Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 2
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - शङ्कुमती गायत्री स्वरः - षड्जः
    1

    यु॒क्तेन॒ मन॑सा व॒यं दे॒वस्य॑ सवि॒तुः स॒वे। स्व॒र्ग्याय॒ शक्त्या॑॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒क्तेन॑। मन॑सा। व॒यम्। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। स॒वे। स्व॒र्ग्या᳖येति॑ स्वः॒ऽग्या᳖य॒। शक्त्या॑ ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युक्तेन मनसा वयन्देवस्य सवितुः सवे । स्वर्ग्याय शक्त्या ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    युक्तेन। मनसा। वयम्। देवस्य। सवितुः। सवे। स्वर्ग्यायेति स्वःऽग्याय। शक्त्या॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    भावार्थ -

    ( वयम् ) हम सब लोग ( युत्केन मनसा ) योग द्वारा समाहित, एकाग्र स्थिर ( मनसा ) चित्त से ( सवितुः ) सर्वोत्पादक ( देवस्य ) परम देव, परमेश्वर के ( सवे ) उत्पादित जगत् में ( शक्त्या ) अपनी शक्ति से ( स्वर्ग्याय ) परम सुख लाभ के लिये ( ज्योतिः आभरेम ) उस परम ज्ञान को प्राप्त करे । राजा के पक्ष में- एकाग्र, शुद्ध चित्त से हम प्रेरक राजा के राज्य में अपनी शक्ति से सुखमय राष्ट्र की उन्नति के लिये यत्न करें । शत० ६ । ३ । १ । १४ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    सविता ऋषिः । सविता देवता । शङकुमती गायत्री । षड्जः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top