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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 5
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - भुरिक्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    यु॒जे वां॒ ब्रह्म॑ पू॒र्व्यं नमो॑भि॒र्वि श्लोक॑ऽएतु प॒थ्येव सू॒रेः। शृ॒ण्वन्तु॒ विश्वे॑ऽअ॒मृत॑स्य पु॒त्राऽआ ये धामा॑नि दि॒व्यानि॑ त॒स्थुः॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒जे। वा॒म्। ब्रह्म॑। पू॒र्व्यम्। नमो॑भि॒रिति॒ नमः॑ऽभिः। वि। श्लोकः॑। ए॒तु॒। प॒थ्ये᳖वेति॑ प॒थ्या᳖ऽइव। सू॒रेः। शृ॒ण्वन्तु॑। विश्वे॑। अ॒मृत॑स्य। पु॒त्राः। आ। ये। धामा॑नि। दि॒व्यानि॑। त॒स्थुः ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युजे वाम्ब्रह्म पूर्व्यं नमोभिर्वि श्लोक एतु पथ्येव सूरेः । शृण्वन्तु विश्वेऽअमृतस्य पुत्राऽआ ये धामानि दिव्यानि तस्थुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    युजे। वाम्। ब्रह्म। पूर्व्यम्। नमोभिरिति नमःऽभिः। वि। श्लोकः। एतु। पथ्येवेति पथ्याऽइव। सूरेः। शृण्वन्तु। विश्वे। अमृतस्य। पुत्राः। आ। ये। धामानि। दिव्यानि। तस्थुः॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 5
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    भावार्थ -

    भा०-हे स्त्री पुरुषो ! और हे गुरुशिष्यो ! हे राजा प्रजाजनो ! ( वार्म् ) आप दोनों के हित के लिये मैं विद्वान् पुरुष ( नमोभिः ) उत्तम आत्मा को विनय सिखानेवाले उपायों द्वारा, ( पूर्व्यं ब्रह्म ) पूर्ण योगिजनों, ऋषियों से साक्षात् किये गये (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञान को, वेद को या परमेश्वर को ( युजे ) अपने चित्त में एकाग्र होकर साक्षात् करूं और आप लोगों को उसका उपदेश करूं । वह ( श्लोकः ) सत्यवाणी से युक्त, वेद ज्ञान अथवा सत्य ज्ञान से युक्त, विद्वान् अथवा ( सूरः श्लोकः ) सूर्य के समान विद्वान् का वह ( श्लोकः) ज्ञानोपदेश ( वां ) आप दोनों के लिये पथ्या इव ) उत्तम मार्ग के समान (वि एतु) विविध उद्देश्यों तक पहुंचे ( ये ) जो ( दिव्यानि ) दिव्य ज्ञानमय ( धामानि ) तेजों, प्रकाशों को या उच्च स्थानों, पदों को ( आतस्थुः ) प्राप्त हैं उन लोगों से हे ( विश्वे पुत्राः ) समस्त पुत्रजनो ! आप लोग ( अमृतस्य ) उस अमृतस्वरूप परमेश्वरविषयक ज्ञान का ( श्रण्वन्तु ) श्रवण करो ॥ शत०६।२।३।१७ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    सविता ऋषिः । सविता देवता ।विराडार्षी । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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