Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 35
    ऋषिः - देवश्रवदेववातावृषी देवता - होता देवता छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    1

    सीद॑ होतः॒ स्वऽउ॑ लो॒के चि॑कि॒त्वान्त्सा॒दया॑ य॒ज्ञꣳ सु॑कृ॒तस्य॒ योनौ॑। दे॒वा॒वीर्दे॒वान् ह॒विषा॑ यजा॒स्यग्ने॑ बृ॒हद्यज॑माने॒ वयो॑ धाः॥३५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सीद॑। हो॒त॒रिति॑ होतः। स्वे। ऊँ॒ इत्यूँ॑। लो॒के। चि॒कि॒त्वान्। सा॒दय॑। य॒ज्ञम्। सु॒कृ॒तस्येति॑ सुऽकृ॒तस्य॑। योनौ॑। दे॒वा॒वीरिति॑ देवऽअ॒वीः। दे॒वान्। ह॒विषा॑। य॒जा॒सि॒। अग्ने॑। बृ॒हत्। यज॑माने। वयः॑। धाः॒ ॥३५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सीद होतः स्वऽउ लोके चिकित्वान्सादया यज्ञँ सुकृतस्य योनौ । देवावीर्देवान्हविषा यजास्यग्ने बृहद्यजमाने वयो धाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सीद। होतरिति होतः। स्वे। ऊँ इत्यूँ। लोके। चिकित्वान्। सादय। यज्ञम्। सुकृतस्येति सुऽकृतस्य। योनौ। देवावीरिति देवऽअवीः। देवान्। हविषा। यजासि। अग्ने। बृहत्। यजमाने। वयः। धाः॥३५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 35
    Acknowledgment

    भावार्थ -

    हे ( होतः ) राज्यपद या उसके किसी विभाग के या दानाध्यक्ष के पदाधिकार को स्वीकार करने वाले योग्य विद्वान् पुरुष ! तू ( स्वे उ ) अपने ही या सुखमय या शान्तिप्रद ( लोके ) स्थान, प्राप्तपद या अधिकार में ( सीद ) प्रतिष्ठित हो । और ( यज्ञम् ) धर्मानुकूल परस्पर संगत, राजा प्रजा के व्यवहाररूप राज्यकार्य को ( सुकृतस्य ) उत्तम पुण्याचारवान् धार्मिक ( योनौ ) आश्रय या आधार, मूल पर ( सादय ) स्थापित कर । हे ( अग्ने ) तेजस्विन् ! विद्वन् ! तू ( देवावी : ) विद्वानों और उत्तम गुणों की रक्षा करने हारा, या उन्हों द्वारा स्वयं सुरक्षित होकर ( हविषा ) अन्न आदि दातव्य वेतनादि पदार्थों द्वारा ( देवान् ) विद्वान् शासक राजाओं को ( यजासि ) प्राप्त कर, राष्ट्र में नियुक्त कर । और ( यजमाने ) समस्त राज्य व्यवस्था को संचालन करने वाले सर्वोपरि राजा में या करादि देने वाले प्रजाजन में ( बृहत् वयः ) बड़ा भारी दीर्घ जीवन और ऐश्वर्य भी ( धाः ) धारण करा ॥ शत० ६ । ४ । २ । ६ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    देवश्रवा देववातश्च ऋषी । अग्निर्देवता । निचृत् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top