Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 4
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - जगती स्वरः - निषादः
    1

    यु॒ञ्जते॒ मन॑ऽउ॒त यु॑ञ्जते॒ धियो॒ विप्रा॒ विप्र॑स्य बृह॒तो वि॑प॒श्चितः॑। वि होत्रा॑ दधे वयुना॒विदेक॒ऽइन्म॒ही दे॒वस्य॑ सवि॒तुः परि॑ष्टुतिः॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒ञ्जते॑। मनः॑। उ॒त। यु॒ञ्ज॒ते। धियः॑। विप्राः॑। विप्र॑स्य। बृ॒ह॒तः। वि॒प॒श्चित॒ इति॑ विपः॒ऽचितः॑। वि। होत्राः॑। द॒धे॒। व॒यु॒ना॒वित्। व॒यु॒ना॒विदिति॑ वयुन॒ऽवित्। एकः॑। इत्। म॒ही। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। परि॑ष्टुतिः। परि॑स्तुति॒रिति॒ परि॑ऽस्तुतिः ॥४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युञ्जते मनऽउत युञ्जते धियो विप्रा विप्रस्य बृहतो विपश्चितः । वि होत्रा दधे वयुनाविदेकऽइन्मही देवस्य सवितुः परिष्टुतिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    युञ्जते। मनः। उत। युञ्जते। धियः। विप्राः। विप्रस्य। बृहतः। विपश्चित इति विपःऽचितः। वि। होत्राः। दधे। वयुनावित्। वयुनाविदिति वयुनऽवित्। एकः। इत्। मही। देवस्य। सवितुः। परिष्टुतिः। परिस्तुतिरिति परिऽस्तुतिः॥४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    भावार्थ -

    ( विप्राः ) ज्ञान को विशेष रीति से पूर्ण करने वाले (होत्रा : ) दूसरों को ज्ञान देने और अन्यों से ज्ञान ग्रहण करनेवाले मेधावी विद्वान् पुरुष ( बृहत ) बड़े भारी ( विपश्चितः ) ज्ञानके संग्रही, सकल विद्याओं के भण्डार के समान स्थित, परमगुरु ( विप्रस्य ) विशेष रूप से समस्त संसार को अपने ज्ञान से पूर्ण करने हारे परमेश्वर के प्राप्त करने के लिये ( मनः ) अपने मनको उसमें ( युञ्जते ) योगाभ्यास द्वारा एकाग्र कर उसका चिन्तन करते हैं ( उत ) और ( धियः ) अपनी धारण समर्थ वृत्तियों को भी ( युञ्जते ) उसी से जोड़ते हैं और उससे ज्ञान प्राप्त करते हैं । वह (विप्रः ) पूर्ण ज्ञानवान् परमेश्वर ( एक इत् ) एक ही ऐसा है जो ( वयुनावित) समस्त प्रकार के विज्ञानों को जानने हारा होकर संसार को (विदधे) विविध रूपमें बनाता और विविध शक्तियों से धारण करता है । हे विद्वान् पुरुषो ! ( सवितुः ) उस सर्वोत्पादक ( देवस्य ) ज्ञान-प्रकाशस्वरूप, समस्त अर्थों के द्रष्टा और प्रदाता परमेश्वर की (मही) बड़ी भारी ( परिष्टुतिः ) सत्य वर्णन करने वाली वेदवाणी या बड़ी भारी स्तुति या महिमा है । शत० ६ । २ । ३ । १६ ।। इसी प्रकार जिस पूर्ण विद्वान् के पास अन्य ज्ञानपिपासु लोग मन और बुद्धियों को एकाग्र कर विद्याभ्यास करते हैं । वह सविता आचार्य्य समस्त ज्ञानों को जानता है। उसकी बड़ी महिमा है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    सविता ऋषिः । सविता देवता । जगती । निषादः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top