Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 51
    ऋषिः - विश्वामित्र ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिगार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    0

    इडा॑मग्ने पुरु॒दꣳस॑ꣳस॒निं गोः श॑श्वत्त॒मꣳ हव॑मानाय साध। स्यान्नः॑ सू॒नुस्तन॑यो वि॒जावाऽग्ने॒ सा ते॑ सुम॒तिर्भू॑त्व॒स्मे॥५१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इडा॑म्। अ॒ग्ने॒। पु॒रु॒दꣳस॒मिति॑ पुरु॒ऽदꣳस॑म्। स॒निम्। गोः। श॒श्व॒त्त॒ममिति॑ शश्वत्ऽत॒मम्। हव॑मानाय। सा॒ध॒। स्यात्। नः॒। सु॒नुः। तन॑यः। वि॒जावेति॑ वि॒जाऽवा॑। अग्ने॑। सा। ते॒। सु॒म॒तिरिति॑ सुऽम॒तिः। भू॒तु॒। अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे ॥५१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इडामग्ने पुरुदँसँ सनिङ्गोः शश्वत्तमँहवमानाय साध । स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इडाम्। अग्ने। पुरुदꣳसमिति पुरुऽदꣳसम्। सनिम्। गोः। शश्वत्तममिति शश्वत्ऽतमम्। हवमानाय। साध। स्यात्। नः। सुनुः। तनयः। विजावेति विजाऽवा। अग्ने। सा। ते। सुमतिरिति सुऽमतिः। भूतु। अस्मेऽइत्यस्मे॥५१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 51
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    हे ( अग्ने ) विद्वन् ! राजन् ! ( हवमानाय ) बल से स्पर्द्धा करनेवाले के लिये ( इडाम् ) अन्न और भूमि और ( पुरुक्ष्ंसम् ) बहुत से कार्य व्यवहारों को पूर्ण करनेवाली ( गो: सनिम) पृथ्वी के या पशुओं के विभाग को ( शश्वत्तमम् ) सदा के लिये ( साध ) उन्नत कर | (नः) हमारा ( सूनुः ) उत्पन्न ( पुत्रः ) पुत्र ( विजावा स्यात्)ग्ने विविध. ऐश्वर्यों का जनक हो । हे ( अग्ने ) राजन् ! ( सा ) वह ( ते सुमतिः ) तेरी दी हुई उत्तम व्यवस्था (अस्मे ) हमारे कल्याण लिये ( भूतु ) हो । अध्यापक के पक्ष में- हे अग्ने ! आचार्य ! तेरा ( पुरुदंसं ) बहुत से कामों का साधन वा स्तुति योग्य ( गोः सनिम् ) वेदवाणी का दान और ( शश्वत्तम) सदा तन का बेद ज्ञान ( हवमानाय साध ) विद्या के लिये प्रति अति उत्सुक पुरुष को प्रदान कर हमारा पुत्र विविध ऐश्वयों को उत्पन्न करनेवाला हो । तेरी शुभ मति या उत्तम ज्ञान हमारे कल्याण के लिये हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः ।अग्निर्देवता । भुरिगार्षी पंक्तिः । पञ्चमः॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top