम्भे । अधि । ऋतम् । आऽहितम् । स्कम्भ । त्वा । वेद । प्रतिऽअक्षम् । इन्द्रे । सर्वम् । सम्ऽआहितम् ॥७.२९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 7; मन्त्र » 29

    पदार्थ -

    १. (स्कम्भे) = उस सर्वाधार प्रभु में ही (लोका:) = ये सब लोक आहित हैं। (स्कम्भे) = उस सर्वांधार में ही (तप:) = तप आहित है-'ऋत व सत्य' के जनक तप के आधार प्रभु ही हैं ('ऋतं च सत्यं चाभीखातपसोऽध्यजायत')(स्कम्भे) = उस सर्वाधार प्रभु में ही (ऋतम् अधि आहितम्) = ऋत स्थापित है। २. हे (स्कम्भ) = सर्वाधार प्रभो ! मैं (त्वा) = आपको प्रत्यक्ष वेद-एक-एक पदार्थ में स्पष्ट जानता हूँ। सब पदार्थों में आपकी ही महिमा दीखती है। (इन्द्रे) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु में ही (सर्व समाहितम्) = सब समाहित है।

    भावार्थ -

    वे प्रभु ही 'लोकों, तप व ऋत' के आधार हैं। इन्द्र में सब लोक समाहित हैं।

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