Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 63
    ऋषिः - विश्वामित्र ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - भुरिग्बृहती बृहती स्वरः - मध्यमः
    1

    दे॒वस्त्वा॑ सवि॒तोद्व॑पतु सुपा॒णिः स्व॑ङ्गु॒रिः सु॑बा॒हुरु॒त शक्त्या॑। अव्य॑थमाना पृथि॒व्यामाशा॒ दिश॒ऽआपृ॑ण॥६३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वः। त्वा॒। स॒वि॒ता। उत्। व॒प॒तु॒। सु॒पा॒णिरिति॑ सुऽपा॒णिः। स्व॑ङ्गु॒रिरिति॑ सुऽअङ्गु॒रिः। सु॒बा॒हुरिति॑ सुऽबा॒हुः। उ॒त। शक्त्या॑। अव्य॑थमाना। पृ॒थि॒व्याम्। आशाः॑। दिशः॑। आ। पृ॒ण॒ ॥६३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवस्त्वा सवितोद्वपतु सुपाणिः स्वङ्गुरिः सुबाहुरुत शक्त्या । अव्यथमाना पृथिव्यामाशा दिश आ पृण ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवः। त्वा। सविता। उत्। वपतु। सुपाणिरिति सुऽपाणिः। स्वङ्गुरिरिति सुऽअङ्गुरिः। सुबाहुरिति सुऽबाहुः। उत। शक्त्या। अव्यथमाना। पृथिव्याम्। आशाः। दिशः। आ। पृण॥६३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 63
    Acknowledgment

    भावार्थ -

    ( सविता देव: ) सूर्य के समान तेजस्वी राष्ट्र का संचालक देव, विद्वान् राजा हे पृथिवि ! ( सुपाणिः) उत्तम पालन करनेवाले साधनों से युक्त, ( स्वङ्गुरिः) उत्तम अंगों, राज्य के समस्त अंगों से सम्पन्न, ( सुबाहुः ) शत्रुओं को बांधनेवाले उत्तम सेना, आयुध आदि से युक्त होकर ( उत ) और ( शक्त्या ) शक्ति से युक्त होकर (त्वा ) तुझको ( उद्वपतु ) स्वीकार करे और उत्तम बीज वपन करे । इसी प्रकार ( सु-पाणिः) उत्तम हाथोंवाला ( सु-अङगीर: ) उत्तम अंगुलियों वाला, ( सुबाहु : ) उत्तम बाहुबल और ( उत शक्त्या ) उत्तम शक्ति से युक्त होकर हे स्त्री ! (त्वा उद्वपतु ) तुझ में सन्तानार्थ बीज वपन करे । तू हे प्रजे ! ( अव्यथमाना ) किसी प्रकार का कष्ट न पाती हुई ( पृथिव्याम् ) इस भूतल पर ( आशाः दिशः ) समस्त दिशा और उप- दिशाओं को भी ( आपृण ) पूर ले, अर्थात् फल फूलकर सर्वत्र फैल जा । और हे स्त्री ! तू अपने पति द्वारा कभी पीड़ित न होकर इस पृथिवी पर ( आशा : ) अपनी समस्त कामना और दिशाओं को भी पूर्ण कर ॥ शत० ६ । ५ । ४ । ११ । १२ ।।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    सविता देवता । भुरिग्बृहती । मध्यमः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top