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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 68
    ऋषिः - आत्रेय ऋषिः देवता - अम्बा देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    मा सु भि॑त्था॒ मा सु रि॒षोऽम्ब॑ धृ॒ष्णु वी॒रय॑स्व॒ सु। अ॒ग्निश्चे॒दं क॑रिष्यथः॥६८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा। सु। भि॒त्थाः॒। मा। सु। रि॒षः॒। अम्ब॑। धृ॒ष्णु। वी॒रय॑स्व। सु। अ॒ग्निः। च॒। इ॒दम्। क॒रि॒ष्य॒थः॒ ॥६८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा सु भित्था मा सु रिषो म्ब धृष्णु वीरयस्व सु । अग्निश्चेदङ्करिष्यथः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मा। सु। भित्थाः। मा। सु। रिषः। अम्ब। धृष्णु। वीरयस्व। सु। अग्निः। च। इदम्। करिष्यथः॥६८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 68
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    भावार्थ -

    हे राजा के अधीन प्रजे ! एवं पुरुष के अधीन स्त्रि ! तू ( मा सु भित्थाः ) राजा से एवं अपने पालक पति से भेद या द्रोह मत कर । ( मा सु रिषः ) अपने हित के लिये ही कभी विनष्ट मत हो, अपना नाश मत कर या अपने पालक पति या राजा का घात मत कर। हे ( अम्ब ) हे स्त्रि ! पुत्रों की माता के समान तू ( धृष्णु ) दृढ़त्ता से ( सु वीरयस्व ) अपने ही हितार्थ पराक्रम बल के कार्य कर । तू ( अग्निः च ) अग्नि के समान तेजस्वी राजा या अग्नितत्व प्रधान पति, वीर्यवान् पुरुष दोनों मिलकर राज्य के समस्त कार्य को और स्त्री पुरुष दोनों मिलकर गृहस्थ कार्य को ( करिष्यथः ) करें ॥ शत० ६ । ६ । २ । ५ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    उखा अम्बा वा देवता । गायत्री । षड्जः ॥

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