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यजुर्वेद अध्याय - 12
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यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 50
ऋषिः - विश्वामित्र ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - आर्ची पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
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पु॒री॒ष्यासोऽअ॒ग्नयः॑ प्राव॒णेभिः॑ स॒जोष॑सः। जु॒षन्तां॑ य॒ज्ञम॒द्रुहो॑ऽनमी॒वाऽइषो॑ म॒हीः॥५०॥
स्वर सहित पद पाठपु॒री॒ष्या᳖सः। अ॒ग्नयः॑। प्रा॒व॒णेभिः॑। प्र॒व॒णेभि॒रिति॑ प्रऽव॒णेभिः॑। स॒जोष॑स॒ इति॑ स॒ऽजोष॑सः। जु॒षन्ता॑म्। य॒ज्ञम्। अ॒द्रुहः॑। अ॒न॒मी॒वाः। इषः॑। म॒हीः ॥५० ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरीष्यासोऽअग्नयः प्रावणेभिः सजोषसः । जुषन्ताँयज्ञमद्रुहो नमीवा इषोऽमहीः ॥
स्वर रहित पद पाठ
पुरीष्यासः। अग्नयः। प्रावणेभिः। प्रवणेभिरिति प्रऽवणेभिः। सजोषस इति सऽजोषसः। जुषन्ताम्। यज्ञम्। अद्रुहः। अनमीवाः। इषः। महीः॥५०॥
विषय - विद्वानों का प्रेम, मोहरक्षित होकर रहने का उपदेश ।
भावार्थ -
( पुरीष्यास: ) प्रजाओं के पालन करने में समृद्ध, ऐश्वर्यवान् ( प्रावणेभिः ) उत्कृष्ट सम्पत्तियों के लाभ करने के साधनों और विद्वानों द्वारा ( सजोषसः ) सबके प्रति समान प्रेम से बर्त्ताव करनेवाले, ( यज्ञम् ) व्यवस्थित राष्ट्र के प्रति ( अद्रहः ) कभी द्रोह न करनेहारे अग्नयः ) | तेजस्वी अग्रणी नायक विद्वान् पुरुष ( अनमीवाः ) रोगरहित ( मही: इषः ) बड़े अयादिम्पत्तियों को ( जुषन्ताम् ) सेवन करें, प्राप्त करें ।शत० ७ । १ । १ । २५ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः । अग्निर्देवता । आर्ची पंक्तिः । पञ्चमः ॥
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